नाजिया गुल की निर्देशित शॉर्ट फिल्म ‘बेटी’ ने 9 वें जागरण फिल्म फेस्टिवल में सराहना पायी

नाजिया गुल की निर्देशित शॉर्ट फिल्म ‘बेटी’ ने 9 वें जागरण फिल्म फेस्टिवल में सराहना पायी

“जुनून इस कदर कि छू लूँ आसमान, खुद की क़ाबलियत से बनाना है मक़ाम…मुश्किलों में भी लेना है साहस भरी मुस्कान कि जमाना याद करे बनाऊं ऐसी मुकम्मल पहचान…”
यह हौसले हैं उस लड़की के जिसने पहले स्पोर्ट्स में अपना करियर बनाना चाहा लेकिन एक हादसे ने उसका रुख मोड़ दिया रंगमंच की तरफ…. और फिर वहां सफलता का स्वाद चखने के बाद उसका सफर जा पहुंचा फिल्म-टीवी की दुनिया में जहाँ बहुत कम समय में वह अपना हुनर साबित भी करने लगी है.
बिहार के पटनासिटी की रहनेवालीं नाजिया गुल जिनकी जिंदगी में करियर का एक रास्ता बंद हुआ तो फिर दूसरा सुनहरा रास्ता बहुत जल्द खुल गया. अभी 9 वें जागरण फिल्म फेस्टिवल, पटना में नाजिया की शॉर्ट फिल्म ‘बेटी’ का प्रदर्शन हुआ जो कन्या भ्रूण हत्या पर केंद्रित है. सामाजिक सरोकार से जुड़ी इस फिल्म को बहुत सराहना भी मिली. इसमें एक्टिंग करने के साथ-साथ नाजिया ने लेखन व निर्देशन भी किया है. नाज़िया अभी हाल-फिलहाल तक मुंबई में बालाजी के लिए बननेवाले कई सीरियलों यथा ‘चन्द्रनंदिनी’ ‘कसौटी प्यार की’ में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर रही थीं.

पटना यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर चुकी नाजिया को बचपन से ही कुछ अलग करने की तमन्ना थी. जब वे हाई स्कूल में थीं तभी से स्पोर्ट्स खासकर लॉन टेनिस का ऐसा क्रेज चढ़ा कि फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. स्कूल से ही स्टेट लेवल पर लॉन टेनिस में कई पुरस्कार जीते. स्पोर्ट्स डे पर मुख्यमंत्री के हाथों सम्मानित होने के बाद तो हौसला और भी बढ़ गया. 10 वीं के बाद स्पोर्ट्स में ही करियर बनाने का निश्चय किया. मगर प्रैक्टिस के दौरान चोटिल हो जाने की वजह से डॉक्टर ने एक-दो साल लॉन टेनिस नहीं खेलने की हिदायत दे दी. नाजिया ने फिर एक नया फैसला लिया. बचपन से ही एक्टिंग में बड़ा मन लगता था. ऐसे में उनकी एक फ्रेंड ने सुझाव दिया- “तुम ऐक्टिंग में करियर बना सकती हो.” शुरुआत में नाजिया ने एक्टिंग में एडमिशन लेने की बात घर में किसी को नहीं बताई. दो-दिन बाद सिर्फ मम्मी को यह जानकारी दी. तब मम्मी का यही रिएक्शन था, “पापा क्या बोलेंगे, अगर उन्हें पता चला तो?” फिर वे बोलीं कि “ठीक है जब यही करना है तो करो, मैं तुम्हारे पापा से बात कर लूंगी.” नाजिया की माँ को पढ़ने का बहुत शौक था लेकिन कम उम्र में शादी होने के बाद बहुत आगे तक नहीं पढ़ पायीं. तब उनकी सोच थी कि उनका सपना पूरा नहीं हो पाया तो कम से कम मेरी बेटी का तो सपना पूरा हो. जब पापा को पता चला तो शुरू में बहुत गुस्सा हुए कि स्पोर्ट्स छोड़कर ये एक्टिंग का फिल्ड क्यों ? फिर बाद में वो मान गए और पूरे परिवार का सपोर्ट उन्हें मिलने लगा.

