अगर आप महिला हैं तो एक अविश्वास सा आपके डिपार्टमेंट को लगा रहता है: अंजलि सिन्हा, फोटो जर्नलिस्ट, दिल्ली

अगर आप महिला हैं तो एक अविश्वास सा आपके डिपार्टमेंट को लगा रहता है: अंजलि सिन्हा, फोटो जर्नलिस्ट, दिल्ली

मैं बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से बिलॉन्ग करती हूँ. इंटर तक की पढाई वहीँ से हुई है. हम तीन भाई -बहन हैं, मैं सबसे बड़ी फिर दो भाई हैं. मैंने तैयारी शुरू की इंजीनियरिंग की फिर बीच में थोड़ी बीमार पड़ गई तो तीन-चार महीना कोचिंग छूट गया. मुझे लगा अब सही नहीं है करना, अगला बैचेस आये जा रहा है तो ऐसे में नर्वस हो जायेंगे. मुझे बचपन से पेंटिंग का बहुत शौक था. पेंटिंग करने के कारण सर्च किया कि कहीं इससे रिलेट कुछ है क्या तो बीएचयू, पटना आर्ट्स कॉलेज वगैरह का पता चला. फिर मैंने पटना आर्ट्स कॉलेज से फाइन आर्ट्स से ग्रेजुएशन किया. उस दौरान अप्लायड आर्ट मेरा सबजेक्ट था जिसे कमर्शियल आर्ट भी कहते हैं जो मार्केट के हिसाब से चलता है. साथ में फोटोग्राफी भी था, क्यूंकि कोई एड आप बनाते हैं तो फोटोग्राफी की ज़रूरत पड़ती है. तब कॉलेज में बहुत अच्छी पढ़ाई नहीं थी इसलिए मैं बाद में प्रैक्टिस के लिए बाहर निकलने लगी. प्रैक्टिस करती जो कुछ तो वो अख़बारों में छपने लगा. कभी फीचर कर लिया छठ का, कभी सोनपुर मेले का तो मेरी फोटोग्राफी छपने लगी. उसी कारण से अख़बार में चूँकि छप गया तो मैं फोटो जर्नलिस्ट भी बन गयी. कुछ अलग से इसकी पढ़ाई नहीं सोची थी तो फिर जब आप फिल्ड में रहने लगते हो तो जर्नलिज्म के बारे में जानने लगते हो. मेरी शादी उसी समय ग्रेजुएशन के बीच में ही तय कर दी गयी. लड़के को दिखाया भी नहीं गया. घरवाले बहुत पीछे पड़ गए थें सेटेलमेंट को लेकर. लड़कियों का सेटेलमेंट मतलब मैरेज और लड़कों का सेटेलमेंट मतलब नौकरी. अब उनके हिसाब से लड़का अच्छा था लेकिन मेरे हिसाब से वो अच्छा नहीं था. लड़केवाले बोले कि मिलने की क्या जरुरत है. तो जब उनके तरफ से देखने की जरुरत नहीं हुई तो इधर से भी कहा गया कि “अरे वो बोल रहे हैं कि कौन लड़की है जो देखना चाहती है.” लेकिन 21 वीं सदी की बात थी, मोबाइल आ चुका था, लोग शादी के ठीक पहले मिलते थें, फोन पर बात भी करते थें. उस दौर में सिर्फ एक पासपोर्ट साइज फोटो दिखाकर शादी तय कर दी गयी. कितना रोइ-धोई लेकिन मुझे इमोशनली ब्लैकमेल किया गया. कभी सुनती कोई फांसी लगाने जा रहा है तो कोई जहर पीने जा रहा है. लड़के का पिता जीएम लेवल के बहुत अच्छे पोस्ट पर था तो घरवालों को लगा कि बहुत अच्छा रिश्ता मिल गया है. लड़का इकलौता भाई था और दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी. मैंने सबकी बात मानी लेकिन अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी.

