जिस टाइम में मैं आयी उस टाइम में भोजपुरी में सिर्फ वल्गैरिटी बिकती थी : देवी, लोक-गायिका

जिस टाइम में मैं आयी उस टाइम में भोजपुरी में सिर्फ वल्गैरिटी बिकती थी : देवी, लोक-गायिका

 

मेरी स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई छपरा होम टाउन में हुई. सिवान के विधा भवन महिला कॉलेज से ग्रेजुएशन कम्प्लीट कर मैंने दिल्ली के गंधर्व संगीत महाविधालय से संगीत की तालीम हासिल की. इसके बाद श्री राम कला केंद्र से कत्थक की शिक्षा ली. गायन का शौक होने की वजह से बहुत छोटी उम्र में ही गायन शुरू कर दिया था.

 

 

      बचपन में अपनी फैमली के साथ देवी (बीच में)

 

घर में मेरी परवरिश अच्छे से हुई. पापा सुलझे विचारों के थें लिहाजा, उन्होंने हमेशा से ही हमलोगों के अंदर जो इच्छाएं थीं, जो क्रिएटिविटी थी हमेशा ही बढ़ावा दिया. तो हमलोग शुरू से ही खेलकूद और म्यूजिक में अटैच रहें क्यूंकि मेरे पापा को लगता था कि ये जो म्यूजिक और खेलकूद है वो बच्चों के लिए बहुत ज़रूरी है. उनके स्वास्थ के लिए अच्छा है, उनके जीवन के लिए अच्छा है. मुझे भी पापा ने काफी प्रोत्साहित किया.

 

 

 

 स्कूली दिनों में गायन करती हुईं देवी

स्कूल-कॉलेज स्तर पर जब भी छपरा में कोई सिंगिंग कम्पटीशन होता पापा मुझे वहां ले जाते और मैं वहां उन्हें अपने प्रदर्शन से नाराज नहीं करती थी. फिर पता ही नहीं चला धीरे-धीरे कब ये शौक जुनून का रूप ले मेरा करियर बन गया. चूँकि हर सिंगर का एक सपना होता है कि वो टीवी चैनल्स पर आये, उसके गाने रिकॉर्ड हों तो जब मैं कमर्शियल लाइन में आयी तब बहुत सारे ऐसे पल आएं जब निराशा हाथ लगी. मेरा बहुत शौक था कि मेरा म्यूजिक एल्बम रिलीज हो. लेकिन जब कंपनियों में जाती थी तो कंपनियों का रवैया बहुत ही ज्यादा कमर्शियल होता, उनको बस बिकने से मतलब होता. तो जिस टाइम में मैं आयी उस टाइम में भोजपुरी में सिर्फ वल्गैरिटी बिकती थी और जब मैं कहती कि भिखारी ठाकुर के गाने गाना चाहती हूँ, महेंद्र मिशिर जी के गाने गाना चाहती हूँ तो कम्पनी इस बात के लिए रेडी नहीं थी. उन्हें लगता था कि ऐसे गाने बिक नहीं सकते हैं तो उस टाइम मुझे बहुत ही ज्यादा स्ट्रगल करना पड़ा. बहुत ही ज्यादा वे लोग प्रेशर देते थें कि नहीं आप वल्गर गाने गाइये तभी आप मार्केट में बिक सकती हैं, लेकिन मैं अपनी बात पर कायम रही. मैंने कहा- मैं जब गाउंगी तो वही गाने गाउंगी जो समाज में अच्छा मैसेज देते हों, और जो मेरी आत्मा को अच्छा लगता हो. फिर मैंने कई सालों तक कोई रिकॉर्डिंग नहीं की बस मैं अपनी जगह पर अडिग थी कि मुझे अच्छे ही गाने गाने हैं और ऐसा हुआ कि अंततः फिर म्यूजिक कम्पनी को ही मेरे सामने झुकना पड़ा.

