पटना, 29 जुलाई, “सारी दुनिया में इंसानियत ना नंगा हो, कोई फसाद ना करे और ना कभी दंगा हो. तो ऐसी जिंदगी पर नाज है मेरे मौला, मैं जो मर जाऊं कफ़न पे मेरे तिरंगा हो…“जब युवा शायर विकास ने यह शेर अर्ज किया तो तालियों के साथ वाह-वाह की आवाज भी गूंज उठी. एक बानगी और देखिये जब कवि श्याम कुमार भारती ने फ़रमाया – “ये दिल तुमको कैसे दे दूँ जो वतन के नाम हो गया. मैं खुद मैं ना रहा, मैं खुद हिंदुस्तान हो गया…” तो सच में लगा कि उस हॉल में आज पूरा हिंदुस्तान बैठा हुआ है. अवसर था सामयिक परिवेश एवं कला जागरण के संयुक्त तत्वाधान में चल रहे तीन दिवसीय प्रेमनाथ खन्ना स्मृति समारोह के अंतिम दिन का जहाँ सामयिक परिवेश द्वारा एक भव्य कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया जिसका संयोजन समीर परिमल तथा अध्यक्षता वरिष्ठ शायर कासिम खुर्शीद ने किया.
कार्यक्रम का उद्घाटन कासिम खुर्शीद, मृत्युंजय कुमार सिंह तथा ममता मेहरोत्रा ने किया. जब बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह मंच पर अपनी पत्नी के साथ आये तो उन्होंने चुटीले अंदाज में कहा कि “पहली बार किसी मंच पर मेरी धर्मपत्नी आभा रानी हमारे साथ हैं, इस लिहाज से आज मेरे लिए ये यादगार पल है.”
इस अवसर पर अभिषेक प्रकाशन के रमण जी के हाथों फोटोग्राफी के लिए ईशान और आशुतोष को सम्मानित किया गया. वहीँ पेंटिंग के लिए राखी सम्मानित हुईं. उसके बाद शुरू हुआ कवि सम्मलेन जहां तीस से अधिक कवियों ने काव्य-पाठ किया.
काव्य-पाठ के कार्यक्रम का संचालन किया रामनाथ शोधार्थी ने जिन्होंने बीच-बीच में अपनी शायरी से सबका दिल जीत लिया. यथा “मेरे आँसू रियल नहीं आतें पूछने खैरियत से हूँ कि नहीं…!”
कवि सम्मलेन शुरू करते हुए जानेमाने शायर कासिम खुर्शीद ने कहा कि “बड़ा सुकून महसूस हो रहा है यह देखकर कि पटना जैसे छोटे शहर में भी इस जोशो-खरोश से कवि समेलन आयोजित हो रहे हैं और झमाझम बारिश की परवाह किये बिना भी आज बहुत से युवा फनकार यहाँ तसरीफ लाये हैं. यह सिलसिला यूँ ही चलते रहना चाहिए.” फिर कवि सम्मलेन की समाप्ति से पहले मंच पर आखिरी प्रस्तुति देने इसकी अध्यक्षता कर रहे कासिम खुर्शीद आते हैं और अपने शेर ओ-शायरी से पूरी महफ़िल जीत लेते हैं. उनके शेर कुछ यूँ थें – “मैं भला हूँ या बुरा हूँ, आपको तकलीफ क्यों….बुझ रहा हूँ या या जल रहा हूँ आपको तकलीफ क्यों..?”
अब जरा हम कवि सम्मलेन के शुरुआत में कदम रखते हैं जहाँ एक-से-एक फनकारों ने मनमोहक रचनाएँ सुनायीं.
खुर्शीद अनवर– “हथेली की लकीरों को बढाकर, मैं कद अपना बढ़ाना चाहता हूँ…”
झाड़खंड से आये नितेश सागर ने कहा- “मैं खुली एक किताब हो जाऊं…तू पिए तो शराब हो जाऊं..”
लता पराशर – “इंद्र की मेहरबानियों से झमझमायी बरखा, सावन हुई मैं तेरी राह तकते-तकते. झील बनी गलियां और सागर हुई मैं तेरी राह तकते-तकते..”
आमिर हमजा ने व्यंग रचना सुनाई – “अपने दिल में बुरा ख्याल मत रखना, अपने सर पर आफत-बवाल मत रखना. अपने बच्चे का जो जी चाहे नाम रख देना, मगर आशाराम बापू और रामपाल मत रखना…”
फिर जब प्यार-मोहब्बत कि बात चली तो मौजूद युवा कवियों ने अपने गीत-गजलों से महफ़िल में कुछ यूँ प्यार बरसाए.
