मोहल्ले में गोलियां चलीं, रातभर दुबके रहें सभी. बचाओ-बचाओ की आवाजें आईं, लोग सुनकर भी अनसुना कर गए. सुबह होते ही सभी पहुंचे उस लुट चुके को सांत्वना देने.
अगली रात एक पागल ने मोहल्लेवासियों की नींद खराब कर दी. अपनी करतूतों से उसने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया. कभी वह बड़बड़ाता तो कभी गालियाँ देता. घरों से निकलकर कुछ ‘मर्द’ खोजने लगें पागल को. उसे ढूंढकर पहले डांटा-फटकारा गया फिर जी न माना तो लात-घूंसों से मारा गया. उसे मार-मारकर बेसुध कर दिया गया. उसके पागलपन का अंदाजा उसे देखकर ही लग गया, वह पूर्णरूप से नग्न था बिना वस्त्रों के. लेकिन लोग तो क्रोधित थे इसलिए अपनी मर्दानगी दिखाकर लौट आएं.
मर्दानगी (लेखक : राकेश सिंह ‘सोनू’)
लघु कथा