

21वीं सदी का समाज सूचना-क्रांति के युग में प्रवेश कर चुका है। आज सोशल मीडिया केवल संवाद का साधन भर नहीं रहा, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों, सामाजिक धारणा, राजनीतिक विमर्श और सार्वजनिक जीवन के हर मोर्चे को प्रभावित कर रहा है। जिस डिजिटल मंच को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विस्तार का माध्यम माना गया था, वही मंच आज दुर्भाग्यवश गलत सूचना, अफवाह, ट्रोल संस्कृति, चरित्र हनन, साइबर बदमाशी और मानहानि का एक बड़ा अखाड़ा बनता जा रहा है।
इसी चुनौती को देखते हुए बिहार की आर्थिक अपराध इकाई (EOU) ने उन यूजर्स पर नजरें टेढ़ी कर दी हैं, जो बार-बार सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर समाज और कानून-व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। सोशल मीडिया पर बार-बार अपमानजनक, झूठी, मानहानिकारक या भड़काऊ पोस्ट करने वालों को अब चिह्नित किया जा रहा है और उनका गिरफ्तारी के निर्देश जारी हो चुका है।
यह कदम न केवल कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करने की दिशा में उठाया गया है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म की आजादी का मतलब अराजकता नहीं है।
जब फेसबुक, ट्विटर (एक्स), व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम या यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म विकसित हुए थे, तब लक्ष्य था कि “दुनिया को जोड़ना और विचारों को साझा करना।” लेकिन समय के साथ इन प्लेटफॉर्म्स पर कुछ चिंताजनक बदलाव नजर आने लगा। एक झूठी पोस्ट हजारों लोगों तक पहुंच जाती है। यह न केवल समाज को गुमराह करती है बल्कि हिंसा, तनाव और अविश्वास फैलाती है। आज के युवा हो या बूढ़े, कई लोग सोशल मीडिया पर ऐसी भाषा का उपयोग करते हैं जो सभ्य समाज में अस्वीकार्य है। यह वर्चुअल वातावरण में नफरत की दीवारें खड़ी करता है।
चुनाव के समय सोशल मीडिया युद्ध का मैदान बन जाता है। अपमानजनक पोस्ट, झूठे आरोप, चरित्र हनन और अनर्गल प्रचार-प्रसार आम हो जाते हैं। पब्लिक फिगर्स, पत्रकारों, नेताओं, शिक्षाविदों या आम नागरिकों तक को टारगेट कर ट्रोलिंग की जाती है। इससे मानसिक तनाव और सामाजिक अपमान का खतरा बढ़ता है। धोखाधड़ी, साइबर फिशिंग, अफवाहें फैलाना, सामुदायिक तनाव भड़काना आदि के लिए भी सोशल मीडिया का दुरुपयोग हो रहा है। इस पूरे परिदृश्य को देखते हुए कानून-प्रशासन के लिए कार्रवाई करना अनिवार्य हो गया था।
आर्थिक अपराध इकाई (EOU) ने राज्य में सोशल मीडिया के दुरुपयोग को नियंत्रित करने के लिए कई चरणों में कार्रवाई शुरू की है। विशेषकर बार-बार आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले, गाली-गलौज करने वाले, मानहानि वाली सामग्री प्रसारित करने वाले, चुनाव के दौरान दुष्प्रचार फैलाने वाले, अफवाह फैलाकर तनाव पैदा करने वाले, इन सभी को चिह्नित किया जा रहा है।
EOU ने दो दर्जन आरोपितों की पहचान कर उनकी गिरफ्तारी के निर्देश भी जारी किया है। संबंधित जिलों के SP को पत्र भेजा गया है ताकि वे तुरंत कार्रवाई सुनिश्चित करें। EOU के एडीजी नैय्यर हसनैन खान ने स्पष्ट कहा है कि “अब सहनशीलता की सीमा खत्म हो गई है। सोशल मीडिया पर बार-बार दुरुपयोग करने वालों को चिह्नित कर सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
1 अप्रैल से 11 नवंबर तक SMC के पास 584 शिकायतें दर्ज हुईं। इसमें से अधिकांश शिकायतें आपत्तिजनक पोस्ट, चरित्र हनन, फेक न्यूज, राजनीतिक दुरुपयोग, समुदाय विशेष पर अभद्र टिप्पणी से संबंधित थी। विशेष रूप से विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान दुरुपयोग तेजी से बढ़ा। आचार संहिता लागू होने से लेकर चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने तक 225 शिकायतें दर्ज हुईं। यह दर्शाता है कि राजनीति, प्रचार और ट्रोलिंग का अब सोशल मीडिया के बिना चलना लगभग असंभव हो गया है।
