स्कूल बंक करने पर पापा बेल्ट से पिटाई करते थें : लक्ष्मी रतन शुक्ला, युवा एवं खेल मंत्री, प. बंगाल

स्कूल बंक करने पर पापा बेल्ट से पिटाई करते थें : लक्ष्मी रतन शुक्ला, युवा एवं खेल मंत्री, प. बंगाल

मेरा जन्म हावड़ा (प.बंगाल) में हुआ. पिताजी यू.पी. से बिलॉन्ग करते हैं. मेरी खेल-कूद में इतनी व्यस्तता रही कि 10 वीं के बाद नहीं पढ़ पाया. हम साधारण परिवार से थें. हर आदमी की जिंदगी में माता-पिता का सपोर्ट अहम रहता है. मुझे भी माँ-बाप का बहुत सपोर्ट मिला. आज 7 साल हो गएँ माँ अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन हमलोगों के लिए उनका त्याग और सेवा भावना याद आता है मुझे. हम दो भाई है. दाल-भात-चोखा खाकर बड़े हुए हैं. बचपन से ही दूसरे सम्पन्न बच्चों को देखकर हमें कभी लगा नहीं कि वैसा हमें भी मिलना चाहिए, मन में कोई जलन भाव नहीं था. जो घर में मिलता वही खा लेते थें. पहले भी हम घर में खुद ही खाना हाथ से निकालकर खाते थें और आज भी खुद ही निकालकर खाते हैं. हर बच्चे के पिता बिजनेसमैन नहीं हो सकते, हर बच्चे के घर में गाड़ी हो नहीं सकती इसलिए हमे लगता है कि ऊपर वाला जैसे दे उसी हिसाब से चलना चाहिए. हमारे पिताजी का खेल के प्रति बड़ा रुझान था इसलिए हम दोनों भाई क्रिकेट, कैरम, फुटबॉल सब खेलें लेकिन फिर क्रिकेट में हम निकल गएँ. पिता जी के साथ खेल के मैदान में जाते थें जब क्लब के माध्यम से खेलते थें, स्कूल से भी खेलते थें. मैं विकेट कीपिंग करता था और जिस कैम्प से खेलता था पेस फाउंडेशन उसमे डेनिस लिली (मशहूर अंतर्राष्ट्रीय गेंदबाज) आते थें और ऑल ओवर इंडिया से बच्चों को सेलेक्ट कर ले जाते थें. हम विकेट कीपिंग करते थें और टेनिस बॉल क्रिकेट में बॉलिंग करते थें.

करीब 1000 -500 बच्चों का एक ट्रायल मैच था ईडन गार्डन में. हर क्लब का चिट्ठी लेकर जाना पड़ता था. हम जिस क्लब से प्रैक्टिस करते थें उस क्लब से हमे चिट्ठी नहीं मिला था क्यूंकि हम विकेट कीपर थें. तो यूँ ही पापा बोले कि – “जाओ एक बार बॉलिंग ट्रायल देकर आओ. मैं गया, पहले तो एंट्री नहीं मिली फिर बहुत देर इंतजार करने के बाद किसी तरह सबसे लास्ट में बॉलिंग करने का मौका मिला. बंगाल से दो लड़के सेलेक्ट हुए. एक मैं और एक फैजल. चूँकि इसके पहले हम विकेट कीपर थें और अगल-बगल होनेवाले छोटे-मोटे टेनिस बॉल क्रिकेट ट्रूनामेंट में ही बॉलिंग करते थें. ऐसे में यह सेलेक्शन मेरी लाइफ का टर्निग पॉइंट साबित हुआ. वहां से कारवां बढ़ता रहा. फिर अंडर 16 बंगाल के लिए खेलें, 2 साल ईयर बेस्ट हुए. अंडर 19 बंगाल खेलें, 2 साल ईयर बेस्ट हुए. फिर अंडर 19 वर्ल्डकप में मौका मिला तो साऊथ अफ्रीका गए. फिर वहां से आकर एक साल रणजी ट्रॉफी के लिए खेलें. उसी दौरान इंडियन टीम में सेलेक्शन हो गया. अच्छा परफॉर्मेंस रहा. 2 साल टीम के साथ खेलें उसके बाद फिर पैर (लेफ्ट लेग) फ्रैक्चर हो गया. अब बॉलिंग करने में दिक्कत होने लगी इसलिए हम बैटिंग करने लगें. उसके बाद आई.पी.एल. आया और हम जैसे युवाओं को बहुत स्कोप मिला. आई.पी.एल. आने के बाद तो सभी लोग मैच देखना चालू कर दिए. आई.पी.एल. में मेरा ऑल राउंडिंग परफॉर्मेंस हुआ. नाइट राइडर्स के लिए 6 साल खेलें. फिर एक साल दिल्ली, एक साल हैदराबाद के लिए और उसके बाद राजनीति के पिच पर खेलने आ गएँ.

