बिहार की पहली कराटे प्लेयर जिसने नेशनल स्कूल गेम्स में गोल्ड मैडल जीता वो भी 63 वें नेशनल गेम्स में. बिहार की पहली लड़की जिसे वर्ल्ड कराटे फेडरेशन की तरफ से ब्लैक बेल्ट मिला. बिहार की पहली प्लेयर जिसने इण्डिया को रिप्रजेंट करते हुए वर्ल्ड स्कूल गेम्स में सिल्वर मैडल जीता. पहली बिहारी लड़की जिसने कॉमनवेल्थ कराटे चैम्पियनशिप को रिप्रजेंट किया. पहली बिहारी लड़की जिसने कराटे में लगातार तीन बार हैट्रिक बिहार खेल सम्मान हासिल किया. अब तक नेशनल लेवल पर 9 गोल्ड, 2 सिल्वर, 4 ब्रॉन्ज मैडल और इंटरनेशनल लेवल पर 2 सिल्वर, 1 ब्रॉन्ज मैडल अपने नाम किया है. यहाँ बात हो रही है गोल्डन गर्ल के नाम से मशहूर बिहार की उभरती कराटे चैम्पियन अनन्या आनंद की जिसने हाल-फ़िलहाल में भी अपने उम्दा खेल से बिहार का नाम रौशन किया है.
अनन्या इसी साल नयी दिल्ली में 30 जनवरी से 2 फरवरी को हुए काई जूनियर नेशनल कराटे चैम्पियनशिप 2018 में गोल्ड मैडल जीतकर आयी है. अभी इण्डिया को रिप्रजेंट करते हुए मई 2018 में जापान में होने जा रहे 17 वें एकेएफ कैडेट, जूनियर अंडर 21 कराटे चैम्पियनशिप में सेलेक्शन हुआ है. 18 वें एशियन गेम्स 2018, जकार्ता, इंडोनेशिया के ट्रायल लिए भी सेलेक्शन हुआ है.
संत जोसफ कॉन्वेंट हाई स्कूल से 12 वीं कर चुकी पटना, पोस्टलपार्क की अनन्या आनंद पिछले 8 साल से कराटे खेल रही हैं. कक्षा 3 से ही ज्वाइन किया था. प्रोफेशनली कक्षा 8 से खेलना शुरू किया. स्कूल में कराटे ही सिखाया जाता था तो इनके पास यही एक ऑप्शन था. जब छोटी थीं तभी इस गेम को एक सब्जेक्ट के रूप में इंट्रोड्यूस कराया गया था. छोटी उम्र में चैम्पियनशिप में भाग लेते-लेते स्टेट के लिए खेलीं. गोल्ड आया तो नेशनल में सेलेक्शन हुआ फिर वहीँ से कॉन्फिडेंस बढ़ा. तब इसी खेल में आगे बढ़ने का सोचा. कक्षा 4 में इंटर स्कूल खेला फिर उसके बाद कक्षा 8 में आकर स्टेट चैम्पियनशिप खेला जहाँ से नेशनल में सेलेक्शन हुआ. तो अभी लगातार 5 साल से स्टेट गोल्ड मेडलिस्ट हैं. 2017 की नेशनल गोल्ड मेडलिस्ट हैं. 2013 में पहला नेशनल चैम्पियनशिप खेला था पर तीसरे नेशनल चैम्पियनशिप में जाकर इन्हें ब्रॉन्ज मैडल मिला था. फर्स्ट में क्वार्टर फ़ाइनल तक ही पहुँच पायी थी. फिर 5 वें में गोल्ड मैडल मिला. वहां अनुभव क्या रहा ? पूछने पर अनन्या कहती हैं – ‘”हर एक गेम आपको सिखाकर जाता है. हर गेम में कुछ-न-कुछ चुनौतियाँ, कुछ घबराहट और कठिनाइयां तो आती हैं. पर इसी से उबरकर खिलाड़ी आगे बढ़ते हैं. जब हम पहली बार नेशनल खेलने गए थें तो हमें बहुत डर लग रहा था पर फिर धीरे-धीरे कॉन्फिडेंस बढ़ा.”
अभी अलगतार 4 साल से बिहार को नेशनल स्कूल गेम्स में रिप्रजेंट करते हुए लगातार तीन साल से ब्रॉन्ज मेडलिस्ट थी और इस साल गोल्ड मैडल मिला. पिछले साल बिहार से खेलते हुए इंडिया को रिप्रजेंट किया था वर्ल्ड्स स्कूल्स गेम्स में जिसमे सिल्वर मैडल मिला था. घर में पापा ओंकार शरण पेशे से सिविल इंजीनियर हैं तो माँ आशा कुमारी गृहणी हैं. दो भाई-बहनों में से अनन्या इकलौती बहन हैं. फैमली का सपोर्ट शुरू से मिला है. पापा हमेशा हर टूर्नामेंट में साथ रहते हैं. अनन्या मानती हैं कि उनके लिए जितना समर्पण उनके पिता ने दिखाया है अगर वह नहीं होता तो शायद वे यहाँ तक कभी नहीं पहुँच पाती.
वैसे खेल में हमेशा चोट तो लगती ही रहती है ये आम बात है. लेकिन अनन्या को अभी तक की सबसे बड़ी चोट लगी थी वर्ल्ड्स स्कूल गेम्स के फ़ाइनल खेलते हुए. अनन्या बताती हैं “पिछले साल वर्ल्ड्स स्कूल गेम्स में जब हम इंडिया को रिप्रजेंट कर रहे थें तो फ़ाइनल में हमारे घुटने में चोट लगी थी जिसके बाद हमारे घुटने की सर्जरी करवानी पड़ी और उसकी वजह से गेम में कुछ दिनों की रुकावट आ गयी थी. फिर उस गेम को बीच में ही रोकना पड़ा था. उसके बाद तीन महीने का ब्रेक लिया. बाद में फिर इंदौर में आयोजित स्कूल गेम्स में गोल्ड मैडल जीता और अभी आगे सीनियर नेशनल कराटे चैम्पियनशिप में बिहार को रिप्रजेंट करने की तैयारी है.” अनन्या पहली बार गोल्ड जीतकर जब स्कूल गयी तो प्रिंसिपल, टीचर्स और फ्रेंड्स सब लोग बहुत खुश थें. एसेंबली में स्टेज पर बुलाकर बहुत अच्छे से सम्मानित किया गया और वो मोमेंट अनन्या के लिए यादगार बन गया.
अनन्या की डेली रूटीन आज भी हमें बहुत कुछ सीखने को उत्प्रेरित करती है. सुबह 5 : 30 बजे उठकर अपनी दिनचर्या शुरू करनेवाली अनन्या सुबह 6 बजे से स्टेडियम में 1 घंटे दौड़ लगाती हैं, फिर स्टेडियम से लौटकर 1 घंटे के लिए जिम जाती हैं. फिर स्कूल जाती हैं. वापस आकर 1 घंटे रेस्ट करके शाम से 8 बजे तक कराटे की प्रैक्टिस करती हैं और फिर घर आकर स्कूल का होमवर्क कम्प्लीट करती हैं. पटना में अपने कोच पंकज कांबली से कराटे की ट्रेनिंग ले रही और अपने शुरूआती जीवन में ही कड़े नियम-अनुशासन फॉलो कर रही अनन्या ने यह साबित कर दिखाया है कि अगर मेहनत और जुनून के साथ आगे बढ़ा जाये तो मंजिल खुद-ब-खुद करीब आ जाती है.