चूँकि गुरु जी से शादी हुई थी इसलिए उनसे थोड़ा डर भी लगता था : बिन्नी बाला, संस्कृत शिक्षिका, राजकीय त्रिभुवन हाई स्कूल, नौबतपुर

चूँकि गुरु जी से शादी हुई थी इसलिए उनसे थोड़ा डर भी लगता था : बिन्नी बाला, संस्कृत शिक्षिका, राजकीय त्रिभुवन हाई स्कूल, नौबतपुर

मेरा मायका पटना से थोड़ी दूर खगौल, दानापुर में है. मेरे पिता जी हाई स्कूल में टीचर थें. तीन बहन एक भाई में सबसे बड़ी मैं ही हूँ. ग्रेजुएशन खगौल महिला कॉलेज से किया. शादी के पहले ग्रेजुएशन की परीक्षा दे चुके थें और शादी बाद ठीक बिदाई के दूसरे दिन मेरा रिजल्ट आया था. 9 वीं कक्षा से ही पं. कपिलदेव सिंह जी के संस्थान में संगीत सीखना शुरू कर दिए थें. गुरु जी तो खुद तबला बजाते थे लेकिन संगीत सिखाने वहाँ और दूसरे लोग आते थें. सीखने के दौरान ही एक प्रोग्राम में उनके गांव जाना हुआ. तब मेरी इंटर की परीक्षा होनेवाली थी. वहीँ पर पहली बार अपने पतिदेव को देखी थी. गुरु जी अपने गांव एक सूर्य मंदिर का निर्माण करवाए थें जिसका उद्घाटन था. सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी था. जब पहली बार अपने पति को देखें तो वो मेरे पसंदीदा सफ़ेद रंग का कुर्ता-पायजामा पहने हुए थें. वहां सूर्य मंदिर के चबूतरे पर बैठकर वे गायन कर रहे थें. सूर्य की किरणों की वजह से वे चंद्र की भांति सुशोभित हो रहे थें. उस दिन हम सिर्फ यही जान पाएं कि वे बहुत अच्छा गाते हैं और उनका नाम रजनीश है. फिर हम सभी गुरु जी के साथ प्रोग्राम खत्म होने के तुरंत बाद घर लौट आएं. लेकिन वापस आने के बाद रजनीश जी के प्रति मेरे मन में एक प्यार का बीज अंकुरित हो चुका था.

