“घर से दूर नया ठिकाना
अब यही खुशियों का आशियाना,
वो दोस्तों के संग हुल्लड़पन
वो नटखट सा मेरा बचपन,
हाँ अपनी यादें समेटकर
गलियों की खुशबू बटोरकर
दुनिया को दिखाने अपना हुनर
मैं आ गयी एक पराये शहर.”
अक्सर युवा लड़कियां घर से दूर बड़े शहर में कुछ मकसद लेकर आती हैं, अपना सपना साकार करना चाहती हैं. चाहे कॉलेज की पढाई हो या प्रतियोगिता परीक्षा, उसके लिए एक अजनबी शहर में लड़कियों का आशियाना गर्ल्स हॉस्टल से बेहतर क्या हो सकता है. पर दूसरे माहौल में, नए सांचे में ढ़लने में थोड़ा समय लगता है. आईये जानते हैं ऐसी ही हॉस्टल की लड़कियों से कि उनका हॉस्टल में पहला दिन कैसे गुजरा…….
पटना के एक हॉस्टल में रहकर ग्रेजुएशन कर चुकी मुजफ्फरपुर जिले की शैली शर्मा कहती हैं – मेरे पापा आर्मी में हैं तो उनका ट्रांसफर हमेशा लगा ही रहता था. जब मैंने 10 वीं कर ली तब पापा की पोस्टिंग अरुणाचल प्रदेश में हो गयी जहाँ फैमली साथ रखना मना था. फिर डिसाइड हुआ कि मैं और मेरा भाई पटना हॉस्टल में चले जायेंगे. लेकिन मैं हॉस्टल जाने को तैयार नहीं थी. तब एक अज्ञात सा भय था मन में कि पता नहीं हॉस्टल कैसा होता होगा? पर पापा ने मुझे दो ही ऑपशन दिए. या तो पढाई छोड़ दो या फिर हॉस्टल चली जाओ. फिर मैं तैयार हुई तो पापा शाम में मुझे और भाई को पटना लेकर आये. शॉपिंग करने के बाद पहले भाई को बॉय हॉस्टल में छोड़ा फिर मुझे गर्ल्स हॉस्टल में ले गए. मुझे छोड़कर जाने लगे तो मेरा रोना देख पापा भी रोने लगे. तब लाइफ में पहली बार मैंने पापा को रोते हुए देखा. वहां मेरे सीनियर और जूनियर मेरा हाल चाल पूछने लगे. मुझसे दोस्ती करने लगे. फिर रात में ही हम सभी गाने और डांस के साथ इन्जॉय करने लगे. उनका मोटिव था कि मुझे यहाँ का माहौल तब बुरा न लगे, किसी तरह उस दिन मेरा टाइम पास हो जाये.
स्कूल की बहुत छोटी छोटी बच्चियां भी थीं हॉस्टल में. उन्हें खुश देखकर ख्याल आया जब ये एडजस्ट कर सकती हैं तो मैं इतनी बड़ी होकर क्यों नहीं एडजस्ट कर सकती. फिर तो मैंने भी अपने आंसू पोंछकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया और अब हॉस्टल मेरे लिए नया नहीं रहा.
सूचना:
अगर आप भी अपने हॉस्टल के पहले दिन का अनुभव शेयर करना चाहती हैं तो हमें मेल करें
bolozindagi@gmail.com