पांच सालों तक मैं ससुलाल में कोई सूट नहीं पहनी था : देवयानी दुबे , प्रदेश महासचिव, जदयू (युवा)

पांच सालों तक मैं ससुलाल में कोई सूट नहीं पहनी था : देवयानी दुबे , प्रदेश महासचिव, जदयू (युवा)

मैं एक ब्राह्मण फैमली से हूँ. वैसे तो मेरा मायका यू.पी. हुआ लेकिन सबलोग यहाँ पटना सिटी में बस गएँ थें. एल.एन.मिश्रा इंस्टीच्यूट से कुछ दिन मैंने लॉ की पढ़ाई की फिर छोड़ दी. उसके बाद मैंने पटना वीमेंस कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया. फिर मैं हॉस्टल में रहकर एम.बी.ए. की तैयारी करने लगीं. उन्हीं दिनों मेरे हसबेंड अपने किसी फ्रेंड के साथ हमारे हॉस्टल में 31 दिसंबर के दिन आये थे जब न्यू ईयर की पार्टी चल रही थी. जब ये आये तो मेरी फ्रेंड लोगों ने मुझे आवाज देकर नीचे बुलाया. तब मैं बहुत चुलबुली थी. मेरे हसबेंड के फ्रेंड की गर्लफ्रेंड वहां पर रहती थी तो वे भी उनके साथ आ गए थें. ठंढ़ का दिन था, वे पूरा टोपी-मफलर पहनकर अपना चेहरा पूरा ढ़के हुए थें और उनकी सिर्फ आँखे दिख रही थीं. बिलकुल शांत भाव से वे लगातार मुझे देख रहे थें. तब मैंने टोका “तुम अपनी सिर्फ आँखें क्यों दिखा रहे हो.” फिर जब उन्होंने मफलर हटाया तब मैं उनका चेहरा देख सकी. उस दिन जाने के बाद फिर अगले दिन भी वे लोग हॉस्टल पहुँच गएँ और हमलोगों से कहने लगें कि “चलिए मूवी देखते हैं.” फिर यूँ ही धीरे-धीरे जान-पहचान बढ़ी, बातचीत होने लगी और फिर यूँ ही रिलेशन जब ज्यादा डेवलप हो गया तो मेरे हसबेंड ने मेरे सामने शादी का प्रपोजल डाल दिया.

 

पति के साथ प्यार भरे यादगार पल बिताती देवयानी दुबे

 

 

मैंने कहा- “ठीक है, देखते हैं, सोचते हैं.” मगर ये सोचने का मौका ही नहीं दे रहे थें. इतना ज्यादा क्रिटिकल सिचुएशन क्रिएट कर देते कि ट्रेन से कट जाऊंगा, छत से कूद जाऊंगा…. क्यूंकि इनको शादी मुझसे ही करनी थी. फिर मैं तैयार हुई और जब फैमली बिल्कुल तैयार नहीं थी तो हमलोगों ने कोर्ट मैरेज कर लिया.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

मेरे हसबेंड शुरू से ही कॉपरेटिव हैं. मुझे सारी बात बताते थें कि मेरी फैमली थोड़ी कड़क है. हमारी शादी के एक साल पहले जब इनके घर में गृहप्रवेश हुआ था तब ये हमको बुलाये थें. मैं जाकर उनकी पूरी फैमली से मिली थी. उस दिन मैं अपने पति की दोस्त बनकर वहां पहुंची और सबको चाय-वाय पिलाकर वहां से चली आई थी.

 

 

 

 

 

सासु माँ के साथ रविवार का व्रत करती हुईं देवयानी

कोर्ट मैरेज के बाद भी इनकी फैमली तैयार नहीं हो रही थी तब मेरे पति मेरे साथ कहीं रेंट पर रहने लगे. बाद में हमारा अरेंज मैरेज हुआ गायत्री मंदिर में. फिर हमलोगों को घर लाया गया बहुत अच्छे विधि-विधान के साथ जैसा नयी दुल्हन के साथ होता है.