पति और गुरु रजनीश जी के साथ रोमानी पलों को जीती हुईं बिन्नी बाला

गुरु जी के संस्थान में हमलोग संगीत सीखने आते थें, उसी क्रम में वहां आनेवाले हमारे एक पुराने गुरु हीरा लाल मिश्र सिखाने आते थें. उनकी उम्र काफी हो चुकी थी और जब उनको आने-जाने में दिक्कत होने लगी तब वो हमें सिखाना छोड़ दिए. कुछ दिन वैसे ही चलता रहा फिर अचानक से संस्थान वाले गुरु जी बोलें कि “अब से रजनीश आएगा सिखाने.” यह सुनकर मेरे मन में ख़ुशी के लड्डू फूट पड़े. फिर रजनीश जी संस्थान आना शुरू किये लेकिन उनके बारे में हम कुछ ज्यादा जानते नहीं थें. मेरे मन में तो उनके लिए दूसरा वाला ही भाव था लेकिन वे कुछ जानते नहीं थें इसलिए हम दोनों में गुरु-शिष्य वाला रिश्ता ही चल रहा था. गुरु जी बाद में पटना चले गए तो उनका म्यूजिक इंस्टीच्यूट भी पटना शिफ्ट हो गया. तब पापा बोले- “अब तुम पटना सीखने जाओगी तो तुम्हें दिक्कत होगी, इसलिए छोड़ दो.” लेकिन मेरे मन में तो रजनीश जी से मिलने की अभिलाषा थी और कम-से-कम 6 साल म्यूजिक सीखना था तो हमलोग पटना गुरु जी के इंस्टीच्यूट जाने लगें. पटना गुरु जी के इंस्टीच्यूट में सप्ताह में एक दिन हम बस में जाते थें जहाँ रजनीश जी सिखाने आते थें. इसलिए हर रविवार का बेसब्री से इंतज़ार रहता था. तब हम बी.ए. पार्ट 1 में थें. मेरे पापा जब पहली बार रजनीश जी से मिले तो बहुत प्रभावित हुए. फिर धीरे-धीरे मिलना-मिलाना शुरू हुआ. एक दिन गुरु जी जब हमारे यहाँ आएं तो वो खुद से ही मेरे रिश्ते का प्रस्ताव मेरी मम्मी को दिए कि “लड़की की शादी करनी है ना.” उनका इशारा रजनीश जी की तरफ था कि “सजातीय लड़का है, दोनों को संगीत पसंद है तो रिश्ता कर दिया जाये.” तब गुरु जी को हमारे मन की बात नहीं मालूम थी और ना ही मैंने कभी घरवालों को कुछ बताया था. बस यूँ ही घर में अक्सर मेरे मुँह से रजनीश जी की तारीफ सुनकर घरवालों को एहसास हो गया था कि मैं उनको पसंद करती हूँ. तो जब रजनीश जी के पास प्रस्ताव गया तो वे सीधे इंकार कर दिए कि “अरे ऐसे कैसे ? ये लड़की तो मुझसे संगीत सीखती है, शिष्या है मेरी तो शादी क्या करना.” उनकी तरफ से वैसा कुछ इंट्रेस्ट नहीं था तो फिर बात खत्म हो गयी. उसके बाद मैं जब क्लास में जाती और सीखते वक़्त कुछ गलती हो जाती तो बाकियों की गलती छोड़कर सिर्फ मुझपर वे अपने अंदर का सारा गुस्सा उढ़ेल देते थें. ऐसा डांटते थें कि कितनी बार मैं क्लास में रो दी थी. फिर सीखने-सिखाने का कार्यक्रम वैसे ही चलता रहा. मेरी मम्मी भी बहुत प्रयास की और इनके परिवारवालों से मिली. बात बनने में पांच साल का वक़्त लग गया. इनके बहन-बहनोई का भी बहुत हाथ रहा. मेरे पति रजनीश जी कहते हैं कि “उनकी तरफ से लव मैरेज था और मेरी तरफ से अरेंज मैरेज.” 2002 में हमारी शादी हुई. शादी बाद विदाई कर हम इनके गांव नौबतपुर गएँ तभी अगले दिन यह खबर सुनने को मिली कि मेरा ग्रेजुएशन का रिजल्ट आ गया है, मैं पास हो गयी हूँ.

जब मेरी मुंह दिखाई के समय गांव की महिलाएं आने वाली थीं तो ननद लोग आपस में सोच रही थीं कि इसे आँखें बंद करके दिखाना है कि आँखें खुलवाकर. फिर बड़ी ननद बोलीं – “अरे, इसकी सुंदर-सुंदर आँखें हैं, आँख खोलकर देखेगी.” शादी के दूसरे ही दिन की बात है, ससुराल में पूरा घर रिश्तेदारों से भरा हुआ था तो यूँ ही जब सभी एक साथ बैठे हुए थें तो हुआ कि चलो कुछ हो जाये, गाना-वाना. फिर मुझे गाने के लिए बोला गया तो मैंने बिना किसी खास मंशा के यूँ ही एक गाना गा दिया –

“गयो-गयो रे सास तेरो राज जमाना आया बहुओं का,

सास बेचारी पानी भरे और बहुएं बैठीं नहाएं.

मलो-मलो रे पीठ मेरी सास जमाना आया बहुओं का.

सास बेचारी खाना बनाये बहुएं बैठीं नहाएं,

परसो-परसो रे थाल मेरी सास कि जमाना आया बहुओं का.”

इस फोक सॉन्ग में एक एक्ट था कि ऐसा सुनकर जब सास गुस्सा होकर जाने लगती है तो बहु को लगता है कि ये हम गलत किये हैं और फिर गाने के माध्यम से ही वो सास को मनाकर लाती है. जब शादी के पहले एक प्राइवेट स्कूल में हम दो-चार महीने के लिए संस्कृत पढ़ाते थें तभी स्कूल के वर्षगांठ समारोह में ये गाना तैयार करवाए थें, इसलिए ये गाना मुझे फटाक से याद आ गया. तो ससुराल में सभी यह गाना सुनकर हंसने लगें. कुछ लोग तो सुनते ही सकपका गए और बोलने लगें कि “नयी बहु आते ही ऐसा गाना सुना दी.” लेकिन मेरे परिवार के लोग खासकर सासू माँ खूब हंसी और शादी बाद हम दोनों का सामंजस्य बहुत अच्छा रहा.

