मेरा ससुराल पटनासिटी में है. मेरे हसबैंड नीरज कुमार प्रोफेसर हैं इंस्टीच्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, चंडीगढ़ में. मेरी शादी लव कम अरैंज मैरेज है. मैं उन्हें 7-8 सालों से जानती थी. वो हमारे फैमली फ्रेंड थें. एक फैमली फंक्शन में ही हमारी मुलाकात हुई थी. कुछ दिनों तक हम दोनों में बातचित हुई फिर उन्हें बाहर जाना पड़ा और एक साल के लिए वो आउट ऑफ इण्डिया भी रहें. तब भी हमारी दोस्ती वाली बातचीत जारी रही. जब उनकी जॉब लगी और वे सेटल हो गए और चूँकि मैं भी तब जॉब में थी तो हमलोगों को लगा कि अब समय को देखते हुए शादी के बारे में सोचा जाये. क्यूंकि अब हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे थें. एक तो हमारी कास्ट भी सेम थी और हम दोनों की फैमली की पहले से ही जान-पहचान भी थी इसलिए बिना किसी रुकावट के हमारी लव कम अरैंज मैरेज हो गयी. शादी दिसंबर 2016 में हुई. उसके ठीक पहले देश में नोटबंदी हो गयी थी. उस समय नोटबंदी की वजह से बहुत सी शादियां कैंसल हुई थीं. लेकिन हमारी शादी में कोई खास दिक्कत तो नहीं आयी लेकिन जो हमारा हनीमून प्लान था, हमलोग मलेशिया-सिंगापूर जाने का प्लान किये थें वो कैंसल हो गया क्यूंकि तब बाहर जाने पर भी हम बहुत कम पैसा ही कार्ड से निकाल सकते थें. फिर नेक्स्ट ईयर जून में हमलोग हनीमून के लिए बाली, इंडोनेशिया और मलेशिया गए. दिसंबर में जब हमारा फॉरेन का हनीमून ट्रिप कैंसल हुआ तो मैं बहुत ज्यादा दुखी थी. हसबैंड ने मुझे बहुत कन्वेंस किया कि चलो इण्डिया में ही कहीं घूमने चलते हैं. लेकिन मेरा सपना था कि हनीमून में इंडिया से बाहर ही जाना है.
मैं तब जॉब में थी तो मेरा ट्रांसफर होने में दिक्कत आ रही थी और मेरे हसबैंड चंडीगढ़ में थें इसलिए मेरा छुट्टी लेकर आना-जाना लगा रहता जो आज भी जारी है. तब छह महीने मैं पटनासिटी ससुराल में रही. चूँकि मेरे मायके से दूरदर्शन ऑफिस नजदीक है और पटनासिटी से काफी दूर पड़ जाता है तो मैं फिर मायके में ही रहकर ऑफिस जाने लगी. वीकेंड में मेरा ससुराल जाना होता है. मेरे पति के भैया-भाभी दिल्ली में रहते हैं और ससुराल में सिर्फ सास-ससुर जी. उन दोनों का व्यवहार बहुत ही अच्छा है. शादी बाद मुझे ऐसा फील नहीं हुआ कि ससुराल में मैं एक बहू हूँ. मेरी सास के दो बेटे हैं, कोई बेटी नहीं तो वे मुझे बेटी की तरह ही ट्रीट करती हैं. ससुराल में मीठा बनाने के अलावा हम कोई खाना आजतक नहीं बनाये हैं. मेरी सास हमको बनाने ही नहीं दीं.
जब जून में हमलोग फॉरेन गएँ, ट्रैवेल किये तो बहुत अच्छा लगा. हनीमून के दौरान मेरे सारे संजोये सपने पूरे हो गए. जब रात में हमलोग समुन्द्र के किनारे कैंडल नाइट किये. मेरा एक सपना था कि क्रूज में हमलोग ट्रैवेल करें और रात का डिनर भी क्रूज पर करें वो भी वहां पूरा हुआ. मेरा सपना था कि एक बंगलेनुमा रिसोर्ट में रुकें जहाँ अंदर में स्वीमिंगपूल भी हो और ये सब जितना भी रोमांटिक वाला ड्रीम मैंने सोच रखा था सब एक ही हनीमून ट्रैवल में पूरा हो गया. वहां की नेचुरल ब्यूटी देखकर मन रोमांचित हो उठता था. मेरा यह फॉरेन का पहला टूर था. तब वहां मेरे हसबैंड की आदत से मुझे परेशानी हो गयी. वो हर दस मिनट पर मुझे बोलते कि पासपोर्ट चेक करो. पासपोर्ट को लेकर मुझे इतना नर्वस कर दिए कि एक बार ऐसा हुआ कि हम पासपोर्ट सही में भुला दिए. हमलोग एक रिसोर्ट में ही लंच कर रहे थें. मेरा दो बैग था तो एक बैग हम वहीँ गलती से भूल गएँ थें. लेकिन जब वापस ढूंढते -ढूंढते गए तो वहां पर पड़ा हुआ मिल गया जिसमे पासपोर्ट भी था. उसके पहले मेरा दिमाग काम करना बंद कर दिया था. पासपोर्ट खो जाने पर ऐंबैसी में जाइये, ये करें-वो करें बहुत मुश्किल हो जाती. हसबैंड डांटना शुरू कर दिए कि तुम बहुत केयरलेस हो. लेकिन उनके ही टोकने पर हर एक घंटे पर पासपोर्ट चेक कर-करके इतना ज्यादा कन्फ्यूज हो गए कि फाइनली मुझसे भूल हो गयी. उस घटना के बाद हमलोगों ने होटल के कमरे के लॉकर में पासपोर्ट डाल दिया और फोटोकॉपी लेकर ही हम घूमने निकलें. मेरा पहला फॉरेन टूर था तो अंदर से डर लगा रहता था कि अनजान जगह है, देर रात आ-जा रहे हैं कुछ अनहोनी न हो जाये. लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं. फिर हमलोग 8 दिन बाद इंडिया लौटे.