जैसा मायके में मैं मम्मी को करते देखती थी ठीक वैसा ही मैं ससुराल में करने लगी. सुबह जल्दी उठकर नहाना, सास-ससुर के पैर छूना इत्यादि. यह देखकर सबलोग बहुत खुश रहते थें कि बहुत संस्कारी बहु है. लेकिन एकाध सदस्य मजाक में टोंट मारते कि नयी-नयी आई है और देखो ना मेरे घर को अपना कर ली. पापा-मम्मी भी इसी की तारीफ कर रहे हैं. हमारी पांच ननदें हैं तो मेरी तीसरी और चौथे नंबर वाली ननद से हमेशा हल्की-फुल्की नोंक-झोंक हो जाती थी. वे मुझे बोलतीं “आप मेरा नक़ल करती हैं.” और मुझे लगता था शायद वे मेरी नक़ल करती हैं. लेकिन फिर धीरे-धीरे सारी ननदें भी मुझे मानने लगीं.

 

 

 

 

 

मेरे ससुर बहुत प्यार करते थें हमको. एकदम पापा की तरह हर चीज समझाना, हमको सबकुछ सिखाना कि बेटा ऐसे करना, वैसे करना. जब कभी-कभी किसी से नोंक-झोंक हो जाती तो मैं चुपचाप रोती थी मम्मी को यादकर कि हम कहाँ आ गएँ. लेकिन मेरे पति हमेशा सपोर्ट किये कि “तुम हमसे प्यार की हो ना, हमसे शादी की हो ना…हम हैं ना”.  शुरुआत में मैं ससुराल में पति के कल्चर के अनुसार रही. 5 साल तक अपने घर के छत पर नहीं गयी. हमेशा हॉस्टल में उन्मुक्त रहनेवाली लड़की घूंघट में रही. यह सब करना पड़ा क्यूंकि एक तो नयी-नयी थी ऊपर से घर की पहली बहु थी मैं. जितना रूल एन्ड रेगुलेशन था सब किया.

 

 

 

 

 

पति और बच्चों के साथ जीवन के रंग इंज्वाय करतीं देवयानी दुबे

 

 

 

लाइफ में एक मोड़ आया जिससे टेंशन बढ़ गयी. मेरा पहला बच्चा नौ महीने का होकर पेट में ही खत्म हो गया. जब दर्द होता तो पति कहते “तुम्हे अक्सर पेट दर्द होता है तो यूँ ही गैस की वजह से नॉर्मल पेन हो रहा होगा ठीक हो जायेगा.” लेकिन फिर दर्द ऐसा बढ़ा कि मेरा बच्चा पेट में ही खत्म हो गया. दस दिन से वैसे ही मेरे पेट में था और मुझे कुछ पता ही नहीं चला.

 

 

‘बोलो ज़िन्दगी’ के साथ अपने संस्मरण बयां करतीं देवयानी दुबे

2009 में मेरा दूसरा बच्चा हुआ और एक बार वह छत से खेलते हुए नीचे गिर गया. सर में चोट आयी थी. उसे कुर्जी हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा. मैं कुछ दिन उसके साथ हॉस्पिटल में रही. उस टाइम हम पहली बार सूट पहने थें. तब मैंने सासु माँ से पूछा- “माँ, हम सूट पहन लें. बहुत ऊपर-नीचे करना पड़ रहा है.” फिर उनके हामी भरने पर मैंने शादी के बाद ससुराल में पहली बार सूट पहना. सासु माँ को दिखाकर मैंने पूछा- “अच्छा लग रहा है ना..?” वे बोलीं – “हाँ, अच्छा लग रहा है, लेकिन दुपट्टा पूरा ढ़ककर पहनो.” मैंने उनके अनुसार ही किया. मैं जॉली मूड की लड़की हूँ. लेकिन ससुराल में ससुर जी को छोड़ दें तो ऐसा कोई नहीं था, देवर-देवरानी और सासु माँ सभी सीरियस मूड के हैं. ससुर जी तो अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन तब बहुत हंसमुख थें, बच्चों के साथ खेलते थें. लेकिन मेरी सासु माँ पुराने ख्यालोंवाली. तब भी मैं हमेशा कभी मदर्स डे तो कभी उनके मैरेज डे पर उनसे केक कटवाती थी. वे अपना मुँह छिपाकर बोलतीं कि “नहीं, हमको नहीं करना है ये सब.” लेकिन हम हमेशा उनसे लगे रहते थें कि, नहीं माँ करना है. तब लगता ही नहीं था कि हम ससुराल में हैं. लगता था कि मैं अपनी मम्मी के यहाँ हूँ.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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