चूल्हा-छुलाई की रस्म में मुझे हलवा बनाने को कहा गया जबकि मुझे खाना बनाना नहीं आता था : प्रेरणा प्रताप, एंकर, बिहार बिहान (दूरदर्शन बिहार)

चूल्हा-छुलाई की रस्म में मुझे हलवा बनाने को कहा गया जबकि मुझे खाना बनाना नहीं आता था : प्रेरणा प्रताप, एंकर, बिहार बिहान (दूरदर्शन बिहार)
बिहार बिहान (दूरदर्शन बिहार) में लाइव एंकरिंग करतीं   प्रेरणा प्रताप

मेरी शादी बहुत कम उम्र में हुई. मेरे पैरेंट्स तो उतने कंजर्वेटिव नहीं थें लेकिन मेरे दादा जी चूँकि जमींदार किसान थें और उनका पूरी फैमली पर बहुत दबदबा था. मेरे पापा भी उनसे डरते थें. मेरे पापा की 8 सिस्टर्स हैं और वो सिंगल ब्रदर हैं जिनकी मैं सिंगल डॉटर हूँ. तो उनपर बहुत प्रेशर था कि शहर में लड़की रह रही है पता नहीं कैसा माहौल होगा. मेरी सभी बुआ ग्रेजुएट हैं लेकिन सभी गांव में थीं. मैं शुरू से शहर में रह रही थी और कल्चरल एक्टिविटीज, डिवेट, टॉक शो इत्यादि में शुरू से पार्टिशिपेट किया करती थी. सोसायटी में होता है ना कि लोग ही प्रेशर डालते हैं कि ‘अरे उनकी बेटी तो बाहर जाती है, स्टेज पर बोलती है…देखिएगा कहीं लड़की हाथ से ही ना निकल जाये…’ ऐसी वाली धारणा थी तो मेरे दादा जी ने कहा कि ‘अच्छे घर में कोई बढ़िया लड़का देखकर शादी कर दो. पढ़ना होगा तो बाद में भी पढ़ लेगी.’ मैं प्लस टू करके पार्ट-1 में ऐडमिशन ली ही थी कि मेरी शादी हो गयी. मेरे दादा-दादी के प्रेशर की वजह से पापा ने बात काटी नहीं लेकिन माँ खुश नहीं थी, क्यूंकि वे नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटी की इतनी जल्दी शादी हो. उन्हें लगता था कि अगर मुझे पढ़ाया जाये तो मैं आगे बहुत कुछ कर सकती हूँ. लेकिन उस वक़्त मुझे बुरा बिल्कुल नहीं लगा था. तब इतनी इनोसेंट थी कि मुझे ऐसा लग रहा था कि ‘वाह, अब तो मेरी लाइफ चेंज होनेवाली है. अब मुझे पढ़ना नहीं है. मैं घूमने जाउंगी, शॉपिंग करुँगी. हसबेंड होगा, उसकी गाड़ी होगी. एक सपनेवाली दुनिया होती हैं ना वैसी वाली फिलिंग थी. ये नहीं था कि मेरी शादी हो रही है तो मैं रो रही हूँ.

प्लस टू में पढ़ने के दौरान प्रेरणा

 