किशोरावस्था में अपनी माँ के साथ अंजलि

 

लड़के का नेचर बहुत अपोजिट था, उसने मुझे कहा- “आगे पढ़ाई नहीं करने देंगे.” तब तो मैं ससुराल में बैठकर रह जाती. फिर किसी तरह मैं पटना हॉस्टल आ गयी. मैंने मेहनत की, ट्यूशन लिए. दुनियाभर की सारी चीजें की और ससुराल जाना ही छोड़ दिया क्यूंकि मैं उनके अनुसार गांव की लड़की टाइप पांव दबाने से लेकर तेल लगानेवाली लाइफ नहीं जी सकती थी. दिल्ली का लड़का कहकर शादी की गयी और वह लड़का कुछ ही महीने में मोतिहारी अपने घर आकर बैठ गया. सारी ठग विद्या थी, मैं उनकी ठगी की शिकार हो गयी. मैंने उससे पहले अपने माँ-बाप को समझाने की कोशिश की थी कि शादी करनी है तो कीजिये लेकिन कुछ टाइम दीजिये, पढ़-लिख लेने दीजिये. लेकिन मेरी नहीं सुनी गयी फिर ये सब होने पर मैं सब छोड़-छाड़कर मायके से भी अलग होकर पटना में रहकर पढ़ने लगी.

 

 

 

तब पटना में एक लड़की थी जो फोटोग्राफी करती थी, उसका काम पसंद नहीं किया गया तो फिर उसकी जगह मुझे मौका मिला क्यूंकि वहां फीमेल फोटोग्राफर ही चाहिए था. पढ़ाई के दरम्यान ही मुझे ‘जननी‘ एनजीओ में वो काम मिला. बहुत अच्छा पेमेंट करते थें. वहां बच्चा जन्म लेने का, अबॉर्सन का फोटो शूट करना था. 250 रूपए एक ही क्लिक का मिलता था. मेरा काम बन गया. पैसा आ गया तो हॉस्टल में खुद से देने लगी. तब बोरिंग रोड के हॉस्टल में रहती थी. पटना में मेरी की हुई फोटोग्राफी ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘दैनिक हिंदुस्तान’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘आज’ सबमे आता था. जैसे कोर्स खत्म हुआ और रिजल्ट आया मैं अकेली दिल्ली चली गयी. दिल्ली में अकेला स्ट्रगल किया. सबसे पहले जॉब खोजी. तब घर के सबलोग मुझसे नाराज चल रहे थें लेकिन अब कोई नाराजगी नहीं है. कहने को मैं ऑन पेपर मैरेड थी लेकिन मैं कभी मैरेड जैसा नहीं रही. जो मुझे दिल्ली में नहीं जानते थें उन्हें मैं नहीं बताती थी कि मैं मैरड हूँ. सबसे पहले दिल्ली आकर मुझे ये सोचना था कि मैं लड़की हूँ तो मुझे घर चाहिए, मैं लड़कों की तरह इधर-उधर फुटपाथ पर जैसे-तैसे नहीं रह सकती थी. उसी बीच जो बचाकर 30-40 हजार दिल्ली ले आयी थी तो पहले किराये पर घर ले लिया. तब मेरा छोटा भाई भी स्ट्रगल कर रहा था तो मैंने उसे दिल्ली बुला लिया कि आ जाओ दोनों मिलकर रहेंगे. तो शुरू में कुछ दिनों तक भाई मरे साथ रहने आ गया. तब लक्ष्मीनगर में सस्ता किराये का फ़्लैट मिल जाता था. और तब 6-7 हजार में आप अच्छा जी सकते थें. मेरे को लगा कि 3-4 महीने का पैसा बचा है. कॉन्वेंट में पढ़ी हूँ तो काम बहुत मिल रहे थें, झटपट में कोई कॉलसेंटर मिल जाता. लेकिन मुझे फोटोग्राफी करनी थी. उसमे समय लगता क्यूंकि लड़कों के बीच पैठ बनानी थी. पहले छोट-छोटी पत्रिकाएं मिलीं जो बंद हो जाती थीं. फिर पहला अच्छा ब्रेक मिला अमर उजाला में. एक सिंपल 8 हजार की मंथली सैलरी पर. लेकिन वहीँ से 6 महीना करते हुए जब हम फिल्ड में देखे जाने लगें तो लोगों ने बताया कि हिंदुस्तान अख़बार में न्यू चेंजेस आ रहे हैं. उसके फीचर पेज के लिए न्यू व यंग फोटोग्राफर चाहिए. बहुत लोग गएँ, उसमे मुझे चांस मिला और 6 महीने बाद वहां मेरा परमानेंट जॉब हो गया. उसमे 5-6 साल रही फिर उसके बाद जब लीगली डिवोर्स ले लिया तो घरवालों का प्रेशर आने लगा फिर शादी को लेकर. मैं पापा को बोलती थी, “अकेली हूँ दिल्ली में मगर समझ लो आपकी बेटी गलत नहीं कर रही. कितने लोग लिव इन रिलेशन में रह लेते हैं छुप-छुपाकर. लेकिन आपकी बेटी बोल्ड है, जो है सामने है.” मैं एक तो खुद को कमजोर दिखाकर दयावाला पात्र नहीं बनना चाहती थी और न ये चाहती थी कि मर्दों की दुनिया में ये हो कि इजली ऐविलेवल का टैग लगे. इसलिए मैंने कभी किसी को नहीं बताया कि मेरा डिवोर्स हो गया है. मैं स्मार्टली काम करती रही.

