
देश में धर्म की, जाति की राजनीति तो बहुत पहले से होती चली आ रही है लेकिन अब भाषा की गंदी राजनीति भी शामिल हो गई है। आम आदमी की बेहतरी ना कभी धर्म और जाति की राजनीति से हुई है और ना ही कभी भाषा की राजनीति से हो पाएगी। लेकिन इस राजनीति का भरन-पोषण करनेवाले नेतागण जाने कौन सा भ्रम पालकर बैठे हैं कि जनता के हित में बिना उनके कोई ठोस काम किए, सिर्फ भाषा की जहरीली राजनीति करने से ही जनता उनके सपोर्ट में आ खड़ी होगी। वो इस अंधी दौड़ में इस कदर शामिल हो चले हैं कि कोई उनके कृत्य को “गुंडागर्दी” कहे फिर भी उन्हें फर्क नहीं पड़ता।
वे मुंबई, महाराष्ट्र में मराठी ना बोल पानेवाले निर्दोष जनता की पिटाई और गाली गलौज तक करने से बाज नहीं आ रहें। उन्हें लगता है जबरन ऐसा करके ही वे मराठी भाषा को सम्मान दिला देंगे। इस घटिया राजनीति के चक्कर में वे भूल रहे हैं कि इन जाहिलाना हरकतों का अंजाम क्या होगा!
अगर कल को वर्षों से बिहार में रह रहे चंद मराठी लोग बिहारियों की भीड़ में घिर जाएं और उनपर भोजपुरी में बात करने का दबाव डाला जाए और फिर ऐसा ना कर पाने पर सरेआम उनकी भी जमकर पिटाई हो जाए तो उसकी जवाबदेही कौन लेगा..! यही वारदात कल को गुजरात, राजस्थान, बंगाल इत्यादि राज्यों में भी वहां बसे मराठी भाइयों के साथ अगर हो जाए तो कसूरवार कौन होगा…. भाषा की राजनीति करनेवाले वे नेता, अन्य राज्यों में पीटनेवाले मराठी मानुष या फिर इस गंदी राजनीति से जन्मे आक्रोशित स्थानीय हमलावर ?
✍️ राकेश सिंह ‘सोनू’