पॉजिटिव पॉइंट ये था कि जहाँ मेरी शादी हुई मेरे ससुराल में सभी लोग हाइली एजुकेटेड हैं. मेरी सास खुद डबल एम.ए. हैं. मेरी सारी नंदन लेक्चरर हैं. मेरे जेठ साइंटिस्ट तो जेठानी लंदन में डॉक्टर हैं. पढ़ी-लिखी फैमली थी इसलिए सबने बोला कि अच्छी फैमली और अच्छा लड़का है, ऐसा घर जल्दी नहीं मिलता तो मैंने ख़ुशी-ख़ुशी शादी की. मेरे पति का नाम मूर्तिकेश परमेश्वर है, वो टेलीकॉम इंजिनियर हैं. घर बैठे मुझे छ: महीने, एक साल हो गएँ तब मुझे लगा कि अब मैं क्या करूँ…? मैं पूरे टाइम घर सजाऊँ, खुद सज-संवरकर रहूं तो यह मेरी जिंदगी नहीं है. फिर मुझे बहुत झिझक महसूस होती थी कि मैं ग्रेजुएट भी नहीं हूँ. तो मुझे उस वक़्त बहुत बुरा लगने लगा. तब जहाँ भी मैं जाती थी मुझे रिज्यूम में मेंशन करना होता था. एक जगह आरजे के लिए गयी थी. उन लोगों को मेरी आवाज पसंद आई लेकिन उन्होंने बोला कि ‘आप ग्रेजुएट भी नहीं हैं !’ इसलिए मुझे लगा कि पढाई बहुत ज़रूरी है. मुझे अपनी क्वालिफिकेशन तो कम्प्लीट करनी पड़ेगी. फिर मैंने तीन साल के गैप के बाद अपनी पढ़ाई शुरू की और अपना मास्टर कम्प्लीट किया. अब जाकर मुझे संतोष है कि स्टडी की जो जेनरल सीमा होती है वो मैंने कर लिया है. इस बीच मेरे हसबेंड से ज्यादा मेरी सासु माँ ने बहुत सपोर्ट किया. जबकि मेरे हसबेंड को ये था कि ‘बाहर जा रही हो, क्या जरुरत है इतनी मेहनत करने की, क्यों परेशां होती हो !’ लेकिन मेरी सासु माँ जो खुद टीचिंग फिल्ड में थीं उन्होंने कहा कि ‘नहीं, खुद सेल्फ डिपेंड होना बहुत जरुरी है. अगर तुम्हारे अंदर ये इच्छा है, तुम करना चाहती हो तो तुम करो.’ यहाँ पर मैं एक बात कहना चाहूंगी कि किसी भी लड़की को अगर उसके ससुरालवालों का सपोर्ट मिलता है तो वह लड़की बहुत ज्यादा आगे बढ़ सकती है. अगर मुझे अच्छी फैमली नहीं मिली होती तो मैं आगे नहीं बढ़ पाती, मैं कुछ नहीं कर पाती. मैं आज इस मुकाम पर नहीं हो पाती. लोग मुझे नहीं जानतें कि प्रेरणा कौन है ? मैं जर्नलिज्म की डिग्री लिए बिना ही पत्रकारिता फिल्ड में आयी. शुरू से मैं चाहती थी की पत्रकार बनूँ क्यूंकि मैं जब न्यूज एंकर को टीवी पर देखती थी तो मुझे अंदर से लगता था कि मैं भी उनकी तरह बनूँ. मुझे कुछ पता नहीं था कि इसके लिए जर्नलिज्म की कोई पढ़ाई भी होती है. लेकिन फिर मैंने देखा कि मेरे जाननेवाले मेरे जूनियर जो कल तक मुझसे सलाह लिया करते थें वो टीवी पर दिख रहे हैं या उनका अख़बार में कॉलम आ रहा है. और मैं हूँ कि ऐसे ही बैठी हूँ. फिर मैंने एक छोटे से लोकल चैनल पर टिकर चलता हुआ देखा कि एंकर की जरुरत है. मैं वहां जाकर मिली. चैनल छोटा हो या बड़ा मेरा मानना था कि अगर आप सीखना चाहते हैं तो कहीं से भी सीख सकते हैं क्यूंकि शुरुआत आपको कहीं- न -कहीं से तो करनी है. वहां मैं लगभग एक साल रही और जब वहां पहली बार गयी तो वहां के कैमरामैन और रिपोर्टर ने कहा कि ‘ऐसा नहीं लगता कि आप पहली बार कैमरा फेस कर रही हैं.’ शायद वह एक जुनून था मेरे अंदर की मुझे करना है तो मैं घर पर भी बैठकर बोलने की प्रैक्टिस करती थी. वहां से मैं महुआ न्यूज और फिर बाद में मैं दूरदर्शन बिहार से जुड़ गयी. और अभी 7 सालों से दूरदर्शन में हूँ और तीन साल से बिहार बिहान में लाइव एंकरिंग कर रही हूँ.

‘बोलो ज़िन्दगी’ के साथ अपना संस्मरण बयां करतीं प्रेरणा प्रताप

जब नयी-नयी शादी हुई थी तो मुझे खाना भी बनाना नहीं आता था. मायके में ऐसा था कि मम्मी ही खाना बनाकर देती थी और प्लेट उठाकर ले जाती थी. मतलब मैं वहां कोई काम नहीं करती थी. जब ससुराल आयी तो मम्मी को कहा था कि ‘तुमलोग दहेज़ में जो भी देना हो दे देना लेकिन मेरे को एक ऐसा इंसान दे देना जो खाना बनाये.’ फिर मैं रोने के साथ बोली कि ‘तुमलोग अभी शादी करा रही हो, मुझे खाना बनाना पड़ेगा.’ मैं अक्सर सुनती थी कि बहु ने खाना अच्छा नहीं बनाया तो सास ने गुस्से से खाना फेंक दिया…’ तो मुझे ऐसी बातों का डर था क्यूंकि मैं बहुत इनोसेंट थी. अभी के टाइम की लड़कियों की तरह बहुत स्मार्ट नहीं थी. ससुराल आने पर चूल्हा-छुलाई के रस्म के दौरान जिसमे बहु को चूल्हा छुआते हैं और फिर उससे कुछ मीठा बनवाते हैं, तो मेरी सासु माँ ने बोला – ‘बेटा, हमारे यहाँ बेसन का हलवा बनता है, तो तुम्हें आता है ना.’ और मैंने झूठ बोला कि ‘हाँ मम्मी जी, बनाती हूँ ना.’ जबकि मैंने आजतक कभी बेसन का हलवा नहीं बनाया था. फिर मैंने अपना कॉमन सेन्स यूज किया कि हलवा घी में बनता होगा और कभी मम्मी को बोलते सुना था कि बेसन बहुत भूनते हैं. फिर मैंने गेस करके हलवा बनाया और मैंने देखा था कि मेरे ससुर जी डायमंड का एक पैंडेंट लेकर बैठे थें कि बहु हलवा बनाकर लाएगी तो मैं उसको दूंगा. और भी लोग गिफ्ट लेकर बैठे हुए थे. तब मेरी बच्चों वाली बुद्धि थी कि अगर मैं अच्छा नहीं बनाउंगी तो वो डायमंड पैंडेंट नहीं मिलेगा. बस किसी तरह मुझे उनके हाथ में जो गिफ्ट थी वो चाहिए थी. गेसिंग गेम करते-करते ही मैंने बेसन का हलवा बनाया. सौभाग्य से हलवा बहुत अच्छा बन गया और वो सभी गिफ्ट मुझे मिल गए. मैं बहुत खुश थी कि लाइफ में पहली बार हलवा बनाया जो टेस्टी था और गिफ्ट मेरे पास थें.