नेहा नारायण ने गीत प्रस्तुत किया – “जख्मों के आगोश में हैं…क्या कहें कि किस कशमकश में हैं. इश्क़ नाम बीमारी की कसमे हैं…छुपाएं कैसे, दिखाएँ कैसे बस इसी कशमकश में हैं…”
सुपौल जिले से आये सूरज ठाकुर बिहारी ने गीत पेश किया- “प्रेम खामोश एक कहानी है, प्रेम से रूह की जवानी है, हम किसी से ना बैर कर पाएं, प्रेम का रोग खानदानी है…” एक और खूबसूरत गीत कुछ यूँ था, “प्रेम का ये प्रदर्शन किया था किसलिए….अगर निभाना न था कोई वादा प्रिय, साथ चलने का वादा किया किसलिए…?”
अक्स समस्तीपुरी– “महफ़िल में नाम उसका पुकारा गया था और सब लोग थें कि मेरी तरफ देखने लगें…”
पटना सिटी से आयीं शाजिया नाज ने गजल गाया- “मिल जाएँ किसी मोड़ पर एक रोज जो हम-तुम, फिर प्यार की सौगात कभी खत्म ना होगी. आ जाओ कि हम राह तेरी देख रहे हैं, आओगे तो फिर आस कभी खत्म ना होगी…”
सुनील कुमार– “आँखों के झिलमिल ख्वाब देखना चाहता हूँ, तिलिस्म बेहिसाब देखना चाहता हूँ. देखा है देर तलाक तेरी कातिल निगाहों को, उन जलवों पर एक किताब लिखना चाहता हूँ…”
वहीँ युवा कवि केशव कौशिक ने तो ऐसी कविता प्रस्तुत कि जिसे सुनकर लगा उसमे अपनी ही क्लास कि तमाम लड़कियों का उल्लेख कर दिया हो. एक बानगी देखिये – “मेरी आभा, मेरी ज्योत्सना, मेरी सरिता हो…तुम मेरी कविता हो, तुम मेरी कविता हो. तुम्हीं प्रियंका, ऐश्वर्या हो परम पुनिता हो, तुम मेरी कविता हो, तूम मेरी कविता हो…”
वहीँ कुछ गंभीर अल्फाज भी सुनने को मिलें. कौशिकी मिश्रा ने अपनी कविता में समाज के एक पहलु को दिखाया कि – “किसी जरूरतमंद की मदद करना इंसानियत है ये कोई एहसान नहीं होता. परिंदे भी आखिर में अपने बसेरे की ओर दौड़ आते हैं पर कई इंसान ऐसे भी हैं जिनका कोई मकान नहीं होता…”
प्रियंका वर्मा – रु-ब-रु मेरे जज्बात हो रहें…कतरा-कतरा हिज़ाब उड़ रहें, आंसू फिर भी बेनकाब हो रहें…”
सबसे युवा कवियत्री प्राची झा ने कविता सुनाई – “ना मेरी कोई गलती थी ना तेरा कोई कसूर रहा, फिर भी जिंदगी को जैसे शिकवा कोई जरूर रहा…”
वहीँ ‘बोलो जिंदगी’ के एडिटर राकेश सिंह ‘सोनू’ ने पूरे समाज से सवाल करते हुए ‘गुनाहगार कौन?’ शीर्षक से यह कविता सुनाई कि “लड़की के संग बुरा हुआ, फिर जो होता आया है वही होगा….और हाँ वह जिन्दा लाश बन गयी. फिर जो होता आया है वही होगा, और हाँ हमने और आपने मिलकर उसे मार डाला.”
दूसरे सत्र की शुरुआत में दर्शकों के मनोरंजन का ख्याल रखते हुए अर्चना एवं प्रियंका वर्मा ने गीत “आ मेरे हमजोलिया…खेलें आँख मिचौलिया..” पर डांस प्रस्तुत किया. फिर कलांगन की इमली दास गुप्ता ने श्री कृष्ण वंदना नृत्य ओडिसी शैली में प्रस्तुत किया.
इसके बाद यू.ए. डांस एकेडमी के बच्चों ने ‘सेव गर्ल चाइल्ड’ विषय पर “भगवान है कहाँ रे तू …” गीत के माध्यम से नृत्य नाटिका प्रस्तुत किया. इसमें निशान, रितिका, नेहा, आशी, दिव्या सहित कई बच्चों ने भाग लिया. इसका निर्देशन जीशान फजल और उज्जवल ने किया.
कार्यक्रम के अंत में साबुझ सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता के कलाकारों ने ‘वेटिंग फॉर यू’ नाटक की शानदार प्रस्तुति की. यह नाटक समुन्द्र किनारे के नौ लोगों की जिंदगी दर्शाती है और हर किसी की एक अलग कहानी है. मंच पर कलाकारों में परमिता घोष, दीप चक्रवर्ती, शुभजीत दत्त गुप्ता, उज्जैनी घोष, रंजीता रॉय, सुभाश्री भट्टाचार्य, विप्लव हलधर, उज्जिल मंडल, सुमोदीप सिन्हा, सुवोजित डे, अर्पिता बनर्जी, अरज्ञा बनर्जी, नवबिता मित्रा, मास्टर श्याम और अमित प्यारा ने अभिनय किया. नाटक में प्रकाश परिकल्पना सौविक मोदक का था तो कहानी,परिकल्पना और निर्देशन राजेश देबनाथ ने किया.