सिगरेट पीने के सीन में मुझे खांसी होने लगती थी : आर्यन वैध, फिल्म अभिनेता

सिगरेट पीने के सीन में मुझे खांसी होने लगती थी : आर्यन वैध, फिल्म अभिनेता

मेरी पहली फिल्म थी सिस्टम जिसे प्रोड्यूस किया था स्व. झामु सुगंध ने और डायरेक्टर अरविंद रंजन दास थें. लेकिन वह फिल्म किसी वजह से अटक गयी. उस ज़माने में अंडरवर्ल्ड का मुद्दा बहुत गंभीर था. तो कहीं ना कहीं माना जा रहा था कि झामु जी की फाइनैंसिंग अंडरवर्ल्ड से आ रही है, उसको लेकर बहुत विवाद हुआ इसलिए वो फिल्म रिलीज होने से पहले ही फंस गयी और बंद हो गयी. उसके बाद मनीषा कोइराला के साथ मेरी फिल्म रिलीज हुई मार्केट. सिस्टम 2001 में शुरू हुई थी. इस फिल्म में मेरे साथ अभिनेत्री थीं सोनाली बेंद्रे. फिल्म की कहानी बहुत अच्छी थी, एक पुलिस इन्स्पेक्टर जो भ्रष्ट नहीं है लेकिन उसको भ्रष्ट बनना पड़ता है भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए. यह जबर्दस्त कहानी खुद डायरेक्टर अरविंद रंजन दास ने लिखी थी. शूटिंग का पहला दिन मुझे आज भी याद है जब डायरेक्टर ने कहा था कि मुझे सिर्फ एक कमरे में चलना है और एक्ट्रेस कश्मीरा शाह को स्टोरी के हिसाब से पकड़ना है. वो सीन करते-करते हमें पूरा दिन लग गया, क्यूंकि अरविंद जी डायरेक्टर बहुत परफेक्शनिस्ट हैं. तो पहला दिन मैं बहुत नर्वस था सेट पर यह सोचकर कि भाई क्या होगा क्या नहीं….
शूटिंग के दरम्यान एक सीन में मुझे साथ में दो सिगरेट जलाने थें जबकि मैं सिगरेट पिता नहीं था. तो डायरेक्टर ने कहा कि ‘तुम कोने में जाओ और सिगरेट पीना सीखो फिर ये सीन करो.’ तब मैं कोने में जाकर सीख रहा था मगर मुझे उल्टी आ रही थी, बहुत खांसी आ रही थी. मैंने कहा- ‘ये मुझसे नहीं होगा सर.’ उन्होंने गंभीर होते हुए कहा- ‘नहीं, करना ही पड़ेगा. पूरी दुनिया सिगरेट पी लेती है और तुम से ही नहीं हो पा रहा है.’ फिर भी मैंने कह दिया, ‘मगर मुझसे नहीं होगा.’ लेकिन डायरेक्टर साहब बहुत स्ट्रीक्ट थें, मुझे इतनी आसानी से छोड़नेवाले नहीं थें. फिर किसी तरह से मैंने अपनी खांसी पर कंट्रोल किया और वो सीन कर दिया. लोग एक्साइटेड होते हैं अपनी पहली फिल्म को लेकर लेकिन मैं काफी नर्वस था. एक तो मुझे उन डायरेक्टर महाशय से बहुत डर लगता था, ऊपर से अवार्ड विनर और इतने मंझे हुए सीनियर्स एक्टर्स के साथ काम कर रहा था. हर रोज जब सेट पर जाऊं तो मैं सोचता – ‘अरे यार, आज फिर मेरे सामने किस महारथी को खड़ा कर दिया.’ मेरी कोशिश रहती थी कि मेरी वजह से कहीं रीटेक ना हो. मैं अपनी बहुत तैयारी करके जाता था. मैंने मकरंद देशपांडे जैसे दिगज्जों के साथ थियेटर किया था इसलिए कभी डायलॉग डिलीवरी में दिक्कत नहीं हुई. हाँ, प्रॉब्लम ये आती थी कि डायरेक्टर को जिस मूड का डायलॉग चाहिए था वो देना मुश्किल था. अगर उनका मूड कर रहा है कि ये टोन है तो उस टोन को पकड़ना बहुत मुश्किल था. फिर भी डायरेक्टर ने बहुत सपोर्ट किया. ऐसे ही करते-करते फिल्म कम्प्लीट तो हो गयी लेकिन लास्ट के कुछ दो-चार दिनों का काम रह गया था. इतनी मेहनत के बाद बैडलक रहा कि फिल्म रिलीज नहीं हो पायी.

‘बोलो ज़िन्दगी’ के लिए अपनी पहली फिल्म की शूटिंग का संस्मरण बयां करते आर्यन वैध

इसके आलावा मैं ‘बोलो जिंदगी’ को अपनी पहली भोजपुरी फिल्म का अनुभव भी शेयर करना चाहूंगा. फिल्म का नाम है ‘तिरंगा पाकिस्तान का’ जिसकी शूटिंग 2015 में कम्प्लीट हुई और अब फिल्म रिलीज की तैयारी है. इस फिल्म के डायरेक्टर भी वही फिल्म ‘सिस्टम’ फेम अरविंद रंजन दास ही हैं जो पटना, बिहार के हैं. मैं उस वक़्त अमेरिका शिफ्ट हो चुका था तो मैंने तक़रीबन 11 महीना अमेरिका में गुजारने के बाद जब इंडिया लैंड किया तो अचानक से मेरे पास ऑफर आया कि 7-8 दिन बाद चलिए बिहार और वो भी राजधानी पटना नहीं बल्कि छोटे से कस्बे जन्दाहां में भोजपुरी फिल्म करने. चूँकि इससे पहले मैं तेलगु फिल्म भी कर चुका था तो सोचा कि चलो भोजपुरी का जायका भी ले लिया जाये. उन दिनों बहुत ही कमाल का एक्सपीरियंस रहा. सबसे यादगार ये रहता था कि वहां गांव में हमारे डायरेक्टर साहब सुबह 7 बजे का शिफ्ट लगा देते थें. मैं और मेरा मित्र मिंटू किसी तरह भागकर गंगा सेतु पर पागलों की तरह गाड़ी चलाकर सेट पर पहुँचते थें. फिर दोपहर में 12 -1 बजे एक्सरसाइज के लिए मैं कुछ समय निकाल लेता था. हमारे जो लीड एक्टर थें शांडिल्य ईशान उनका वेट का सामान वहीँ एक स्कूल के कमरे में रखा था. जहाँ हम एक्सरसाइज करते वहां पर लाइट आ-जा रही थी और ना ही जेनरेटर की व्यवस्था थी. तब उस दोपहर की कड़क गर्मी में ऐसा लगता जैसे कोई टॉर्चर चेंबर में हूँ. करीब एक महीना जन्दाहां में शूटिंग चली. पूरी यंग यूनिट थी इसलिए माहौल में मस्ती थी, सभी शूटिंग खत्म होने के बाद मस्ती भी करते सिवाए डायरेकटर के क्यूंकि वो सिर्फ काम में ही डूबे रहते थें.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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