गाजीपुर, यू.पी. की काजल सिंह कहती हैं – अपने होम टाउन से पहली बार मैं 2013 में पटना के एक हॉस्टल में आयी.मेरा और मेरे गार्जियन दोनों का सपना था कि मैं पटना वीमेंस कॉलेज में पढूं. मेरे गार्जियन चाहते थे कि मैं रिश्तेदार के यहाँ रह लूँ. लेकिन मेरा हमेशा से यह सपना था कि मैं हॉस्टल में रहूं. काफी सुन रखा था हॉस्टल के बारे में. गर्ल्स हॉस्टल में बहुत मस्ती होती है. बहुत सी लड़कियों से दोस्ती होती है. मुझे हॉस्टल में छोड़ने मेरी मम्मी साथ आई थी. मेरी मॉम बहुत स्ट्रांग हैं इसलिए मैं भी अंदर से स्ट्रांग हो गयी हूँ. मुझे पहली बार हॉस्टल छोड़ते हुए वो बिलकुल भी नहीं रोयीं.लेकिन उनके जाने के बाद मैं थोड़ी उदास हो गयी. थोड़ी नर्वस भी थी, बहुत सरे चेहरों के बीच मेरी निगाहें तलाश रही थीं किसी ऐसे दोस्त को जो अपनी दोस्ती का मजबूत हाथ दे. माँ जा चुकी थी. मैं थके क़दमों से हॉस्टल के अपने कमरे में आकर अपने बिस्तर पर बैठी ही थी कि मेरी रूममेट ने मेरा हौसला बढ़ाया,” अरे यार मज़ा आएगा मैं हूँ ना ! फिर तो दिन कैसे गुजरने लगे,कुछ पता ही नहीं चला.
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