सोशल मीडिया पर दुरुपयोग केवल व्यक्तिगत स्तर पर समस्या नहीं है, यह समाज की बुनियादी संरचना को प्रभावित करता है। जाति, धर्म, भाषा, विचारधारा, इन सभी पर भड़काऊ पोस्ट समाज में विभाजन को बढ़ावा देता है। लंबे समय तक अभद्र भाषा और नकारात्मक सामग्री देखना मनोविज्ञान पर प्रभाव डालता है। चुनाव के दौरान गलत सूचनाएँ जनमत को प्रभावित कर सकता है। फर्जी फोटो, छेड़छाड़ किए गए वीडियो और झूठे आरोप किसी की छवि बर्बाद कर सकता है। अफवाहें फैलने से दंगा, तनाव या हिंसा की स्थिति बन सकता है। इसीलिए, सरकार और पुलिस को मजबूर होकर सख्त कदम उठाने पड़े हैं।
भारत के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) में कई ऐसे प्रावधान हैं जो सोशल मीडिया दुरुपयोग को अपराध मानता है। हालांकि यह धारा सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दी है, लेकिन इसी को आधार बनाकर नई धाराएँ और दिशानिर्देश लागू हुए हैं।
धारा 67- अश्लील या आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करना। IPC की धारा 499-500- मानहानि। IPC धारा 504-505- सांप्रदायिक तनाव फैलाना, अफवाहें फैलाना। धारा 153A समुदायों के बीच वैमनस्य बढ़ाना। चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश आचार संहिता के तहत सोशल मीडिया भी निगरानी में आता है। EOU इन कानूनों की सहायता से आरोपियों पर कार्रवाई कर रही है।
सोशल मीडिया अब सार्वजनिक मंच है यह कोई निजी डायरी नहीं है कि जो चाहे लिख दिया। पोस्ट लाखों लोगों को प्रभावित करता है। क्योंकि हर शब्द का असर होता है। शब्द, फोटो, वीडियो, यह सभी किसी की गरिमा और समाज की एकता को चोट पहुंचा सकता है। क्योंकि ऑनलाइन व्यवहार भी कानून के दायरे में आता है “ऑनलाइन दुनिया अलग है” यह भ्रम है। कानून यहां भी उतना ही लागू होता है जितना वास्तविक दुनिया में।
आज सोशल मीडिया पर “ट्रोल” एक आम शब्द बन गया है। कई लोग पहचान छिपाकर गाली देते हैं, अफवाह फैलाते हैं, महिला पत्रकारों/नेताओं को निशाना बनाते हैं, राजनीतिक दुश्मनी निकालते हैं, मीम और मॉर्फ्ड फोटो बनाते हैं। यही लोग समाज में डर, नफरत और अविश्वास का माहौल बनाते हैं। इस मानसिकता को खत्म करना बेहद जरूरी हो गया है।
दो दर्जन आरोपितों की पहचान और गिरफ्तारी निर्देश संदेशात्मक कार्रवाई है। इससे डर का माहौल बनेगा। गलत पोस्ट करने से पहले लोग सोचेंगे कि पुलिस निगरानी कर रही है। चुनावी दुष्प्रचार कम होगा। फर्जी और भड़काऊ पोस्ट का प्रसार मंद होगा। युवा पीढ़ी को जिम्मेदार डिजिटल नागरिक बनने की प्रेरणा मिलेगा। सोशल मीडिया पर सभ्य संवाद की संस्कृति बढ़ेगी। समाज में अनुशासन स्थापित होगा और डिजिटल अराजकता पर अंकुश लगेगा।
EOU की यह पहल केवल शुरुआत है। भविष्य में सख्त साइबर मॉनिटरिंग, फेक न्यूज रोकने के लिए AI आधारित सिस्टम, राजनीतिक पार्टियों के डिजिटल अभियानों पर निगरानी, युवाओं के लिए साइबर एथिक्स शिक्षा, डिजिटल हेल्पलाइन, दुष्प्रचार रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई दल, जैसी योजनाएँ लागू हो सकती हैं। भारत डिजिटल भारत बन रहा है। इसलिए डिजिटल अनुशासन अनिवार्य है।
आम नागरिक की भूमिका होनी चाहिए कि सोशल मीडिया को साफ, सच्चा और सुरक्षित बनाना, अफवाह न फैलाना, अपमानजनक भाषा न लिखना, किसी पर गलत आरोप न लगाना, संवेदनशील मुद्दों पर संयम बरतना, प्रामाणिक जानकारी ही साझा करना, दूसरों की गोपनीयता का सम्मान करना, किसी पोस्ट की सच्चाई जांचना। सोशल मीडिया तभी उपयोगी हो सकता है, जब उपयोगकर्ता खुद जिम्मेदार बने।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का मूल स्तंभ है। लेकिन स्वतंत्रता तब तक सार्थक है जब तक वह किसी की गरिमा, सुरक्षा और अधिकारों पर चोट न पहुंचाए। सोशल मीडिया का दुरुपयोग केवल एक व्यक्ति का अपराध नहीं है, यह पूरे समाज, राज्य और देश की मानसिकता को प्रभावित करता है। बिहार EOU द्वारा दुरुपयोग करने वालों की पहचान और गिरफ्तारी का निर्देश इस बात का संकेत है कि “डिजिटल अराजकता को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”