मेरे हसबैंड की एक शिकायत मुझसे हमेशा रही है कि “शादी के इतने साल हो गएँ मैं तुम्हारे हाथ की बनी रोटी खाने को तरस गया हूँ.” क्यूंकि सच में आजतक उन्हें मेरे हाथ की रोटी नसीब नहीं हुई. चंडीगढ़ में भी रहते थें तो हमलोग कुक रखे हुए थें क्यूंकि मुझे खाना बनाना नहीं आता था. मैं सब्जी तो बना लेती लेकिन रोटी बनाना मेरे बस की बात नहीं. मैंने आजतक किया भी नहीं क्यूंकि शुरू से ही ऑफिस आना-जाना रहता था और मायके व ससुराल दोनों ही जगह कुक या मेड खाना बना देते थें.
मेरे हसबैंड अपनी फैमली से बहुत प्यार करते हैं. जब मैं चंडीगढ़ में थी तो मेरे सास-ससुर दस दिनों के लिए आये हुए थें. वहां पहले से ही कुक की व्यवस्था थी. जब एक दो दिन कुक नहीं आ पाया तो मुझे खाना बनाना पड़ा. मैंने सब्जी बनाई तो नमक थोड़ी तेज हो गयी. मुझे रोटी तो ठीक से बनानी आती नहीं थी फिर भी मैं एक्सपेरिमेंट करने जा रही थी. लेकिन तब मेरी सास की तबियत थोड़ी खराब थी फिर भी उन्होंने मेरी हेल्प की और मेरी जगह उन्होंने रोटी बना दी. हम सास-बहू में अगर कभी कोई खटपट हुई भी तो तुरंत मैटर सॉल्भ हो जाता था. मेरे हसबैंड की एक अच्छी आदत है कि वो माँ की भी सुनते हैं और मेरी भी सुनते हैं. उन्हें कभी मुझे डांटना होता तो कभी भी सबके सामने मुझे नहीं डांटते. कुछ बोलना भी रहेगा या कुछ शिकायत रहेगी तो अकेले में मुझे बोल देंगे. शादी के बाद 5 फरवरी को मेरा बर्थडे था और उस समय पटना ससुराल में थी. हसबैंड चंडीगढ़ में थें और मैं चंडीगढ़ से वापस आ गयी थी. मैंने उन्हें बोला “आप बर्थडे में आ जाइये.” वे बोले- “देखता हूँ-ऐसा है, वैसा है.” मुझे एहसास हुआ कि उनको छुट्टी लेने में कुछ दिक्कत हो रही थी. तो ससुराल में अचानक से मुझे सरप्राइज गिफ्ट मिला. मेरे सास-ससुर थोड़े पुराने ख्यालात के हैं, शो ऑफ करने और केक काटने में यकीं नहीं करते. ज्यादा-से-ज्यादा मन हुआ तो वे मंदिर में पूजा करवा देंगे. शादी के बाद यह मेरा पहला बर्थडे था और उन्होंने बहुत अच्छे से सेलिब्रेट किया. मेरे हसबैंड ने भी मुझे ऑनलाइन ऑर्डर करके बुके और केक भेजा तो मन खुश हो गया. मेरी सास ने पहले ऐसा किया नहीं था. मेरी जेठानी को भी कभी ऐसा सरप्राईज नहीं मिला था. तब मेरे बर्थडे में केक भी कटा और मेरी पसंद की मिठाई और खाने में पसंद की सब्जी भी बनी थी. सास ने गिफ्ट में मुझे गोल्ड की इयररिंग दी थी. काफी यादगार पल था.
