बिहार के गया जिले के पास शेरघाटी में मेरा मायका है जहाँ से मेरी प्रारम्भिक शिक्षा हुई. उसके बाद आगे की स्कूलिंग और ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई गया शहर में हुई. पिता जी बिजनेसमैन थें. शादी बाद नालंदा के डीम्ड यूनिवर्सिटी से एमए किया. फिर इलाहाबाद प्रयाग यूनिवर्सिटी से हमारा बीएड हुआ. जब इंटर करते ही पार्ट वन में एडमिशन लिया तभी मेरी शादी हो गयी. तब मैं मात्र 19 साल की थी. मेरा ससुराल भी गया में ही है. शादी के बाद हम 2 साल गया में रहें. एक बेटी हुई उसके बाद हम भागलपुर शिफ्ट हो गएँ क्यूंकि मेरे हसबेंड की पोस्टिंग वहां हुई थी. तब मेरे पति मेडिकल कम्पनी में जॉब करते थें. फिर वहां से हम बिहारशरीफ आएं. तब तक मेरा बीएड भी हो चुका था इसलिए हमने वहीँ डीएवी स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. 2008 में 1 सितंबर को हम बिहारशरीफ से पटना शिफ्ट कर गएँ और पटना रहते आज दस साल हो गएँ. उस वक़्त मेरा दूसरा बच्चा होनेवाला था. फिर जब बच्चा एक साल का हुआ तब मैंने पटना में ईशान इंटरनेशनल गर्ल्स हाई स्कूल ज्वाइन किया. कुछ सालों बाद मेरे हसबेंड ने जॉब छोड़कर अपना खुद का बिजनेस स्टार्ट किया. हमारी अब अपनी दवा की कम्पनी है. जब उन्होंने बिजनेस की शुरुआत की तो मेरा भी समय उसमे खर्च होने लगा इसलिए कि दोनों को मैनेज करना हो रहा था. मार्केटिंग हसबेंड देखते तो ऑफिसियल वर्क मैं देखती थी. मैंने सोचा नहीं था कि अब इसे भी छोड़कर फिर मुझे किसी दूसरे डायरेक्शन में जाना पड़ेगा. मैंने डिसाइड कर लिया था कि अब थोड़ा बिजनेस देखेंगे और हाउसवाइफ बनकर घर सम्भालेंगे, क्लब ज्वाइन करेंगे और फ्रेंड्स के साथ इंज्वाय करेंगे. लेकिन समय के साथ बहुत कुछ चेंज होता है.
एक दिन अचानक मेरी एक फ्रेंड ने कहा कि “मिसेज ग्लोबल बिहार होने जा रहा है ट्राई करोगी…?” मैंने कहा- “ये सब मॉडलिंग-वॉडलिंग मेरे से नहीं होगा.” जब पटना वुमनिया क्लब का डांडिया नाइट प्रोग्राम हो रहा था मैं डांडिया इंज्वाय करने दोस्तों के साथ गयी थी. वहां पर मिसेज गोल्बल बिहार के लिए नीतीश चंद्रा ऑडिशन ले रहे थें. मैंने भी यूँ ही ऑडिशन दे दिया मगर डिसाइड नहीं था कि मुझे भी करना है. उसके बाद 2 महीने थे मरे पास ये डिसाइड करने के लिए कि हाँ या ना. तीन-चार बार नीतीश चंद्रा से मेरी टेलीफोनिक बात हुई. वे पूछ रहे थें कि “क्या करना है..?” लेकिन तब फैमली में भी लोग ठीक से बता नहीं पा रहे थें. हसबेंड और भाई से पूछा तो दोनों ने कहा – “देख लो, मुझे समझ में नहीं आ रहा है.” फिर करते-करते इतना समय बीत गया कि अब 5 दिनों का ग्रूमिंग सेशन शुरू हो चुका था. फिर मैं फर्स्ट डे ग्रूमिंग में गयी और सिर्फ बैठकर देखी कि क्या हो रहा है. उसी दिन हमारी किट्टी पार्टी थी फ्रेंड्स के साथ. वहां उनलोगों से बात हुई तो सबने कहा – “तुम में टैलेंट है. हो सकता है यहाँ से तुम्हारा टर्निग पॉइंट आ जाये और तुम इसी लाइन में आगे बढ़ जाओ.” फिर मैंने डिसाइड किया कि मुझे करना है. तब मेरे हसबेंड के पैर का अंगूठा फ्रैक्चर हो गया था और वो बेडरेस्ट में थें. वे मेरे साथ जा-आ तो नहीं सकते थें फिर भी मोरली उन्होंने मेरा बहुत सपोर्ट किया. तब अपने दो बच्चों को छोड़कर ग्रूमिंग के लिए घर से निकलना होता था और लगभग पूरा-पूरा दिन बीत जाता था. तब हम सिंगल फैमली में थें इसलिए उस वक़्त मुझे सारा कुछ अकेले ही मैनेज करना पड़ा. तीन-चार दिन मैंने ग्रूमिंग क्लास किया. और 18 दिसंबर, 2016 को वह शो हुआ जहाँ मैं मिसेज ग्लोबल बिहार की फर्स्ट रनरअप रही.