        अपने पति व बच्ची के साथ अंजलि सिन्हा

मगर मेरे दोस्तों को पापा देखते तो पीछे पड़ जाते कि “शादी फिर से करनी ही पड़ेगी वरना कोई कहेगा कि किसी के साथ रह रही हो. हमको चैन नहीं मिलेगा”. और जैसा हो जाता है गार्जियन लोगों को बच्चों को लेकर. तो तब जो मेरे दोस्त थें अब मेरे हसबेंड हैं. वो वीडियो एडिटर हैं. पहले का इतना गंदा एक्सपीरियंस रहा था कि अब मैं शादी चाहती ही नहीं थी. लेकिन अपने माँ-बाप कि ख़ुशी के लिए फिर मैंने 2008 में शादी कर ली. मैं अभी भी मुजफ्फरपुर अपने मायके आती-जाती हूँ. ना मेरे पैरेंट्स को छोड़ा ना ही उन्होंने मुझे छोड़ा. शुरू-शुरू में मेरे फैसले पर खूब ताने सुनने को मिले थें कि लोग क्या-क्या कह रहे होंगे..? लेकिन बाद में जब मेरे इंटरव्यू आने लगें, जब मैं सक्सेस हो गयी, हिंदुस्तान अख़बार में परमानेंट जॉब मिल गया तो फिर वे प्राउड फील करने लगें कि बेटी जर्नलिस्ट है. वहां लड़का ही नहीं अच्छा था, ससुरालवाले लाख अच्छे होते तो मुझे क्या फर्क पड़ता. यहाँ लड़का अगर आपको सपोर्ट कर रहा है तो अगर ससुरालवाले मुझे नहीं भी सपोर्ट करें तो क्या फर्क पड़ता है…?

