पटना,(स्टोरी- राकेश सिंह ‘सोनू’) पत्रकार छोड़कर लिखाई जब करने लगे कविताई तो फिर क्या होता है…? अजी खूब तालियां बजती हैं और वाह-वाह होता है…. जी बिलकुल, एक ही प्लेटफॉर्म पर उपस्थित होकर विभिन्न मीडिया हाउस के कवि पत्रकारों ने अपनी-अपनी कवितायेँ कुछ इस पेशेवर अंदाज में सुनायीं कि श्रोताओं का दिल बाग़-बाग़ हो गया.
यह नजारा था पिछले दिनों 13 जनवरी को पटना के ‘स्कॉलर्स एबोड स्कूल’ के ऑटोडोरियम में ‘बोलो ज़िन्दगी फाउंडेशन’ एवं अलीना प्राइवेट लिमिटेड के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ‘पत्रकार कवि सम्मेलन’ का जहाँ उद्धघाटनकर्ता थें दैनिक जागरण, पटना के पूर्व संपादक श्री शैलेन्द्र दीक्षित, वहीँ विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थें आकाशवाणी पटना के सहायक निदेशक डॉ. किशोर सिन्हा, दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह, भाजपा कला संस्कृति प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक वरुण कुमार सिंह, अलीना प्राइवेट लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर तबस्सुम अली एवं स्कॉलर्स एबोड स्कूल की प्रिंसिपल बी. प्रियम.
कार्यक्रम के स्पॉन्सर अलीना प्राइवेट लिमिटेड जिसके ऑनर हैं गाजियाबाद के रहनेवाले बिल्डर यामीन जी, उनकी अनुपस्थिति में कम्पनी की मैनेजिंग डायरेक्टर तबस्सुम अली ने बताया कि “अलीना प्राइवेट लिमिटेड, यह उनकी नयी कम्पनी है जो जल्द ही बिहार में स्टार्ट होनेवाली है. रियल स्टेट, मेडिकल कई क्षेत्रों पर यह काम करेगी.”
दीप प्रज्वलन के बाद कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि श्री शैलेन्द्र दीक्षित ने कहा कि “बात हिंदी कविता और हिंदी की है तो मैं बस थोड़े में इतना कहूंगा कि नयी पीढ़ी के पत्रकारों को एक सवाल दे रहा हूँ कि यह उनको सोचना चाहिए कि अख़बारों में हिंदी की क्यों इतनी बड़ी दुर्दशा हो रही है…? आज पढ़िए किसी का न्यूज तो उसमे हिंदी की जगह हिंगलिश होंगे और चलताऊ शब्द मिलेंगे.” तो जब हम ऐसी गलतियां कर रहे हैं तो फिर हिंदी का प्रचार कौन करेगा, कौन बचाएगा हिंदी को..?”
वहीँ विशिष्ट अतिथि दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह ने कहा कि “आदरणीय शैलेन्द्र जी का जो निर्देश है तमाम पत्रकारों से अनुरोध करते हुए तो उनकी ओर से हमलोग आश्वस्त करना चाहेंगे कि कम से कम जो भाषा से जुड़े हुए पत्रकार हैं आपकी बातों पर गौर करेंगे और जितना बन पायेगा हमलोग सुधारने की कोशिश करेंगे. सच में आज चिंतनीय है कि न्यूज छोड़ने की आपाधापी में भाषा की शुद्धता हासिये पर रख दी गयी है.”
कवि सम्मेलन में जिन पत्रकार कवियों ने हिस्सा लिया वे हैं बीरेंद्र ज्योति, अमलेंदु अस्थाना, चन्दन द्विवेदी, कुमार रजत, अभिषेक कुमार मिश्रा, प्रेरणा प्रताप, अनिकेत त्रिवेदी, समीर परिमल एवं श्रीकांत व्यास. सभी प्रतिभागियों ने अपनी दो उत्तम रचनाएँ सुनाई तत्पश्चात विशिष्ट अतिथियों में से डॉ. किशोर सिन्हा एवं वरुण कुमार सिंह ने भी मंच से कविता का पाठ किया.
