गोपालगंज जिले की ऋषा सिंह कहती हैं – मेरे ख्याल से एक अनजान शहर में नई लड़की के लिए प्राइवेट फ्लैट की जगह हॉस्टल ज्यादा बेहतर होता है क्यूंकि वहां वार्डन के रूप में एक गार्जियन होता है. जब पहले दिन हॉस्टल भाई के साथ आई तो हॉस्टल मुझे मस्त लगा और बहुत एक्साइटमेंट हो रही थी. लेकिन जब तक भाई साथ था तब तक ठीक था. जैसे ही वह जाने लगा कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. छत पर से उसे जाते देख मुझे रोना आ रहा था. तब मायूस होकर यही सोच रही थी कि मैं बेकार यहाँ आ गयी,नहीं आना चाहिए था. काश! अपने लक्ष्य के साथ समझौता कर मैं भाई के साथ वापस घर लौट जाती. लेकिन अब जो होना था हो चुका था. रात में पापा का फोन आया तो पता चला मेरी याद में भाई बहुत रो रहा था. खाने की इक्छा नहीं थी. मेरी रूममेट जो मेरी बेस्ट फ्रेंड बन चुकी है उसने मुझे बहुत संभाला. उसने समझाया कि पढ़ना है, कुछ बनना है तो घर-परिवार से दूर जाकर रहना पड़ता है.
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