
(रिपोर्ट : पटना / कैलिफोर्निया), बोलो जिंदगी के पाठक और श्रोतागण का हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ। मैं विभा रानी श्रीवास्तव मूलतः बिहार निवासी हूँ। दिसम्बर 2019 से वर्त्तमान में सेन हॉजे / कैलिफोर्निया में अपने बच्चों के संग हूँ… । आज आपके सामने इस सिकुड़ती दुनिया में साहित्यकार और साहित्यिक गोष्ठियों के दिशा व दशा पर अपने मंतव्य देने के लिए उपस्थित हुई हूँ।
बैंगलोर में स्थापित साहित्योपचार/जीना चाहता हूँ मरने के बाद, राइटर व जनर्लिस्ट एसोशिएशन, प्रेरणा मंच , साहित्य संगम की सदस्यता ली हुई हूँ.. राष्ट्रीय आगमन की भी सदस्य हूँ । जब भी जिस शहर में रहना हुआ.. हर दो चार दिन पर किसी न किसी साहित्यिक गोष्ठी में शामिल हो जाना सुनिश्चित रहा।
कार्यक्रमों में वरिष्ठ साहित्यकारों से मिलना उनको सुनना बहुत अच्छा लगता रहा , ज्ञानवर्धक था।
कैलिफोर्निया आने पर भी ग्लोबल हिन्दी ज्योति और विश्व हिन्दी ज्योति संस्था के कई कार्यक्रमों में सशरीर उपस्थिति होती रही।
उत्तर प्रदेश मंडल अमेरिका द्वारा आयोजित 6 मार्च और 14 मार्च को होने वाले होली मिलन के कार्यक्रमों में जाने की पूरी तैयारी भी हो रखी थी। लेकिन एक अनजाने भय ने सबपर ऐसा काबू कर लिया कि सारे सपने झनाक से किरचों में नजर आने लगे। तन की दूरी मन को अवसादग्रस्त करने लगी। साहित्यिक गोष्ठियों की कमी अखरने लगी।
पेट की भूख तो थी नहीं कि चलो भात नहीं मिला तो रोटी से पेट भर लेते हैं । रोटी नहीं मिली तो सत्तू-भुजा से ही काम चला लेंगे।
सशरीर उपस्थिति होने वाली गोष्ठियों में तो दो चार लोग जिन्हें अतिथियों के रूप में आमंत्रण मिला रहता था या जो खर्च वहन करने में समर्थ थे दूसरे शहर या बहुत हुआ तो दूसरे राज्यों के साहित्यकारों से मिलना हो जाता था।
दूसरा आयोजकों का खर्च बचने लगा। बड़े कार्यक्रमों में लाखों का खर्च होता है। मुझे तो लगता है, जब जन-जीवन सामान्य हो जाये , तब भी खर्चों के मद्दे नजर को देखते हुए वर्चुअल गोष्ठी ही करना ज्यादा उपयुक्त रहेगी। संतुष्टि के भूख को अनदेखा करने की शक्ति उपजनी चाहिए।
मार्च से अभी तक में मैं जिनमें शामिल रही, लेख्य-मंजूषा की कई वर्चुअल गोष्ठी हुई है, देवशील मेमोरियल की एक वर्चुअल गोष्ठी हुई , हिन्दी मंच बॉस्टन की कई वर्चुअल गोष्ठी हुई, विश्व हिन्दी ज्योति की कई वर्चुअल गोष्ठी हुई जिसमें अभी रविवार 7 जून को लोक साहित्य और लोक गीत पर वर्चुअल गोष्ठी थी.
कैलिफोर्निया और भारत में साढ़े बारह घण्टे का अंतर है जब कैलिफोर्निया में रविवार 7 जून की शाम 6 बज रहे थे तो भारत में सोमवार 8 जून की सुबह के साढ़े छ बज रहे थे लेकिन साहित्योपचार का ही असर था कि समय का कोई व्यवधान ना तो वक्ता पर था और ना गीतकार पर और ना श्रोता गण पर।
कई संस्थाओं से साहित्यकारों को कोरोना योद्धा का सम्मान पत्र भी दिया जा रहा है। सराहनीय कार्य है। मानती हूँ आशु कवि होते हैं। लेकिन सब नहीं होते है। और अवसाद व भयग्रस्त का आशु कवि होना क्या । वे तो कलम ही नहीं पकड़ सकते।
सिकुड़ती दुनिया में वर्चुअल साहित्यिक गोष्ठियों के माध्यम से साहित्यकारों के लिए विशाल नभ प्राप्त हो रहा है । ऐसी ही किसी वर्चुअल गोष्ठी में आप सबसे भेंट होने की उम्मीद लिए अपनी वाणी को विराम देती हूँ। सभी पाठकों की आभारी हूँ .. हार्दिक धन्यवाद.. जय हिन्द। जय हिन्दी।