प्रेरणा प्रताप की शादी की एक तस्वीर

शुरूआती दिनों का एक और वाक्या है जो आज भी मन को गुदगुदा जाता है. मैं हनीमून पर हसबेंड के साथ दार्जलिंग गयी थी. वहां पर बहुत फॉग था और बारिश भी हो रही थी. मेरे हसबेंड ने मुझसे मजाक में कहा था कि ‘देखो छोटी सी तो हो, खो जाओगी तो बच्चा समझकर तुम्हें कोई ले भी जायेगा.’ तो मैं झेंपकर बोली- ‘ऐसे कैसे हो सकता है कि मैं खो जाउंगी. आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं.’ ये 2006 की बात है तब अभी के ज़माने की तरह सभी के हाथ में मोबाईल नहीं होता था. सिर्फ हसबेंड के पास मोबाईल था, मेरे पास कोई मोबाईल नहीं था. और वहां पर मैं सच में खो गयी. हुआ यूँ कि वहां पहुँचने के अगले दिन ही अकेली गाड़ी में बैठकर एक जगह शॉपिंग करने आयी. शॉप में ये मिल रहा है, वो मिल रहा है देखते-देखते मैं कहाँ गली-गली में निकल गयी कि मुझे पता ही नहीं चला. मुझे यहाँ तक नहीं पता था कि मैं किस होटल में ठहरी थी और लोकेशन क्या है. मैं इतनी नर्वस हो गयी कि मुझे कुछ पता होता तो ना मैं कैब करती. मुझे बस इतना पता था कि मेरे होटल के आगे एक पेट्रोल पम्प है. फिर मैंने डरते-डरते एक कैब बुक किया. मैं हसबेंड की हालत सोचकर मरी जा रही थी कि उनके ऊपर कितना प्रेशर आएगा कि नयी-नयी शादी हुई है. लड़की को लेकर गया, कहीं इसने कुछ कर तो नहीं दिया उसके साथ. कैब वाले ने थोड़ा दिमाग लगाया और उसने मुझे उसी पेट्रोलपंप के पास वाले होटल में पहुंचा दिया. मैं वहां पहुंची तो हसबेंड नहीं थें, मुझे खोजने निकल पड़े थें. मैंने रिसेप्शन के फोन से उन्हें कॉल किया और बताया कि मैं आ गयी हूँ. फिर आने के बाद उन्होंने मुझे बहुत डांटा. बोले – ‘तुम सही में बच्ची ही हो, तुमको अक्ल नहीं है. वहां से ही तुम किसी से लेकर फोन क्यों नहीं की.’ लेकिन तब आज की तरह हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल नहीं होता था और मुझे ये भी डर था कि मैंने बहुत सारे गहने पहन रखे हैं, कहीं कोई जान गया कि ये लड़की अकेली है, खो गयी है तो मेरे साथ बुरा हो सकता है. बाद में हसबेंड ने बताया कि थोड़ी देर बाद वो पुलिस में रिपोर्ट करनेवाले थें कि मेरी बीवी गुम हो गयी है. वहां से ये बात ससुराल में नहीं बताई गयी. फिर हफ्ते दिन बाद हम लौटे तो पता चलने पर सभी हंस पड़े कि ‘अरे भाई इसे संभालकर रखो, बालिका वधु है. मेरी ननदों ने कहा कि ‘इसके पांव का प्रिंट अभी छोटा है. धीरे-धीरे जब बड़ी होगी तो पांव का प्रिंट भी बड़ा हो जायेगा.’

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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