उसके बाद फिर सबका सपोर्ट मिलने लगा. फिर तुरंत हम सभी तीनो प्रतिभागिओं का दूरदर्शन के बिहार बिहान में लाइव शो हुआ. इस सफलता के बाद लोगों का एक्सपेटेशन मुझसे बढ़ गया. फ्रेंड्स पूछते- “अब क्या कर रही हो… अगला स्टेप क्या है..?” यह सोचकर डिप्रेशन भी होता था कि अरे अब क्या करें, पटना में कोई स्कोप नहीं है, क्या कर सकते हैं… लेकिन जो भी मिलता वही पूछता, हम परेशान हो गए. मैंने पत्रकारिता का कोई कोर्स नहीं किया था फिर भी कुछ समय बाद मैं बिहार न्यूज में गयी. वहां न्यूज एंकरिंग किए. उसके बाद मैं पटना दूरदर्शन की सहायक निदेशिका से मिली. उन्होंने मुझपर भरोसा करके बिना कोई इम्तहान लिए अपने लाइव शो ‘एक मुट्ठी धूप’ (तब जिसका नाम फुर्सत घर था) में बैठा दिया. आज डेढ़ साल हो गए तब से मैं उसी शो में कंटीन्यू एंकरिंग कर रही हूँ.
ससुराल में मेरे सास -ससुर नहीं थें. मेरे हसबेंड चार-भाई और तीन बहन हैं. वे सबसे छोटे हैं. मेरे ननदें मेरे पापा-मम्मी की उम्र की थीं. मतलब पति के भाई-बहनों से हमारा एज गैप नहीं बल्कि जेनरेशन गैप था. शादी हुई थी हमारी 2002 मई में, अब 16 साल हो गएँ इस रिश्ते को. मेरी दीदी के ससुराल से मेरे पति का रिलेशन था. मैं इंटर में थी तो बैंकिंग की तैयारी कर रही थी. मुझे एक्जाम देने एम.पी. के कटनी जाना था. छठ के लिए तब मेरी सारी फैमली गया से शेरघाटी जा चुकी थी. और मैं दीदी के यहाँ रुक गयी थी क्यूंकि छठ के अगले ही दिन मुझे ट्रेन पकड़नी थी. मेरे हसबेंड भी तब दीदी के ससुराल आये हुए थें. सुबह का अर्घ्य देने के दिन वो मुझे देखें तो फिर अपने घर से अपनी बहन को भेजें कि मुझे इस लड़की से शादी करनी है. उस वक़्त मेरे रिश्ते की बात कहीं और चल रही थी. उनलोगों को हम पसंद थें और सबकुछ फ़ाइनल था कि बस अब इंगेजमेंट होना है. वो भी बहुत कम समय में 10 -15 दिनों के अंदर हुआ. तब मम्मी ने कहलवा दिया कि “नहीं, इसकी शादी तो फ़ाइनल हो चुकी है.” लेकिन बाद में पापा-मम्मी को कुछ पता लगा फिर वो रिश्ता कैंसल कर दिया. और जब यह बात मेरे हसबेंड को पता चली तो फिर से उन्होंने अपना रिश्ता भेजा. तब इनकी पूरी फैमली मुझे देखने आयी थी. जब हमारे तरफ से पूछा गया कि “फाइनली क्या करना है ?” तो मेरे हसबेंड के ब्रदर इन लॉ बोले- “हाँ-ना तो पहले ही हो चुका है. अब जब लड़का बोल दिया कि मुझे शादी करनी है और यहीं करनी है तो हमलोग तो बस फॉर्मेलिटी के लिए आये हैं कि चलो एक बार ज़रा फैमली से मिल लें.” और तब हमारे घरवाले इतने श्योर नहीं थें कि वो लोग बिल्कुल फ़ाइनल ही करने आये हैं. पहले एक ट्रेडिशन चला था कि लड़की देखने जो आते थें पता नहीं क्यों उससे इंग्लिश में कुछ लिखवाते थें शायद यह जानने के लिए कि लड़की पढ़ी-लिखी है या नहीं. मुझसे भी लिखवाया गया. मैंने इतने इंग्लिश वर्ड पेज में भर दिए कि अब आप पढ़ते रहो. और मुझे गुस्से के साथ-साथ हंसी भी आ रही थी. उतने में में मेरी ननद बोलीं कि “चलो टेरिस पर चलते हैं.” साथ में टेरिस पर हसबेंड के भाई की बेटी भी थी. वहां मुझसे बात करने के दौरान उन्होंने मेरे हाथ-पैरों को इतने गौर से देखा कि मुझे सब समझ में आ गया. यह देखने की रस्म दीदी के घर पर हो रही थी. उनलोगों के जाते ही मैं दूसरे कमरे में कपड़े चेंज करने गयी और फिर आकर रोते हुए यह बोली कि “हम इस फैमली में शादी नहीं करेंगे, ये कोई तरीका है देखने का.” मम्मी को बोलकर कि तुमलोग रहो, हम जा रहे हैं और गुस्से में पैर पटकते हुए नीचे उतर गई, रिक्शा बुलाई और फिर अकेले ही अपने घर निकल गयी. बाद में उनलोगों का फोन आया कि “ठीक है, ये सब होता है, नार्मल चीजें हैं.” लेकिन वो मेरे लिए नार्मल नहीं था. कई लोगों ने तब मम्मी-पापा को ये भी समझाया था कि “यह शुरू से सिंगल फैमली में रही है, इसकी आप ज्वाइंट फैमली में शादी कर रहे हैं?”
