22 जून, शनिवार की शाम ‘बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक’ के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह ‘सोनू’, प्रीतम कुमार व तबस्सुम अली) पहुंची पटना के पूर्वी लोहानीपुर, स्लम एरिया में फिल्म सुपर 30 में अभिनय कर चुके घनश्याम के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में पटना रंगमंच के वरिष्ठ नाट्य निर्देशक राजीव रंजन श्रीवास्तव जी भी शामिल हुयें. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों घनश्याम की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.
फैमली परिचय- घनश्याम बी.ए. पार्ट -1, आरकेडी कॉलेज, कंकड़बाग के स्टूडेंट हैं. किलकारी बाल भवन से भी जुड़े रहे हैं. इनके पिता राजेंद्र बनारसी भूंजा की दुकान चलाकर परिवार का पालन-पोषण करते हैं. घनश्याम के दादा जी का भी कभी नाला रोड में भूंजे का दुकान हुआ करता था. इनका परिवार यू.पी. से बिलॉन्ग करता है. पहले घनश्याम के पिता जी ठेले पर घूम-घूमकर भूंजा बेचते थें लेकिन कुछ समय पश्चात् घर के बगल में अपनी दुकान खोल लिए. माँ आशा देवी गृहणी हैं. घनश्याम तीन बहन और दो भाई हैं. दो बड़ी बहनों रेणु कुमारी, प्रीति कुमारी और बड़े भाई मुकेश कुमार की शादी हो चुकी है. छोटी बहन दीक्षा कुमारी की अभी शादी करनी है. घर की आर्थिक स्थिति की वजह से बड़े भाई ने मैट्रिक के बाद पढ़ाई छोड़ दी और पिता के साथ ही भूँजे के व्यवसाय में लग गएँ.
नाट्य क्षेत्र में कैसे हुई घनश्याम की शुरुआत ? – यूँ तो घनश्याम का नाटक -अभिनय से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था लेकिन लोगों को नाटक करते देखकर मन में आता कि ये भी एक्टिंग करें और इन्हे देखकर लोग तालियां बजाएं. मगर कहाँ जाएँ क्या करें यह पता नहीं था. फिर इनके मोहल्ले में एनजीओ वालों का आना-जाना हुआ जो अपने अभियान के बारे में नुक्क्ड़ नाटक के जरिये समझाते थें. यह देखकर घनश्याम के अंदर का कलाकार और जोर मारने लगा. तब घनश्याम की बहनें तो सरकारी स्कूल में थीं लेकिन इनका दाखिला इनकी मम्मी ने प्राइवेट स्कूल में करा दिया था. लेकिन जब इनके स्कूल के दोस्तों को पता चला कि ये लोहानीपुर के स्लम एरिया में रहते हैं तो वे चौंककर कहते कि “अरे तुम वहां से आते हो, इतना गंदा एरिया है, हम कभी नहीं आएंगे तुम्हारे घर.” और सच में तब इनके घर कोई स्कूली फ्रेंड इनसे मिलने नहीं आते थें. ये बात घनश्याम को अच्छी नहीं लगी और विचार आया कि क्यों नहीं अपने मोहल्ले को साफ़-सुथरा रखा जाये. और तभी इन्होने अपने मोहल्ले में कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक ग्रुप बनाया और नुक्क्ड़ नाटक के माध्यम से साफ़-सफाई को लेकर जागरूक करने लगें. एक दिन ये प्रेमचंद रंगशाला में गएँ तो वहां का माहौल देखकर इन्हे इतना अच्छा लगा कि बस उसी पल इन्होने निश्चय कर लिया कि अब वे भी नाटक ही करेंगे. मन में यह भी ठान लिया कि एक दिन यहाँ के स्टेज पर हम भी प्ले करेंगे. शुरुआत नुक्कड़ नाटकों से हुई. लेकिन मंच पर नाटक करने की तमन्ना थी. एक दिन घनश्याम को प्रेमचंद रंगशाला में रंगकर्मी अभिजीत चक्रवर्ती से मुलाकात हुई जिन्होंने बिहार बाल भवन