
मेरा जन्म 1945 में दार्जलिंग में हुआ. वहीँ से स्कूल की पढ़ाई हुई. मेरा भाई नहीं है, हम सिर्फ दो बहने हैं. पिताजी श्री हरिप्रसाद शर्मा तब महाकाल मंदिर के पुजारी थें. बचपन से ही आँखों की बीमारी थी इस वजह से आई.एस.सी. तक ही मेरी पढ़ाई हो पाई. 1973 में जब आँख के डॉक्टर के पास गयी तो उन्होंने कहा “अपने पिता जी को बुलाओ.” जब पिता जी गए तो डॉक्टर बोले- “इसका आँख बहुत खराब हो गया है, इसकी पढ़ाई बंद करो.” तब पिताजी के पास इतने पैसे भी नहीं थें कि वो और बड़े डॉक्टर से दिखातें. हम जब नर्सरी में थें तो स्कूल के प्रिंसपल के कहने पर मेरे पिताजी हमको कोलकाता आँख दिखाने ले गए थें और तभी से मुझे चश्मा लग गया. फिर मेरी शादी 1974 में बाराबंकी, उत्तरप्रदेश में एक फिजिशियन डॉ.एच.पी. दीवाकर से हुई. शादी के 10 साल बहुत अच्छे से गुजरे लेकिन अचानक 1984 में प्रॉपर्टी के लालच में मेरे पति की हत्या कर दी गयी. हम डेढ़ साल तक बच्चों के साथ अकेले अपने मकान में रहें. तब ससुरालवाले गांव में रह रहे थें. जब पति का मर्डर हुआ मेरे पेट में छोटा बेटा था. जिस दिन इंदिरा गाँधी की हत्या हुई थी उसी दिन मेरा बेटा पैदा हुआ था. एक साल तक बीमार रहा फिर वो मर गया. तब हम एक दांत के डॉक्टर को किरायेदार रखे थें. 100 रुपया मिलता था. वहीँ एक हॉस्पिटल में काम करनेवाली नर्स ने मुझसे कहा- “तुम पढ़ी-लिखी हो, घर में बैठने से अच्छा चलो हमारे साथ ड्यूटी करो.” फिर वहां मुझे 600 रुपया महीना मिलने लगा. मेरा काम था हॉस्पिटल में आनेवाले पेशेंट का नाम लिखना और वो नर्स जहाँ जहाँ जाती मुझे साथ लेकर जाती थी. वहां 6 महीना काम किये लेकिन ससुरालवाले मेरा रहना आफत कर दिए मेरा मकान हड़पने के लिए. मुझे मारने की भी बहुत कोशिश किये. तब मेरी मौसी स्व. श्रीमती दुर्गा देवी पटना के सूचना जनसम्पर्क विभाग में बहुत मशहूर ड्रामा आर्टिस्ट थी. मैंने मौसी को चिट्ठी लिखी और पूरा वाक्या बताया तो उन्होंने कहा- “अरे बाप रे, तुमको भी मार देगा सब, तुम्हारा बाल-बच्चा रोड पर आ जायेगा. तुम चली आओ बेटा.” फिर मैं घर में ताला लगाकर अपने दो बेटा और एक बेटी को लेकर मौसी के पास पटना चली आयी. तब बाद में वकील साहब ने मुझे चिट्ठी भेजी कि “तुम्हारा घर कब्ज़ा हो गया है, और वहां का एक कुख्यात डकैत घर में घुस गया है.” उसके बाद तो मौसी हमको जाने नहीं दी कि “नहीं, तुमको भी मार देगा, मत जाओ..” मौसी नौकरी करती थी और हम घर का सारा काम करते थें. मौसी को लिवर कैंसर था और 1989 में उनका भी देहांत हो गया. तब मेरा बेटा प्रदीप तब 10 साल का था, उसी ने मौसी का क्रियाक्रम किया. बच्चों की खातिर जब मैं मायके गयी तो गोद लिए गए चचेरे भाई ने मेरी कोई मदद नहीं कि तब मैं फिर पटना लौट आयी. मौसी के साथ पहले हम जगतनारायण रोड में बड़े फ़्लैट में किराये पर रहते थें. मौसी के गुजरने के बाद वहां से हम महेन्द्रू चल गएँ और किराये पर एक कमरा लेकर रहने लगें. मेरा एक बेटा वहीँ 13 साल का होकर चल बसा. उसके बाद मौसी का एलआईसी का जो 24 हजार मिला उसी से हम बाकि बाल-बच्चों को पढ़ाना शुरू किये.


2010 के बाद हम लाचार हो गए. फिर मेरा पटना के कालीघाट में बैठना शुरू हुआ. मैं अपना और बेटे का पेट पालने के लिए दरभंगा हॉउस, कालीघाट की सीढ़ियों पर बैठकर रोजाना सुबह 6 से 12 -1 बजे तक गायन करने लगी. चाहे गर्मी हो या बरसात या जाड़े की ठिठुरन… मैं अपने हारमोनियम के साथ कालीघाट जरूर पहुँचती हूँ. कभी रिक्शा कर लिया तो कभी आस-पड़ोस के शुभचिंतक लड़कों ने हारमोनियम उठाकर वहां पहुंचा दिया. मुझे कम दिखाई देने की वजह से कभी-कभी कुछ लोग कालीघाट पर उनके पास रखे पैसे तक उठा लेते हैं. एक-डेढ़ साल पहले जब मैं ये गाना “मानो तो मैं गंगा माँ हूँ ना मानो तो बहता पानी….” गा रही थी तो अमेरिका और लन्दन के मीडियावाले भी आये थें और मेरा गीत रिकॉर्ड कर ले गए. दिल्ली-मुमबई के मीडियावाले भी आये इंटरव्यू करने. सब तो आते हैं लेकिन सरकार का मेरे जैसी बेसहारा कलाकार की तरफ कोई ध्यान नहीं है. मेरा इतना अच्छा कमाकर खानेवाला लड़का जो हमको बोलता था “बैठकर खाओ माँ, अब तुमको नहीं कमाना है.” वही आज इस पोजीशन में है तो दुःख होता है. मैं उसे यूँ ही छोड़कर अब वृद्धआश्रम में भी नहीं जा सकती क्यूंकि हर पल मुझे उसकी चिंता लगी रहती है.
मैं अपने बेटे के दोस्त की बहन प्रीति की सदा एहसानमंद रहूंगी क्यूंकि जब मैं आँखों से लाचार होकर घर पर बैठ गयी थी तब प्रीति ने ही यह आइडिया दिया था कि “आंटी आपके पास इतना अच्छा हुनर है, आप हारमोनियम लेकर कालीघाट पर बैठिये.” पहला दिन कालीघाट पर वह अगरबत्ती जलाकर हारमोनियम रखकर मुझे बैठा दी कि “आज से आप यहीं भजन गाइएगा कहीं नहीं जाईयेगा.” उसके बाद दो श्रद्धालुओं की भीड़ लगने लगी. यथाशक्ति जिसे जो देना था दे जाने लगा. उसी दिन मैंने फैसला कर लिया था कि अब चाहे जो परिस्थिति हो ना मैं भीख मांगूँगी ना मैं जहर खाउंगी. तब से मेरा यह संगीत एवं संघर्ष का सफर अनवरत जारी है.