आकाशवाणी पटना के सहायक निदेशक डॉ. किशोर सिन्हा ने सुनाया- ‘पता भी नहीं चलेगा लड़कियों को कैसे एक भींगा हुआ मौसम मर गया बेवक़्त उनके अपने अंदर…और कैसे वे छली गयीं अपने ही मरे हुए सपनों की केसरगंधी तितलियों से…” डॉ. किशोर सिन्हा ने अपने सम्बोधन में कहा कि “आज यह आयोजन देखने में भले ही छोटा लग रहा हो, लेकिन इसकी अनुगूँज बहुत दूर तक और बहुत देर तक सुनाई देगी ये मेरा विश्वास है. ‘बोलो जिंदगी’ को हम सबके सामने लाने के साथ ही इतने कम समय में इतना सारा कुछ प्रयोगधर्मी तौर पर राकेश सोनू ने किया वो कबीले तारीफ है. हम उनसे उम्मीद करते हैं कि वो आगे भी ऐसे ही प्रयोग करते हुए हमारे बीच नयी-नयी चीजें लाते रहेंगे.”
वहीँ भाजपा कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के वरुण सिंह ने अपने कॉलेज के दिनों की यादों को संजोते हुए तब की एक कविता कह सुनाई- “काश मेरी भी लैला होती तो कुछ तो मिलता चैन….” साथ ही उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि “मैं संस्कृति प्रकोष्ठ के लिए लगातार भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा हूँ. भोजपुरी के साथ-साथ हिंदी पर भी हम सबको अभी बहुत काम करना है.”
अलीना प्राइवेट लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर तबस्सुम अली ने अपनी फीलिंग्स को कविता की तरह पेश किया कुछ इस अंदाज में “मुझे जिंदगी के अनुभव ने इतना कुछ सीखा दिया जो कोई स्कूल-कॉलेज न बता सका. कौन है अपना-कौन है पराया अक्सर बताते हैं माँ-बाप किन्तु ये गुण भी मुझे दुनिया ने सिखला दिया…” श्री शैलेन्द्र दीक्षित के सवालों पर तबस्सुम ने कहा कि “हम हिंदुस्तान में रहते हैं और हम हिंदी से ही भाग रहे हैं, हिंदी बोलने से झिझक रहे हैं, शर्मिंदगी महसूस करते हैं. मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूँ लेकिन मुझे गर्व होता है कि मैं हिंदी बोलती हूँ.”
आरम्भ में सभी प्रतिभागियों एवं अतिथियों का स्वागत करते हुए स्कॉलर्स एबोड स्कूल की तरफ से एक पौधा एवं स्कूल के बच्चों द्वारा बनाये हुए ग्रीटिंग्स कार्ड भेंट किया गया. उसके बाद ‘बोलो जिंदगी फाउंडेशन’ एवं अलीना प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से सभी प्रतिभागियों एवं अतिथियों को सम्मानित किया गया. साथ-ही-साथ राकेश सिंह ‘सोनू’ की लिखी गीत-गजलों की पहली पुस्तक ‘तुम्हें सोचे बिना नींद आये तो कैसे?’ भी सभी प्रतिभागियों को भेंट की गयी.
मौके पर ‘बोलो जिंदगी फाउंडेशन’ के निदेशक राकेश सिंह ‘सोनू’ ने बताया कि “यह ‘बोलो जिंदगी’ का पहला इवेंट था. इस कार्यक्रम की रुपरेखा उन्होंने एक साल पहले ही बनायीं थी लेकिन कुछ वजह से वो अब जाकर सम्पन्न हो पाया. सोनू ने बताया कि ” ‘बोलो जिंदगी’ के इस पहले इवेंट की सफलता वह अपनी प्रेमिका को समर्पित करते हैं क्यूंकि हर वक़्त वो उनकी प्रेरणा बनी रहती है जिस वजह से आज यह कार्यक्रम करा पाने में सफल हो पाया.”
शुरुआत में मंच सञ्चालन किया अंकिता ने, फिर जब कवि सम्मेलन की शुरुआत हुई पत्रकार कवियों के कविता पाठ की अध्यक्षता करने मंच पर आएं पत्रकार-कवि चन्दन द्विवेदी और आते ही ऐसा रंग जमाना शुरू कियें कि इस ठंढ के मौसम में ठंढे हो रहे पत्रकार कवियों में फिर से नया जोश भर दिया.