लक्ष्मी रतन जी के चुनाव जीतने पर बधाई देती हुईं प.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

 

मैंने 10 साल बंगाल जोन के लिए कप्तानी भी की. इसलिए आज भी जितने मित्र हैं मुझे कैपटन ही बोलते हैं. आज से 10-12 साल पहले रोहन गावस्कर, देवांग गाँधी, दीपदास गुप्ता मुझे नेता जी कहकर बुलाते थें. बाद में दीदी (ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, प. बंगाल) का आशीर्वाद मिला और हम सच में नेता बन गए. दीदी ने मुझपर भरोसा करके पॉलिटिक्स में आने को कहा और फिर मेरे जो सपोटर्स-फ्रेंड थें सबका साथ मुझे मिला. लोगों को सेवा करने का पहली बार मौका मिला. जब यह ऑफर मिला तो हम जरा भी विचलित नहीं हुये. हालांकि हम एग्रेसिव हैं लेकिन सामनेवाले को पता नहीं चलने देतें. मुझे पिता जी की एक बात ध्यान में आती है कि “सौ बनाओ तो रसगुल्ला खाओ, जीरो बनाओ तो रसगुल्ला मत खाओ ऐसा नहीं होना चाहिए. हमारी लाइफ में ऐसा ही रहा. उतार हो चढ़ाव हो, हम एक टाइप के ही रहते हैं. चुनाव टिकट मिलने से हम बहुत ज्यादा खुश भी नहीं हुए थें और ना ही कभी मैच हारने से बहुत ज्यादा दुखी होते थें. लाइफ को बैलेंस करके चलना बहुत जरुरी है. लास्ट ईयर क्रिकेट खेले थें लेकिन अब नहीं खेलते. बस थोड़ा बहुत प्रैक्टिस कर लेते हैं. अभी व्यस्तता बढ़ गयी है. अभी हमने हावड़ा में क्रिकेट कोचिंग कैम्प एल.आर.एस. बांग्ला स्पोर्ट्स एकेडमी खोला है जो हिंदुस्तान का पहला कैम्प है जहाँ एक भी पैसा नहीं लिया जाता है. लगभग 8-9 सौ बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं. हमारे साथ खेलनेवाले संगी साथी ही वहां कोच हैं.

 

        पत्नी के साथ लक्ष्मी रतन शुक्ला

हमारी लव मैरिज हुई है. मेरे दो बच्चे हैं. पत्नी अभी हेल्थ डिपार्टमेंट में डिप्टी सक्रेटरी हैं. हम लोग एक जगह रहते थें. आमतौर पर हर व्यक्ति की लाइफ में जो प्रेम कहानी होती है मेरी भी वैसी ही स्टोरी है. दोस्ती-यारी, प्यार-मोहब्बत उसके बाद शादी. तब हम दोनों का ज्यादा घूमने का मौका नहीं मिला क्यूंकि तब वो पढ़ाई में व्यस्त रहती थीं और हम खेल में. लेकिन आज हम दोनों ही अपने- अपने काम में व्यस्त रहते हुए भी एक-दूसरे के लिए, परिवार के लिए वक़्त निकाल लेते हैं.
हम बचपन में ज्यादा स्कूल जाते नहीं थें. पढ़ाई में यूँ तो अच्छे थें लेकिन स्कूल जाते, एटेंडेंस करते और हाफ टाइम में निकल जाते खेलने के लिए. जब घर में शिकायत पहुँचती तो हम बहुत मार खातें. बेल्ट और चप्पल-जूते से पापा खूब पिटाई करते थें. जब टीचर घर में ट्यूशन पढ़ाने आते तो हम हमेशा भागने की टेंडेंसी रखते. जब टीचर को आते देख लेते तो कभी हम पलंग के नीचे छुप जाते थें, कभी पूजा करने बैठ जाते थें. लेकिन स्कूल और घर के टीचर लोग बड़े सपोर्टिव थें और हमारी शरारतों से वे लोग हार गए थें. तंग आकर उन्होंने हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया. भगवान की दया से हम इतना पढ़ लेते थें कि पास हो जाते थें. आज हम प्राउड फील करते हैं कि हनुमान जूट मिल हिंदी हाई स्कूल से पढ़कर हम यहाँ तक पहुंचे हैं.

 

 

‘बोलो ज़िन्दगी’ के साथ अपने संस्मरण बयां करतें प.बंगाल के खेल मंत्री श्री लक्ष्मी रतन शुक्ला

 

 

मैं यहाँ आपके माध्यम से बताना चाहूंगा कि सबसे बड़ी चीज शिक्षा है. स्कूल बहुत जरुरी है लेकिन आपको शिक्षा वहां से प्रॉपर नहीं मिल सकती. सिर्फ किताबी ज्ञान आपको आगे लेकर नहीं जा सकता. जो घर में हमलोग बड़े-बुजुर्गों से अपनों से बड़ों का आदर करना और भी बहुत कुछ संस्कार सीखते हैं तो वो बहुत इम्पोर्टेन्ट है. मुझे लगता है कि वही शिक्षा आदमी को आगे लेकर जाती है. कहीं-ना-कहीं हम देखते हैं कि जब आदमी ईगो में आता है तो ईगो से उसकी छाती चौड़ी नहीं होती बल्कि और कमजोर होती है. इसलिए मैं ‘बोलो जिंदगी’ के माध्यम से युवाओं को यही सन्देश देना चाहूंगा कि “हर आदमी से दोस्ती करो और अगर किसी से आपकी नहीं बने तो उससे दुश्मनी भी मत रखो. दूसरों के बारे में जितना हो सके कम बोलो और अपने बारे में ज्यादा सोचो.”

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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