मायके में सबका मन था कि पढ़ाई आगे हो, ऐसा नहीं कि शादी हो गयी है तो पढ़ाई-लिखाई छोड़कर बैठ जाएँ. सास-ससुर गांव से बिलॉन्ग करते थें लेकिन मेरे पढ़ने को लेकर प्रोत्साहन बहुत था. एक बार गर्मी छुट्टियों में गांव ससुराल गए थें और हमारी बड़ी ननद आई हुई थीं. बहुत गर्मी थी इस वजह से वे नाईटी पहनना चाहती थीं मगर नाईटी लायी नहीं थीं. जब घर में रखे बक्शे में कुछ पुराने कपड़े मिले तो फिर सिलाई मशीन आई और हमको बोला गया कि अगर सील सकती हो तो सील दो. तब मुझे बहुत चीजों में मन लगता था. सिलाई-कढ़ाई, पेंटिंग, सिंगिंग, डांसिंग इत्यादि. ननद बोलीं कि “चलो तुम्हरी परीक्षा हो जाएगी.” हम एक घंटे के अंदर जल्दी से सिलकर दीदी को दे दिए तो सबलोग इस बात से बहुत खुश हुए. लेकिन सास-ससुर बोले कि “ये तो कोई भी गांव की लड़की कर लेगी, ये कौन सी बड़ी बात है. लेकिन हां, अगर पढाई करके जॉब कर सकती हो तो इसे हम थोड़ा बेहतर और अलग मान सकते हैं.”

पति रजनीश जी एवं बच्चों के साथ ख़ुशी के पल संजोतीं बिन्नी बाला

शादी बाद ससुराल नौबतपुर से हम पति-पत्नी 6 महीने बाद पटना के बुद्धा कॉलोनी शिफ्ट कर गए. शादी से पहले मेरी रेगुलर कॉलेज जाने और कुछ ना कुछ करते रहने की आदत थी. बी.एड. करना चाहती थी. लेकिन एडमिशन के लिए थोड़ा पॉइंट कम पड़ रहा था तो हुआ कि एम.ए. कर लेते हैं, उसका कुछ पॉइंट जुड़ जाता है. फिर एम.ए. के दौरान फाइन आर्ट में म्यूजिक था जो बहुत काम आया. म्यूजिक में मेरा सेलेक्शन हो गया और पटना यूनिवर्सिटी के दरभंगा हाउस में मेरी पढाई चालू हो गयी. तब सास-ससुर सब गांव में ही रहते थें. बीच-बीच में जब छुट्टियां होतीं तो कभी मम्मी के यहाँ तो कभी ससुराल चले जातें. तब लगता था जैसे हम कहीं हॉस्टल में रह रहे हैं और अब घर जाना है, ऐसा कुछ साल तक फीलिंग हुआ. जब छुट्टियों में कुछ दिन के लिए हम गांव ससुराल जातें तो मुझे गुस्सा इस बात पर आता कि रजनीश जी सिर्फ नाश्ता-खाना खाने के लिए घर में आते थे और सारा-सारा दिन घर से बाहर दोस्तों के संग बिताते थें. एक बार हुआ कि जैसा प्रचलन है, बहुएं गांव में साड़ी पहनकर जाती हैं. एक बार पति से पूछकर मैं सलवार सूट पहनकर चली गयी. गांव के लिए यह ज्वलंत मुद्दा हो गया कि अरे नयी बहु है और सूट पहनकर चली आयी. लेकिन घर में सास-ससुर को कुछ भी बुरा नहीं लगा, वे बोले- “चलो ठीक है, कोई बात नहीं.” मैं मायके में सबसे बड़ी थी तो ससुराल में रजनीश जी सबसे छोटे.