किलकारी में जाने की सलह दी. किलकारी से जुड़ने की जब बात घनश्याम ने घरवालों से कही तो माँ ने मना कर दिया कि “एक तो ऐसे ही मटरगश्ती करते रहता है, वहां जायेगा तो और बर्बाद हो जायेगा.” जब घनश्याम ने अपने पिता जी से बहुत जिद्द की तो वे मान गएँ और सायकिल पर बैठाकरकिलकारी ले जाकर एडमिशन करा दिया. अपने मोहल्ले के ग्रुप में सिर्फ घनश्याम का ही किलकारी में एडमिशन हो पाया बाकि दोस्तों को उनके घरवालों ने इजाजत नहीं दिया. 2014 -2015 की बात है किलकारी ज्वाइन करने के बाद भी घनश्याम ने नाटक क्लास शुरू नहीं किया था. हुआ ऐसा कि नाटक क्लास के सर से उन्हें डर लगता था और इसी वजह से जानबूझकर वे वहां नहीं जाकर दूसरे क्लास अटैंड करने लगें. दो-तीन महीना पेंटिंग क्लास में बिताएं फिर क्राफ्ट, मूर्ति कला का क्लास किये लेकिन नाटक ही दिमाग में बसा हुआ था. जब सुनते थें कि नाटक क्लास करके यहाँ से कोई रियलिटी शो में भाग लेने गया है, कोई फिल्म करने गया है तो बहुत अच्छा लगता था. उसके बाद घनश्याम अपने मोहल्ले के उन दोस्तों के माँ-बाप को मनाकर उनका भी एडमिशन किलकारी में करवाएं. फिर अपने उन दोस्तों के साथ नाटक क्लास ज्वाइन किए. पहला नाटक जब करने को मिला तब घनश्याम रात भर सो नहीं पाएं, यही सोच रहे थें कि जिस प्रेमचंद रंगशाला में हम सोचा करते थें प्ले करने को अब वहीँ करने जा रहे हैं. अगले दिन घरवालों को भी बोल दिए थें कि मेरा नाटक देखने आपलोग आइयेगा. अंदर से बहुत बेचैनी हो रही थी लेकिन जब स्टेज पर आएं तो सबकुछ भूल गएँ कि कौन कहाँ बैठा है, बस खुद में कॉन्फिडेंस पैदा करके नाटक में खो गएँ. फिर मौके मिलते गएँ और ये नाटक की बारीकियां सीखते गएँ. पेंटिंग, राइटिंग, आर्ट एन्ड क्राफ्ट जो कुछ पहले सीखा था वो सब क्रिएटिविटी के माध्यम से अपने नाटक में उतार लाएं. बिहार से बहार भी नाटक करने जाने का मौका मिला. नाटक का निर्देशन करने का भी मौका मिला. अबतक 5-6 नाटक निर्देशित कर चुके हैं. हाल फ़िलहाल में किलकारी में ‘विक्रम बैताल’ नाटक का निर्देशन किये हैं जिसकी खूब सराहना हुई थी.
सुपर 30 में ब्रेक – 2017 में किलकारी का समर कैम्प समाप्त हुआ था. घनश्याम और इनके कुछ दोस्त सिक्सटीन प्लस हो गए थें, कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या काम किया जाये. किलकारी से अब निकलने ही वाले थें. फिर सुपर 30 फिल्म की बात चली और पहली बार पटना में कोई बड़ा ऑडिशन हुआ था. किस्मत ने साथ दिया और किलकारी से निकले सिक्सटीन प्लस वालों को ही चांस मिला ऑडिशंस फेस करने का. पटना सहित कई अन्य जगहों पर 8 -9 राउंड ऑडिशंस हुयें, उनमे सलेक्ट होकर फिर मुंबई फ़ाइनल ऑडिशंस के लिए बुलाया गया. तब घनश्याम ने मुंबई जाने से पहले अपने घरवालों को फिल्म के बारे में कुछ नहीं बताया था. घरवाले बस इतना ही जान रहे थें कि किलकारी वाले नाटक कराने मुंबई ले जा रहे हैं. घनश्याम और बाकि बच्चों को तब ये भी नहीं मालूम था कि इस फिल्म में ऋतिक रौशन होंगे और इतने बड़े लेवल का काम होगा. मुंबई में 7 दिन के वर्कशॉप के बाद बिहार के 31 बच्चे फिल्म में चयनित हुयें जिनमे 14 बच्चे किलकारी के तो बाकि आरा इत्यादि बिहार के अन्य जिलों के हैं.