‘बोलो ज़िन्दगी’ के साथ अपने संस्मरण बयां करती हुईं देवी

उन्ही दिनों जब एक दिन अचानक मुझे म्यूजिक एल्बम निकालने का आइडिया आया तो फिर उसके लिए मैंने दिल्ली जाकर काफी स्ट्रगल किया. तब टी-सीरीज ने मुझे रिजेक्ट कर दिया. इस बीच मेरे गाये लोकगीतों का एक एल्बम ‘पूर्वा बयार‘ एक छोटी सी कम्पनी द्वारा निकाला गया. यह एल्बम माउथ पब्लिसिटी से काफी हिट हो गया. इसके बाद हम दोनों की चल निकली. वो म्यूजिक कम्पनी भी स्टैब्लिश हो गयी. इसके बाद बहुत जल्द ही टी-सीरीज ने मुझे बुलाकर एक एल्बम तैयार करवाया. फिर टी-सीरीज से मेरा पहला सुपरहिट एल्बम आया ‘अईले मोरे राजा’. ये इतना ज्यादा हिट हुआ की टी-सीरीज के अलावा और कई कंपनियों की लाइन लग गयी. उसके बाद मुझे बहुत ज्यादा स्ट्रगल नहीं करना पड़ा. फिर तो एक के बाद एक एल्बम और स्टेज शो मिलने लगे. ‘राजधानी पकड़ के आ जइयो’, ‘यारा’,’बावरिया’, ‘शेरावाली’, ‘फिर तेरी याद आई’ और छठ एवं दुर्गापूजा के ऊपर बहुत से भक्ति एल्बम खास रहें. 2012-13 में मैंने एक हिंदी फिल्म प्रोड्यूस किया ‘जलसा-घर की देवी’, जिसमे मुख्य किरदार भी निभाया था. फिल्म में रविंद्र जैन जी का संगीत था. भले ही यह मूवी उतनी कमर्शियल सक्सेस नहीं कर पायी लेकिन तारीफें-सराहना हर तरफ से मिली. एक भोजपुरी फिल्म ‘गंगा किनारे प्यार पुकारे’ जिसमे मैंने सेकेण्ड लीड रोल निभाया, एक डॉक्टर के किरदार में थी. लेकिन मेरा हमेशा ध्यान गायिकी पर ज्यादा रहा .

मैं चाहती हूँ कि जो भी गाऊं मुझे अच्छा लगे और साथ ही साथ एक अच्छे भाव उत्त्पन करे. आजकल के खासकर  भोजपुरी के गाने स्तरहीन हो गए हैं. वैसे गानों से अच्छा है मैं गाऊं ही नहीं क्यूंकि ऐसे गाने समाज को बिगाड़ने वाले होते हैं, महिलाओं की सीधे-सीधे बेइजत्ती करते हैं. मैं मानती हूँ कि इसे बढ़ावा देने के लिए कलाकारों का भी दोष है. सिर्फ फिल्मों में नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड में वल्गैरिटी है. लेकिन कमाल की बात देखिये कि जो वल्गैरिटी को गाते-बढ़ाते हैं वही आगे बढ़ गए हैं. अश्लील गीत आज महिलाएं भी गा रही हैं तो जितना वैसे गीत गानेवाले पुरुष कलाकार दोषी हैं उतना ही महिलाएं भी दोषी हुईं. निर्माता-निर्देशक बहुत बड़ा जिमीदार होता है अच्छे और गलत के लिए. मैं कम कपड़ों में एक्सपोज को बुरा नहीं मानती. लेकिन यहाँ औरतों को शो पीस बनाकर रख दिया गया है. लेकिन फिर भी जो वास्तव में कला है, रियलिटी है उसको भले ही टाइम लगे लेकिन वो एक मुकाम पर पहुंचेगी ही. और सच्ची कला को किसी शॉर्टकट की ज़रूरत नहीं होती.

 

मुझे हर तरह के गाने का शौक है लेकिन गजल और रोमांटिक सॉन्ग ज्यादा फेवरेट हैं. चूँकि मुंबई म्यूजिक और आर्टिस्टों की जगह है इसलिए 2006 में मैंने मुंबई शिफ्ट किया. बॉलीवुड की एक हिट फिल्म ‘थैंक यू’ में म्यूजिक डायरेक्टर प्रीतम के साथ काम किया. एक रिमिक्स सांग ‘रजिया गुंडों में फंस गयी‘ गाय जो काफी पसंद किया गया. एक आर्ट मूवी ‘वूमेन फ्रॉम द ईस्ट’ में गाने गए हैं जिसे टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में भेजा गया.

 

 

 

 

 

ऐसा नहीं है कि मेरी लाइफ में अब कोई स्ट्रगल नहीं है…पहले खुद को स्टैब्लिश करने का स्ट्रगल था तो अब उस साफ़-सुथरी छवि को बनाये रखने का स्ट्रगल है. तो मुझे लगता है कि जब आप अपने सिद्धांतों पर कायम रहते हैं तो आपको परिस्थितियां भी सपोर्ट करती हैं. मैं कभी विपरीत परिस्थिति में झुकी नहीं और आज जो मेरे अपने ऑडियंस हैं उन्हें और उन घर-परिवारों को धन्यवाद देना चाहूंगी जिन्होंने मेरे अच्छे गीतों को बहुत अच्छे से एक्सेप्ट किया. और मैं हमेशा ये मानती हूँ कि जो क्वालिटी चीजें हैं, अच्छी चीजें हैं वही कायम रहती हैं, उसका असर बहुत दिनों तक लोगों के हृदय में रहता है.

 

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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