शादी के तब एक-दो साल हुए थें जब हमलोग पटना शिफ्ट कर गए थें, तब पटना में कुछ दिन के लिए हमारे साथ सासू माँ भी थीं. उसी दौरान गांव के एक सज्जन आये थें. सासू जी का कहना था कि “तुम सूट-वूट पहनती हो, शहरी जैसा रहती हो तो वो जो गांव से आये हैं उनके सामने नहीं जाना.” वो व्यक्ति हमारे घर रात भर रुके लेकिन हम उन्हें देख नहीं पाएं. फिर सुबह में एकदम से तैयार होकर हम निकल गए कॉलेज, उस दिन बी.एड. में एडमिशन लेना था. रजनीश जी मेरा ड्राफ्ट बनाकर कॉलेज में लाने वाले थें. और उन व्यक्ति का भी कोई काम रहा होगा जो गांव से आये थें इसलिए वो भी रजनीश जी के साथ चले आये थें. फाइनली हम उनको पहचान नहीं पाएं कि यही मेरे घर आये हुए हैं. तब मेरे साथ मेरी फ्रेंड निधि और गरिमा भी थीं. वो दोनों अक्सर मेरे पति के साथ मजाक करती थीं तो वहां हमलोग कॉलेज टाइप वाला एकदम फ्री होकर खूब हंसी-मजाक कर रहे थें, वहां बहु वाली कोई बंदिश नहीं थी. जब बात-मुलाकात हो गयी, हम ड्राफ्ट ले लिए तो फिर रजनीश जी जाने लगें और उन सज्जन का नाम लेकर बोले कि “चलिए भइया.” तब हम चौंककर पति से पूछे – “आप किसके साथ आये हैं…?” चूँकि कॉलेज भी नया था तो मुझे लगा यहीं के कोई स्टाफ होंगे. तब रजनीश जी बोले- “अरे ये भइया तो कल रात से हमारे घर पर ही तो हैं.” तब मुझे बड़े जोर की हंसी आ गयी. हम बोलें- “लगता है सासू माँ से डाँट खिलवायेंगे.” फिर जब हम घर आएं और सासू माँ को सारा किस्सा कह सुनाएँ तो पहले वो खूब हंसी फिर मुझपर ही खूब गुस्सा हुईं.

‘बोलो ज़िन्दगी’ के साथ अपने संस्मरण साझा करती हुईं बिन्नी बाला

जब हम बी.एड कर रहे थें तो उसी क्रम में पति के प्रोफेशन की वजह से बहुत परेशानी होती थी, वो ये कि हमेशा घर में गेस्टिंग लगी रहती थी. गेस्ट को भी देखना, मेरी पढ़ाई और घर का भी काम-काज, तो बहुत दिक्कत होती थी. कभी-कभी इस वजह से हमको बहुत देर रात को पढ़ना पड़ता था. तब हम कॉलेज से आकर खाना बनाकर कोचिंग भी जाते थें और फिर घर आकर खाना बनाते थें. बहुत मुश्किल दौर था लेकिन मेरी पढ़ाई को लेकर मेरी फ्रेंड लोगों का तब बहुत साथ मिला.

शुरू में मुझे पति से डर लगता था क्यूंकि तब ये मेरे गुरु थें, जिस प्रोग्राम में वे सामने आ जातें तो हम झट से उनके पैर छूकर प्रणाम कर लेते थें. शादी के वक़्त भी जयमाल के वक़्त जैसे ये स्टेज पर आएं मैंने उन्हें पैर छूकर प्रणाम कर लिया. इससे कुछ लोग हंसने लगें तो कुछ सहेलियां गुस्सा हुईं मेरे इस आचरण से. शादी के कुछ महीने ही बीते थें कि एक दफा मेरी एक क्लासमेट बोली कि “तुम्हारे हसबैंड को देखने की बड़ी इच्छा हो रही है, सुना है अपने गुरु से ही शादी कर ली हो. ऐसा करो उनके साथ किसी दिन मेरे घर आ जाओ.” जब मैं रजनीश जी के साथ उसके घर पहुंची तो वो उन्हें देखकर चौंक पड़ी कि “अरे,ये तो बड़े जवान हैं, हमको तो लगा तुम किसी बूढ़े आदमी से शादी की हो, गुरु जी लोग तो वैसे ही दिखते हैं ना.”

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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