जब मेरी शादी की पहली सालगिरह आनेवाली थी हमलोग दुबई जानेवाले थें. मुझे ट्रैवल करना शुरू से ही पसंद है तो मेरे हसबैंड को लगा कि सालगिरह का इससे अच्छा गिफ्ट क्या होगा, कहीं किसी कंट्री में ट्रैवल को चलते हैं. गिफ्ट तो बहुत मिलते रहते हैं, मुझे गहने पहनने का उतना शौक नहीं जितना घूमने का है. मैं पैसों को जमाकर के रखने की बजाये उसे खुशियों पर खर्च करने में यकीं रखती हूँ. तब चार दिनों का प्लान था दुबई का लेकिन फिर उन्हें इंस्ट्च्यूट में छुट्टी नहीं मिल पायी जिससे मेरा मूड बहुत ऑफ हो गया. लेकिन इन्होने मुझे ज्यादा दुखी नहीं होने दिया और फिर बाद में छुट्टी मिलते ही मुझे दुबई घुमाया और इस बार 7 दिनों का पॅकेज प्लान था. वहां जाकर टॉलेस्ट बिल्डिंग पर चढ़ना, आदि का शौक भी पूरा हुआ. मैरेज ऐनिवर्सरी का यह गिफ्ट मुझे थोड़ा लेट मिला लेकिन कहते हैं न कि जो चीज लेट मिलती है बहुत मीठी होती है.
मेरी मम्मी का नेचर बहुत स्ट्रिक्ट है. तो कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि मेरी जो सास हैं वो मेरी मम्मी हैं और जो मेरी मम्मी है वो मेरी सास हैं. मेरी सास कभी मुझे डांटती ही नहीं लेकिन मेरी मम्मी शुरू से ही स्ट्रीक्ट रही है. शादी के बाद जैसे ही ससुराल गए और दो-तीन दिन बाद जैसे मायके आने का रिवाज होता है तो मेरे साथ मेरे हसबैंड भी आये थें. मेरे हसबैंड से मेरी मम्मी ने पूछा- आपको तंग तो नहीं की. मेरे हसबैंड बोलें- ऐसा कुछ नहीं है. मेरी हसबैंड से मम्मी बोलने लगीं- अभी बच्ची है, दिमाग नहीं है. सीख जाएगी. बहुत तरह का उनको ज्ञान दी. उसी बीच दिसंबर में मेरी मम्मी का बर्थडे था तो मेरे हसबैंड सेलिब्रेट किये. हम सब ने साथ जाकर मूवी देखी. अच्छा लगता है आपके पति भी जब आपके माँ-बाप को अपने माँ-बाप की तरह प्यार देते हैं. तभी तो आपके अंदर भी फिलिंग आती है कि उनके माँ-बाप को भी आप केयर करें. उससे रिश्ते और भी ज्यादा गहरे हो जाते हैं.
शादी की शुरुआत में ही हमदोनो के बीच थोड़ा मन-मुटाव हो गया था. उस समय सोशल मीडिया का इस्तेमाल हम खूब करते थें. मैं कहीं भी घूमने जाती तो अपनी तस्वीरें लेकर अपलोड करने बैठ जाती और पता ही नहीं चलता कि कितना समय वेस्ट हो गया है. इससे हसबैंड चिढ़ जाते थें. मेरे हसबैंड को यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था कि आप हर वक़्त फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम पर बीजी रहें. उनका कहना था कि “आप वक़्त को इंज्वाय कीजिये, अच्छी चीजों में लगाइये, क्यूंकि वक़्त कभी लौटकर नहीं आता.” वो प्रोफेसर हैं तो मुझे भी स्टूडेंट समझकर सुबह-से-शाम तक थोड़ा लेक्चर देते रहते हैं. तब पहले थोड़ा तंग आ जाती थी लेकिन अब सुनना मेरी आदत हो गयी है.
पहले मैं नॉन-वेजिटेरियन थी चूँकि मेरे हसबैंड वेजिटेरियन हैं इसलिए मैंने अपने आप को भी वेजिटेरियन में कन्वर्ट कर लिया है. मेरे मायके में सभी नॉन वेजिटेरियन हैं. तो हसबैंड मायके जब आते हैं तो उनके लिए वेज बनता है. मेरा पूजा-पाठ में उतना रुझान नहीं है लेकिन मेरे पति बहुत ज्यादा पूजा करैत हैं. सुबह जल्दी उठकर ऑफिस के लिए रेडी होना है तो मेरी पूजा एक मिनट में खत्म हो जाती है. लेकिन मेरे हसबैंड की पूजा आधे घंटे तक चलती है. चूँकि उनको भी कम पर जाना होता है, फिर भी वो मैनेज करके टाइम निकाल लेते हैं और 15 मिनट-आधा घंटा देते हैं. हर एक मंगलवार को वे मंदिर भी जाते हैं. जब तक वे पूजा न कर लें खाते नहीं हैं. लेकिन मैं इतना नहीं सोचती. भूख लगे तो पहले खा-पी लेती हूँ फिर पूजा कर लेती हूँ. तो इन्ही छोटी-मोटी बातों पर हम दोनों में बहस भी हो जाती थी लेकिन फिर सब तुरंत ओके हो जाता.