पटना, 14 मार्च 2021, युवाओं व आमलोगों में बढते तनाव व इससे होनेवाले अवसाद जैसी समस्या के प्रति जागरूकता को लेकर पटना के मनोवैज्ञानिक डॉ॰ मनोज कुमार द्वारा तनाव प्रबंधन पर एकदिवसीय राष्ट्रीय बेबिनार का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में संपूर्ण बिहार-झारखंड के आलावा देश के नामी-गिरामी उच्च शैक्षणिक संस्थाओं में पढ रहे युवाओं व उनके अभिभावकों ने हिस्सा लिया. युवाओं द्वारा बढ-चढकर तनाव व इससे होनेवाले डिप्रेशन से बचाव के लिए प्रश्न पूछे गये. प्रोग्राम में राँची की रेकी एकस्पर्ट व काउंसलर ने तनाव और पास्ट पेनफुल मेमोरी से उबरने के लिए युवाओं को नयी तकनीकी जानकारी दी.
इस अवसर पर डॉ॰ मनोज कुमार, मनोवैज्ञानिक चिकित्सक द्वारा बताया गया कि, अभी संपूर्ण विश्व में तनाव व इससे उत्पन्न चिंता द्वारा लोगों में अवसाद जैसे लक्षण उभर रहें हैं. उन्होंने बताया कि ग्लोबल और्गेनाइजेशन फोर स्ट्रेश जैसी उच्चस्तरीय शोध संस्थान ने भी वैश्विक महामारी से बन रही परिस्थितियों से होनेवाले तनाव व इससे हो रहे बीमारियों पर अपने कान खङे कर लिए हैं. पूरी दुनिया में करीब 33 प्रतिशत युवा अतिगंभीर रूप से तनाव के शिकार हो रहें हैं जबकि 77 फीसदी लोग तनाव की वजह से अलग-अलग शारीरिक बीमारियों से जूझ रहे हैं, और वहीं यह स्ट्रेश 73 फ़ीसद मानसिक समस्याएं भी ला रहा जो काफी चिंताजनक है. उन्होंने एक अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि, आजकल 48 प्रतिशत नींद की समस्याएं भी तनाव की वजह से लोगों में पैदा हो रहीं हैं. कोविड-19 जैसी परिस्थितियाँ आम लोगों में असुरक्षा की भावना को बढा चुका है. आज के समय में लौकडाउन का प्रभाव अनेकों तरह के तनाव को लेकर आया है. तनाव से उत्पन्न डिप्रेशन का प्रभाविक रूप अब देखा जा सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि पिछले एक साल में या कोरोना काल में अबतक 7.5 प्रतिशत भारतीय आबादी किसी न किसी मानसिक समस्या से पीड़ित दिख रही है. एक आंकङे के मुताबिक इंडिया में 56 करोङ लोग मानसिक अवसाद से गुजर रहें हैं. कारण अनगिनत है, दुनिया की बात करें तो अवसाद की वजह से 36.6 फीसदी मौतें आत्महत्या के रूप में देखने को मिल रही हैं. इंडियन जर्नल ऑफ़ साइक्रेट्री के मुताबिक़ यूनिपोलर डिप्रेशिव के केसेज भी बढ रहें हैं. जर्नल के शोध के हिसाब से अवसाद के ग्राफ पुरूषों के मुक़ाबले महिलाओं में कोरोना काल के बाद से ज्यादा बढे हैं. वर्ष 2019 के आखिर तलक जहाँ पुरूषों में डिप्रेशन का दर 1.9 फीसदी व महिलाओं में 3.2 प्रतिशत डिप्रेशन पाया गया था वह अब बढ चुका है. वर्तमान समय में यह आंकड़ा बढकर पुरूषों में 5.8 फ़ीसद व महिलाओं में तेजी से बढकर 9.5 प्रतिशत हो चुका है.
आज के इस बेबिनार के माध्यम से युवाओं को अवसाद के लक्षणों से परिचित कराते हुए डॉ॰ मनोज कुमार ने बताया कि, जब कोई व्यक्ति अवसाद की जद में जाता है तो उसमें शारीरिक और मानसिक लक्षणों का पता रोगी को नही चल पाता. इसके लिए शरीर के लक्षणों को ही समझना चाहिए. डॉ॰ कुमार द्वारा छात्र-छात्राओं को बताया गया कि तनाव व उससे होनेवाले डिप्रेशन द्वारा शारीरिक रूप से व्यक्ति असहाय रहने लगता है. नींद और भूख कोसो दूर चला जाता है. शरीर में वह ऊर्जा नही होती जैसे पहले थी. बिना काम के थकान और बदन में दर्द का सामना व्यक्ति करता है. कुछ मामलों में व्यक्ति अपने वजन को नियंत्रित नही रख पाता.
अपने व्याख्यान में लोगों को तनाव व उससे होनेवाले अवसाद के मनोवैज्ञानिक पहलुओं से आम लोगों को रूबरू कराते हुए संबोधित किया कि जब आप किसी कारण से अवसाद से ग्रसित होते हैं तो आपमें ध्यान में कमी और निर्णय लेने की क्षमता सबसे पहले प्रभावित होने लगती है. किसी भी काम को करने में जी नही लगता और नाहिं आप एकाग्रता रख पाते हैं. बार-बार आपका मूड सूबिंग करता है. जिसका प्रभाव बदलता रहता है. कभी यह मंजर उदासी से घोर उदासी की ओर बदल जाया जाता है, इसका पता रोगी नही लगा पाता. आत्महत्या के विचारों को अपनाने की ललक मरीज बढा लेता है. अकारण रोना,चिङचिङापन,बैचैनी,घबराहट कुछ इस कदर बढने लगता है कि व्यक्ति खुद को सबसे अलग-थलग कर लेता है. बार-बार अनेकानेक विचारों का इतना बार आना-जाना होता है कि इंसान अपने दैनिक क्रियाकलापों को भी छोङ देता है.
आज के इस राष्ट्रीय स्तर के बेबिनार में डॉ॰ मनोज ने कहा कि, आज के समय में तनाव व इससे पैदा हुआ डिप्रेशन लाइलाज नही रह गया है. जरूरत है कि समय पर रोगी को मनोचिकित्सकीय उपचार मिल सके. काउंसलिंग की उपयोगिता डिप्रेशन में बहुत हद तक बढी है. इसका एक कारण है कि लोग अब अधिक दवा नही खाना चाहते. किसी भी हालत में बगैर चिकित्सीय परामर्श के मेडिसिन नहीं छोङनी चाहिए.