मेरे पापा एल.आई.सी. में थें और एक समय में पापा का बहुत अच्छा इनकम हुआ करता था. तब हमलोग बहुत छोटे थें और हमलोगों की लक्जरी लाइफ हुआ करती थी. लेकिन लाइफ में अप्स एन्ड डाउन होते ही हैं तो हमलोगों की लाइफ में भी वो वक़्त आया जब हमलोग 13 -14 साल के टीन एजर हुए, जब हमलोगों की बुद्धि खुली कि अब ऐसा होना चाहिए लेकिन तब पापा का एल.आई.सी. में बिजनेस कम होने की वजह से उनका डाउन फॉल शुरू हो गया और हमलोग पहलेवाली लाइफ मिस करने लगें. उस हालात में भी मम्मी ने ये सोच लिया था कि कुछ भी हो कहीं से इन लोगों की फ़ीस जुगाड़ करके कम से कम मैट्रिक तक अच्छे से पढ़ाऊंगी. वैसे तो मम्मी एक हाउस वाईफ हैं लेकिन उनकी हिम्मत और परिवार के प्रति समर्पण देखकर हम भाई-बहनों में भी परिस्थितियों से लड़ने की हिम्मत आ जाती थी. मैं दो बहन एक भाई में सबसे छोटी हूँ. तब मैट्रिक के बाद हम तीनों भाई-बहनों ने अपनी आगे की पढाई ट्यूशन पढ़ाकर पूरी की. हमारे ट्यूशन पढ़ाने से एक तो फैमली में थोड़ा सपोर्ट मिला और दूसरा हम अपने शौक भी पूरे कर लेते. क्यूंकि पापा पर अपने खर्चों का बोझ नहीं डालना चाहते थें.
स्कूल की फ्रेंडस के साथ सोमा दाएं से दूसरी येल्लो टीशर्ट में |
थियेटर करने के दौरान मुझे लगता था कि यदि मैं किसी और जगह शादी करुँगी तो हो सकता है मुझे ये सब चीजें नहीं करने दिया जायेगा. तो मैंने अपने थियेटर के करीबी मित्र अभय सिन्हा जी से शादी करने का फैसला किया. तब मेरे घरवाले भी उनको जानते थें. एक बार रसोई में मम्मी बुरी तरह से जल गयी थीं और उस स्थिति में अभय जी ने हर तरह से मेरा और मेरे परिवार का सपोर्ट किया था. हांलांकि तब वो भी मुझे पसंद करते थें लेकिन मुझे लगता था पता नहीं घरवाले दूसरी कास्ट में शादी के लिए तैयार होंगे कि नहीं. लेकिन जब मैंने यह सोचकर निश्चय किया कि आगे भविष्य में मुझे कुछ करना है तो फिर अपने फिल्ड के ही आदमी से शादी करना उचित रहेगा. जब हम दोनों तैयार हुए तो घरवाले तैयार नहीं हुए. फिर मनाने पर सब मान गए लेकिन मेरी मम्मी थोड़ी नाराज रहीं और गुस्से की वजह से मेरी शादी में भी शामिल नहीं हुईं. शादी के एक महीने बाद सबकुछ सेटल हो गया, मम्मी भी मान गयी. मम्मी ने तब गहराई से सोचा कि मेरी बेटी अभय जी के साथ रहेगी तो ही सही मायने में आगे बढ़ेगी. और हो सकता है हमलोग अपने पसंद से उसकी कहीं शादी करा दें लेकिन शादी के बाद वो खुश ना रहे या जो करना चाहती है वो आगे ना कर पाए. एक वो समय था और एक आज का समय है जब मम्मी गर्व से कहती है कि बहुत अच्छा दामाद मिला है जो फैमली के साथ साथ मेरी बेटी का भी सपोर्ट करता है.
2015 -16 में फोक डांस के लिए मुझे मुख्यमंत्री के हाथों बिहार कला पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उस वक़्त मैं खुश तो थी ही मगर रह रहकर एक पुरानी बात याद आ रही थी जब शुरू शुरू में थियेटर करती थी तो मुझे लेट नाइट लौटना पड़ता था. अड़ोस-पड़ोस के लोग ताने मरते कि ‘ बंगाली दादा की बेटी है, देखो ना इतनी रात में आती है. इनको शर्म भी नहीं आती.’ क्यूंकि तब लड़कियों के लिए थियेटर करना अच्छा नहीं समझा जाता था. लेकिन मेरी मम्मी का कहना था कि ‘ अगर मेरी बेटी ठीक है और हम ठीक हैं तो फिर मुझे दुनिया की परवाह नहीं है.’ तो मैं मानती हूँ कि पग-पग पर मेरी मम्मी का बहुत सपोर्ट मिला है मुझे. और तब जब मेरी तस्वीर न्यूज पेपर में छपने लगी, मेरा अच्छा नाम होने लगा तो वही ताना मारनेवाले लोग कहते-फिरते कि ‘ हम सोमा को जानते हैं, वो तो मेरी बेटी की तरह है, वो तो मेरे बगल में रहती है. अरे सोमा तो मेरी दोस्त है, मेरे साथ पढ़ी है -खेली है.’ साल 2017 में मुझे फिर से झटका लगा. जनवरी में मेरा ऐसा मेजर एक्सीडेंट हुआ कि बच जाने के बाद मैं इसे अपना दूसरा जन्म मानती हूँ. 5 महीने जो मैं लगातार बेड रेस्ट में रही तो हमेशा यही सोचती रहती कि मैं उठकर खड़ी हो पाऊँगी कि नहीं, चल पाऊँगी कि नहीं. चूँकि मुझे हमेशा लोगों के बीच रहने की आदत पड़ चुकी थी और तब रेडिओ, दूरदर्शन, एनाउंसमेंट सब छूट रहा था. फिर जब अपनी दो जुड़वां बच्चियों का ख्याल आया तो अंदर से हिम्मत पैदा हुई कि नहीं जैसे भी हो इनके लिए मुझे फिर से खड़े होना है. डॉक्टर के मना करने पर भी मैंने तय किया की दो घंटे के लिए ही जाउंगी नहीं तो मैं डिप्रेशन में चली जाउंगी. फिर मैंने जून, 2017 से स्टीक के सहारे चलकर ऑफिस जाना शुरू कर दिया.
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