लेकिन पता नहीं क्यों उसके बाद भी मेरी शादी वहां हो गयी. वो कहते हैं ना जोड़ी ऊपर से बनकर आती है. कहीं-ना-कहीं अप्स एन्ड डाउन होते हुए मार्च में इंगेजमेंट हुआ और मई में हमारी शादी हो गयी. सबसे अच्छी बात शादी में ये हुई थी कि मेरे हसबेंड रंजीत ने बोला था हम दहेज़ नहीं लेंगे और वो नहीं लिए. इन सब चीजों ने कहीं-ना-कहीं मुझे मेरे हसबेंड और इनकी फैमली से जोड़ा. शादी के एक महीने तक हम गया में ही थें. कई बार हमलोगों का प्लान बना घूमने जाने का लेकिन कैंसल हो जा रहा था. उसी टाइम रिलेशन में एक शादी थी राजस्थान में तो प्लानिंग हुई कि हम दोनों ही वहां चले जाएँ. इसी बहाने हमारा घूमना भी हो जायेगा. उस टाइम फिर लोगों ने प्लान चेंज कर दिया. और मेरे घर की सारी फैमली गयी लेकिन हम नहीं गएँ. फिर मुझे बड़ा धक्का लगा कि सबलोग गएँ मुझे छोड़कर. मन में एक टीस थी कि मायके में तो मम्मी-पापा हमलोगों को कहीं भी साथ लेकर जाते थें और यहाँ तो हमें छोड़कर जा रहे हैं. बहुत गुस्सा अंदर से था. फिर दो महीने बाद हम दिल्ली, चंडीगढ़, कुल्लू-मनाली ये सभी जगह गएँ. तब थोड़ा गुस्सा शांत हुआ कि चलो हम कहीं तो घूमने निकलें बाहर.
मुझे ससुराल में एडजस्ट करने में बहुत ज्यादा प्रॉब्लम हुई. क्यूंकि उनकी सोच थी कि आजकल की लड़की आ रही है. उन्होंने पहले से ही मेरे लिए एक मेंटिलिटी बना रखी थी. लेकिन फिर कुछ समय बाद वो फैमली मेरे लिए इतनी क्लोज हो गयी कि अब हम सभी एक-दूसरे से बहुत ज्यादा प्यार करते हैं. लेकिन उस टाइम चूँकि हमारा भी एज कम था, एक्सपेक्टेशन मेरा बहुत था कि मुझे भी ये चीज मिलनी चाहिए. बचपना बहुत ज्यादा था. तब मेरे पति के बहुत से रिलेटिव जो मेरे हमउम्र थें बोलते थें कि – “ये लड़की मेरे घर आनी चाहिए थी, मेरे साथ शादी होनी चाहिए थी.” सुनकर अच्छा लगता था.
दो साल बाद जब मैं प्रेग्नेंएट हुई तो घर में बहुत सारी प्रॉब्लम हुई. वो पूरे 9 महीना हम पूरे डिस्टर्ब रहें क्यूंकि उस वक़्त मुझे बहुत से लोगों का सपोर्ट नहीं मिला जो हम एक्स्पेक्ट किये थें. मेरी शादी के एक साल बाद से ही मेरे पापा हॉस्पिटलाइज रहने लगे थें और एक दिन उनका देहांत हो गया. उस बुरे वक़्त में हसबेंड के आलावा मुझे और लोगों का उतना सपोर्ट नहीं मिला और यही सोचकर मैं तब दुखी रहती थी. तब पापा के देहांत के एक महीने बाद मुझे पता चला कि मैं प्रेग्नेंट हूँ. एक अच्छी और बुरी खबर एक साथ आयी थी. घरवालों को मेरे माँ बनने की ख़ुशी थी तो वहीँ मुझे पापा को खो देने का गम था. तो वो चीज हमें अंदर से बहुत कमजोर भी बनाई और मजबूत भी. उस वक़्त मेरे हसबेंड जब मुझे मायके से लेने आये थें तो मेरे दिल की धड़कने बढ़ गयीं कि मुझे फिर से वहां जाना होगा, उस माहौल में जहाँ जेनरेशन गैप है. फिर धीरे-धीरे मैं एडजस्ट करती चली गयी और तब बहुत से अप्स एन्ड डाउन के बाद फिर सबकुछ अच्छा हो गया. बाद में वही फैमली कहने लगी कि अगर शादी करनी है तो ऐसी ही लड़की होनी चाहिए. तब हम फैमली से अलग हुए तो बस जॉब के लिए हुए, आज भी हम फैमली से साथ बहुत क्लोज हैं.