 

कालिदास रंगालय में एक प्ले       करती हुईं नाज़िया गुल

 

 

फिर अभिनय की शुरुआत हुई 2014 में जहाँ अभिनय की बारीकियां सीखते हुए नाजिया कालिदास रंगालय में हुए दर्जनों नाटकों में प्ले करने लगीं. पहला प्ले था ‘इतिहास चक्र’ जिसमे मोहिनी का निगेटिव किरदार निभाया. नाटक खत्म होने के बाद सीनियर डायरेक्टर की शाबाशी मिली और उन्होंने इसी लगन से आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. फिर एक के बाद एक कई नाटकों में काम किया. एक्टिंग सीखते हुए ही सर का काम गंभीरता से देखा करती थी. इसी तरह खुद से डायरेक्शन की विधा भी सीख गयी. एक दिन नाजिया ने सर से कहा- “मैं डायरेक्शन करना चाहती हूँ.” वे खुश होकर बोलें कि “डायरेक्शन करने से हर एक कैरेक्टर को डायरेक्टर जीता है. इससे तो एक्टिंग में और निखार आएगा.” फिर 2015 मार्च में नाजिया ने पहली बार ‘लाखों‘ का डायरेक्शन किया जिसमे एक्टिंग भी की. फिर 13 सितंबर 2015 को कालिदास में ही नाजिया के निर्देशन में प्ले ‘दास्ताने मोहब्बत’ दिखाया गया. रंगमंच की दुनिया में उनके आदर्श हैं नीरज एवं प्रदीप दादा. नीरज सर ने कभी डांटकर तो कभी प्यार से उन्हें एक्टिंग की हर बारीकियां सिखायीं.

 

 

 

2015 में राइजिंग स्टार अवार्ड से सम्मानित होती हुईं नाजिया

 

 

कुछ शॉर्ट फिल्मों में नाजिया ने अपने अभिनय का लोहा मनवाया जिनमे अभिजीत रॉय के डायरेक्शन में बनी शॉर्ट फिल्म ‘अ हेलमेट गर्ल’ प्रमुख है. उनके काम को देखते हुए 2015 में ‘सिनेमा एंटरटेनमेंट’ ने उन्हें पटना में ‘राइजिंग स्टार’ अवार्ड से सम्मानित किया था. फिर बिहार में ही कई शॉर्ट फिल्मों में अभिनय करने के बाद नाजिया ने मुंबई की तरफ अपना रुख किया और वहां टीवी सीरियलों के डायरेक्शन से जुड़ गयीं. अब उन्होंने शॉर्ट फिल्मों के निर्देशन में भी हाथ आजमाना शुरू कर दिया है.

 

 

 

शॉर्ट फिल्म ‘इंसानियत’ का डायरेक्शन करती हुईं नाजिया

 

 

उनकी निर्देशित शॉर्ट फ़िल्म ‘इंसानियत’ हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे पर केंद्रित है जिसके माध्यम से वह यह संदेश देना चाहती हैं कि किसी के बहकावे में आकर आप अपने अंदर की इंसानियत को ना मिटायें और आपस में लड़ने से कुछ हासिल नहीं होगा. समाज में जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से उनके डायरेक्शन में बनी फिल्म ‘बेटी’ को 9 वें जागरण फिल्म फेस्टिवल के लिए चुने जाने पर उनके हौसले और बढ़ चले हैं.

 

 

‘बोलो ज़िन्दगी’ के साथ अपने संस्मरण साझा करती हुईं नाजिया गुल

 

 

 

नाजिया इस फ़िल्म के बाद मुस्लिम लड़कियों के एजुकेशन से जुड़े सब्जेक्ट पर शॉर्ट फिल्म बनाना चाहती हैं. वे मानती हैं कि मुस्लिम समाज में लड़कियों की शिक्षा उतनी अच्छी नहीं है. कम शिक्षित होने पर अगर उनके पति का देहांत या तलाक़ हो जाता है तो वे फिर जीवन में कुछ नहीं कर पातीं..इसलिए अपनी नेक्स्ट फ़िल्म के माध्यम से नाजिया अपने मुस्लिम समाज की लड़कियों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना चाहती हैं. इसके आलावा जल्द ही नाजिया अपनी पहली बॉलीवुड फिल्म का डायरेक्शन शुरू करनेवाली हैं.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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