ऋतिक रौशन से क्या टिप्स मिला ? – सेट पर एक बार घनश्याम ने ऋतिक से पूछा – “सर, अगर फिल्म लाइन में जाना होगा तो कैसे जाएँ..?” ऋतिक ने कहा था- “तुम फिल्म लाइन में बनना क्या चाहते हो, हीरो, विलेन या कैरेक्टर आर्टिस्ट…? पहले अपने आपको जांचों कि तुम क्या बनने के लायक हो. हीरो बनने के लायक हो या हीरो के भाई या फिर विलेन…यह जांचने के बाद ही तुम इसमें हाथ आजमाना. क्यूंकि हर कोई हीरो नहीं बन सकता, हर कोई विलेन नहीं बन सकता और हर कोई हीरो का भाई नहीं बन सकता. सबका बंटा हुआ है, अगर तुम अपने आपको जाँच लिए तो फिर फिल्म लाइन में तुम्हारा स्वागत है.” फिर ऋतिक ने अपना उदाहरण देते हुए बताया था कि – “हम भी अपने पापा के अंडर में जब असिस्टेंट डायरेक्टर थें तब ये नहीं सोचते थें कि हम बड़े हीरो बनेंगे, तब हम भी लाइट उठाते थें, स्टेज पर झाड़ू लगाते थें, गर्मी में पापा के साथ एक छोटे रूम में रहे थें.” घनश्याम ने ‘बोलो ज़िन्दगी’ को यह भी बताया कि एक इमोशनल सीन करने के बाद ऋतिक सर खुश होकर उससे बोलें थें- “वाह, कमाल कर दिया तुमने.”
घरवालों का सपोर्ट- घनश्याम को माँ-बाप, भाई-बहनों का पूरा सपोर्ट मिला है. आये दिन जब घनश्याम को खोजते हुए मीडियावाले उनके घर पर दस्तक देते हैं तो इनकी माँ को ख़ुशी होती है. एक दिन अख़बार में ऋतिक रौशन के बगल में बैठे अपने बेटे की छपी तस्वीर देखकर यह ख़ुशी दुगनी हो गयी थी. घनश्याम के पापा को फिल्मों की उतनी समझ नहीं है लेकिन घनश्याम के नाटक करने से वो खुश रहते थें कि चलो बेटा, अवारों की तरह तो नहीं ना घूम रहा है. फाइनली जब उन्हें पता चला कि घनश्याम अब फिल्म सुपर 30 में एक अहम किरदार में ऋतिक के साथ नज़र आएगा तो उन्हें भी बहुत अच्छा लगा और उन्होंने बेटे को यही सलाह दी कि “तुमको जो मन लगता है वही करो, लेकिन इतना याद रखना कि भटकना नहीं. अगर इसी फिल्ड में करियर बनाना है तो ईमानदारी से खूब मेहनत करना.”
बोलो ज़िन्दगी के रिक्वेस्ट पर घनश्याम ने अपने साथियों के साथ घर की छत पर एक प्ले करके दिखाया जो पर्यावरण पर आधारित था. हमने और नाट्य निर्देशक राजीव रंजन जी ने भी ऑन द स्पॉट तुरंत तैयार कर किये गए इस एक्ट की दिल खोलकर तारीफ की.
उनका साथ देने वाले पूर्वी लोहानीपुर मोहल्ले के ही साथी अश्वनी जो एक लोहार के बेटे हैं, सन्नी जो कबाड़ीवाले के बेटे हैं, प्रिंस कश्यप जो गाडी वॉश करनेवाले के बेटे हैं और सूरज प्रकाश जो कम्पाउंडर के बेटे हैं, ये सभी घनश्याम के साथ फिल्म सुपर 30 का हिस्सा हैं.
सन्देश : बोलो ज़िन्दगी के स्पेशल गेस्ट नाट्य निर्देशक राजीव रंजन श्रीवास्तव ने मौके पर घनश्याम के प्रदर्शन को देखते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि “लगभग 2014 -2015 में जब किलकारी में घनश्याम की इंट्री हुई तब मैंने इन्हे जाना. रंगमंच के आलावा लेखन विधा से भी इनका जुड़ाव रहा है. किसी चीज को ऑब्जॉर्ब करके दूसरों के सामने प्रस्तुत करने की कला घनश्याम में अद्भुत है. किलकारी में जो इन्होने सीखा वो तो सीखा ही लेकिन कुछ अपनी खुद की क्रिएटिविटी भी वे अपनी निजी जिंदगी से निकालकर ले आएं और कुछ-कुछ नयी चीजें प्रस्तुत करनी शुरू कर दीं. जैसा कि हमलोगों को जानकारी है कि इनकी जो भूमिका सुपर 30 फिल्म में है वो लीक से हटकर होगी. आनेवाले समय में हमें लगता है कि घनश्याम कि एक अलग पहचान बनेगी. बस अंत में हम इनसे यही कहना चाहेंगे कि वो अपनी सफलता को पचाने कि कला भी सीख लें, क्यूंकि यहाँ सफलता के नशे में अच्छे-अच्छों को हमने बिखरते हुए भी देखा है.”