कवि सम्मेलन में शामिल होकर दिल्ली प्रेस मैगजीन ग्रुप के बिहार-झाड़खंड ब्यूरो चीफ बीरेंद्र बरियार ज्योति ने सुनाया – “जिंदगी भी किसी महागठबंधन की सियासत-सी हो गयी है, सुलझना कम, उलझना ज्यादा इसकी आदत-सी हो गयी है…”
प्रभात खबर के अनिकेत त्रिवेदी ने सुनाया- “पगली लड़की नहीं अख़बार हो गयी, दिल के पहले पन्ने पे छप के रोज आ जाती है, जैसे प्रदेश की सरकार हो गयी…”
सामयिक परिवेश पत्रिका के पूर्व संपादक समीर परिमल ने सुनाया- “मौत से भी रुकेगा ना ये कारवां, दिल से आवाज आएगी हिन्दोस्तां मेरे प्यारे वतन ऐ दुलारे वतन जान तुझपर लुटाएं मजा आएगा…”
दूरदर्शन, बिहार बिहान की एंकर प्रेरणा प्रताप ने सुनाया- “अब उधार की स्याही से कोई क्या देश के जज्बात लिख पायेगा, कहाँ सुनाई देंगी उसे किसानों की सिसकियाँ. मुल्क जल भी रहा हो तो उसकी लपटें वो कहाँ देख पायेगा…”
दैनिक जागरण के कुमार रजत ने सुनाया – “रौशनाई में इतनी डूबी कि शाम हो गयी है, लिखनेवालों कि जमात बदनाम हो गयी है….अपनी किस्मत पर कलम रो रही है, धीरे बोलिये पत्रकारिता सो रही है…”
दैनिक भास्कर के अमलेंदु अस्थाना ने सुनाया – “अब तो तुम्ही लब खोल दो अँधेरा उजाला हो जाये, इस चकाचौंध का मुंह काला हो जाये..”
वहीँ रेड एफ.एम. के प्रोड्यूसर अभिषेक मिश्रा ने सुनाया – “क्या हर वो चीज जिसे पाने की आप कल्पना करते हैं उसकी कीमत कम हो जाती है मिलने के बाद..? मैं चाहता हूँ तुम सदा अमूल्य रहो मेरे जीवन में जैसे कोई आखिरी रचना हो इस ब्रह्माण्ड की जो सिर्फ मेरे पास है…”
दैनिक हिंदुस्तान के चन्दन द्विवेदी ने सुनाया- “कभी-कभी खुद से यूँ ही ठन जाती है, छंदों की बेबस मुट्ठी तन जाती है. मेरे मुख से छिटपुट शब्द निकलते हैं, तुम सुनते हो वह कविता बन जाती है..”
वहीँ वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत व्यास ने सुनाया “मैं हूँ पागल कुर्सी अय्यासी के खेल खिलौने में तुमको भरमाऊँगी,पाप से भरी गठरिया माथे पाए धरवाउंगी….”
अंत में धन्यवाद ज्ञापन करने आये कार्यक्रम के आयोजक राकेश सिंह ‘सोनू‘ ने भी अपनी ही लिखी पुस्तक ‘तुम्हें सोचे बिना नींद आये तो कैसे?’ से एक कविता का पाठ किया – “कुचल दे कमसिनियाँ बावजूद मचले जवानियाँ, कुंवारेपन की दिखा निशानियां हाय रे दिल मांगे सौ कुर्बानियां..”
इस कार्यक्रम के प्रभारी प्रीतम कुमार ने भी अपनी एक कविता प्रस्तुत की “मेरे इश्क़ में चोट इतनी जोर की लगी है खुदा तूने ख़ामोशी से मुझे चीखना सीखा दिया…”
वहीँ ‘बोलो जिंदगी फाउंडेशन‘ के सदस्यों सचिन मिश्रा, विशाल, अनमोल अंशु ने भी कार्यक्रम सफल बनाने में अच्छा योगदान दिया.
स्कूल की प्रिंसिपल बी.प्रियम ने कहा कि “इस तरह के आयोजन और होने चाहिए इसलिए कि जब हमारे पत्रकार लोग खुद इस आयोजन का हिस्सा बनकर हिंदी की वकालत कर रहे हैं तो इसका बहुत अच्छा असर विद्यार्थियों पर भी पड़ेगा जो धीरे-धीरे हिंदी से दूर होते जा रहे हैं.”