
और ऐसा करके फाइनली एक महीने का सूट पूरा हुआ, फिर कुछ पैच वर्क भी निकला उसके बाद मैं मुंबई आ गयी अपना करियर आगे ले जाने के लिए. ‘पुणे टीसी’ के शूटिंग के दरम्यान पहले दिन एक एक्साइटमेंट तो थी, सबको हम पहले से जानते थें क्यूंकि हम एक महीने से वर्कशॉप कर रहे थें. पहला दिन मुझे याद है, एक सीन था जहाँ पर हम पांचों लड़कियां एक घर में पेइंग गेस्ट रहती हैं और जो हमारे ऑनर हैं उनके घर पर पूजा है. हम सबलोग उनकी पूजा में इन्वाइटेड हैं. वहीँ पर हमलोग हीरो को देखते हैं. तब वह बहुत फनी सा कैरेक्टर लगता है क्यूंकि वो गांव का लड़का है जो लुंगी पहने हुए है. उसे देखकर हमलोग हंस रहे हैं, मजाक कर रहे हैं. तो इस सिन में पूरा दिन निकल गया. पहले दिन मैं जो शूट पर गयी तो अपने घुंघराले बालों को स्ट्रेट करके गयी. जैसे ही सबकी नजर पड़ी तो बोले – ‘वाह सुलगना, तेरे बाल कितने अच्छे हैं, तू कितनी अलग दिख रही है. पहली बार खुद को अलग लुक में देखा था, तब तक बाल स्ट्रेट करवाना ये सब उतना पता नहीं था. और फिर जब मेकअप लगा तो पहली बार मेकअप में खुद को देखकर मेरे मुँह से निकला ‘छी: मैं कितनी गन्दी लग रही हूँ.’ तब मुझे आदत नहीं थी इतने हैवी मेकअप में खुद को देखने की. तब मेकअप वाले दादा ने कहा कि ‘अभी जस्ट किया है, थोड़ी देर में जब 5 -10 मिनट में ये सेट हो जायेगा तब आप देखना और कैमरे पर देखना आपका लुक अच्छा आएगा. उनकी बात सही निकली. जब वो शॉर्ट्स हमने रात को बैठकर देखे तो वहीँ बैठी हमारी एक एडी जो फिल्म में एक्टिंग भी कर रही थी उसने कहा कि ‘सुलगना तेरे शॉर्ट्स कितने अच्छे आये हैं, तू इतनी अच्छी दिख रही है कि तू सच में हीरोइन लग रही है.’ तब मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा. उसमे परफॉर्मेंस उतना नहीं था लेकिन अनुभव बहुत मिला. जैसा फोर वीलर स्टार्ट करने में थोड़ी प्रॉब्लम आती है ना लेकिन एक बार जब गाडी चालू हो जाती है तो फर्राटे से चलती है. उसी तरह धीरे-धीरे उनके साथ रहते-रहते मैं ओपन होती तो वे सर पकड़ लेते कि अरे यार यह तो ज्यादा ही बकबक करती है. जब फर्स्ट वर्कशॉप में गयी थी तो बहुत कम बोलती थी, हाय-हैलो तक ही क्यूंकि डर था कि निकाल दिया तो. इसलिए मैं बहुत लिमिटेड रहती थी. जब शूट पर पहुंची तो लगा कि अब नहीं निकालेंगे तो फिर असली रूप सामने आ गया मेरा. मैं खूब मस्ती करने लगी.


एक सीन ऐसा था जहाँ पर एन्ड में ऐसा होता है कि मेरा पैर टूट जाता है, मैं ख़ुशी से जम्प कर रही हूँ और मिस बैलेंस होकर गिर जाती हूँ और मेरा पैर टूट जाता है. तो एक प्रेशर होता है ना कि मैं सच में लंगड़ी हो गयी हूँ ऐसा लोगों को लगना चाहिए. यह ना लगे कि मैं नाटक कर रही हूँ. फिर मैंने अपने एक असिस्टेंट डायरेक्टर से कहा- ‘एक काम करोगे मेरे पैर पर जोड़ से कुछ मारो कि मेरे पैर में दर्द हो.’ वो चौंककर बोला ‘क्यों?’ मैंने बोला- ‘मुझे लंगड़ी वाली फिलिंग नहीं आ रही है तो मैं लँगड़ाउंगी कैसे? स्क्रीन पर नकली लगेगा.’ तो उसने कहा- ‘अच्छा तो तुम्हारा मर्डर का सिन होगा तो क्या तुम्हारा सच में खून कर देंगे. ऐसा नहीं होता, वो तुम्हें एक्ट करके ही लाना पड़ेगा.’ फिर ऐसे छोटे-मोटे मूवमेंट पर आप खुद को चैलेंज कर रहे थें. क्यूंकि वहां पर हमलोग फर्स्ट टाइम कर रहे थें. आज अगर मैं वह शॉर्ट देखती हूँ तो मैं मुँह पलटकर भाग जाती हूँ.


यह शूट किया था 2010 में और फिल्म रिलीज हुई थी 2011 में. सारे न्यूकमर्स थें इसलिए हमें प्राइम स्लॉट की जगह मॉर्निंग स्लॉट मिला था. और फिल्म सिर्फ मैसूर और पुणे में रिलीज हुई थी. रिलीज के वक़्त मैं मुंबई में थी और बहुत एक्साइटेड थी. तब मैं स्पेशली देखने के लिए मुंबई से कैब बुक करके पुणे गयी थी. बहुत अच्छा लग रहा था कि फाइनली हमारा हार्ड वर्क हम 70 एम.एम. स्क्रीन पर देख रहे हैं. जो भी बना, जैसा भी बना. वैसे वह टेक्निकली बहुत वीक फिल्म थी. लेकिन फिर भी होता है ना कि अपना पहला बच्चा चाहे जैसा भी हो सबसे प्यारा होता है. और उस पूरी टीम में मैं इकलौती हूँ जो मुंबई में आकर स्ट्रगल करके अभी तक इंडस्ट्री में टिकी हुई हूँ. लेकिन उस पहले प्रोजेक्ट में जो मेरे रिश्ते बने वो आज भी कायम हैं. ‘पुणे टीसी’ ने कहीं-ना-कहीं मुझे मोटिवेशन दिया कि हाँ मैं मुंबई जाकर ट्राई कर सकती हूँ. उसके बाद मैं मुंबई आ गयी. वहां फिर से स्ट्रगल स्टार्ट हुआ. बहुत सारे ऑडिशंस के बाद, बहुत सारी हताशा के बाद पहला बड़ा ब्रेक मिला प्रज्ञा चैनल पर आनेवाले टीवी शो ‘सूर्य पुराण’ में राजा दक्ष की बड़ी बेटी के किरदार के रूप में. उसी को मैं अपना पहला ब्रेक मानती हूँ क्यूंकि उसी ने मुझे पहचान दिलाई.