       अंजलि सिन्हा का सोलो पेंटिंग एक्जीबिशन

मेरे काम के लिए एनडीएमसी ऑल इंडिया एक्जीबिशन में मुझे अवार्ड मिला था. और कई छोटी-बड़ी संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया. ज्ञानपीठ प्रकाशन से एक किताब निकली है 2018 में जिसमे चुनिंदा महिला फोटो जर्नलिस्ट का छपा है जिसमे मेरा नाम भी शामिल है.
मेरी पहली नौकरी एक मैगजीन में लगी थी. जब महीने का लास्ट आने लगता था तो मैं केजी मार्ग से कुछ किलोमीटर 5 रुपया बचाने के लिए पैदल चलकर आती थी. तब 5 हजार सैलरी मिल रही थी और ऑफिस दूरी पर था. तो बस का टिकट लगना ही था. कहने को तो मैं थी जर्नलिस्ट लेकिन कन्वेंस के रूप में कुछ दे भी नहीं रहे थें. बस पर लटककर गर्मी में जाने की आदत नहीं थी लेकिन करना पड़ा जिससे मन खराब हो जाता था. बाहर कुछ खाने की इच्छा होती तो सोचती 16 रूपए में प्लेट देगा तो कई बार खाना छोड़ देती. तब मैं और मेरे फ्रेंड लोग दशहरे में ये सोचते थें कि अरे यार सप्तमी को बंगाली लोग खिलाते हैं तो चलो खा लें जाकर. हम पहले इतना शर्माते थें कि खड़े होकर लाइन में प्रसाद लेने में खराब लगता था लेकिन उस दौरान हम भंडारे में जाकर खा लेते थें. फिर अमर उजाला में गयी तो वहां से कभी 5 स्टार होटल में जाने का मौका मिलता हीरो-हीरोइन के पास तो वहां खाना-पीना सब फ्री में हो जाता था. जिंदगी आसान तो कभी थी नहीं. लेकिन एक तरह से मजा था कि मुझे सीखने को बहुत मिला. जिंदगी ने सिखाया बहुत कुछ. और इस फोटोग्राफी के लाइन में रह जाने से हुआ कि रोज नयी चीज सीखने को मिली. मतलब मैं एक आईएएस से मिल रही हूँ तो एक गुंडे से भी मिल ले रही हूँ. एक गरीब परिवार के 7 आदमी पेंड़ गिरने से दबकर मर गए थें. वहां जाते ही आपको भगवान जैसा माना जाने लगा कि ये आ गएँ अब तो मेरा दुःख दूर हो जायेगा.

‘बोलो ज़िन्दगी’ के साथ अपने अनुभव साझा करतीं अंजलि सिन्हा

मैंने महसूस किया कि आप कहीं भी फोटो जर्नलिस्ट के रूप में हैं लेकिन अगर आप महिला हैं तो एक अविश्वास सा आपके डिपार्टमेंट को लगा रहता है कि इसमें वो लेवल नहीं होगा, वो कर पायेगी या नहीं. लेकिन ये अविश्वास पुराने ज़मानेवाले सीनियर्स में जयादा देखने को मिलता था, आज के नए मिजाज, नयी सोचवाले न्यू जेनरेशन के लोगों में नहीं. कभी हमें रात को भेजना हो तो आपके बॉस सोच में पड़ जायेंगे कि लड़की है इसको भेजूं की नहीं भेजूं. एक बार रात में कहीं से आ रही थी और कैब का ड्राइवर ने अचानक जंगलवाला रोड पकड़ लिया. उसे बोल रहे हैं अरे यार उधर से निकालो लेकिन रॉन्ग साइड में बढ़ाये जा रहा है गाडी. नेटवर्क की वजह से फोन भी नहीं लग रहा था. तो वहां पर कॉन्फिडेंस दिखाकर फोन लगया और झूठमूठ का किसी फ्रेंड से बात करने का नाटक किया. अंदर से डरी हुई थी. फिर जैसे ही रास्ते में पुलिस को देखा तो तुरंत विंडो नीचे करके बोली “सर, ये मेरे साथ ऐसा कर रहा है, इधर-उधर घुमा रहा है…” फिर पुलिस ने उसे पकड़कर एक-दो डंडे बरसाए तो उसने मेरे पैर पकड़ लिए. तो ऐसे-ऐसे सिचुएशन से भी पाला पड़ा. एक बार मैं जुलूस के दौरान बस पर चढ़कर फोटोग्राफी करने लगी. वहां जमा हुए लोग पूरा बस ही हिलाने लगें. नीचे सिर्फ मर्द-ही-मर्द और उस सिचुएशन में मैं एक अकेली औरत फंसी हुई थी. डर से दिमाग खराब हो गया कि नीचे भी गिराकर नोंच-नाच लें तो हम क्या कर पाएंगे… लड़की को तो यह भी लेकर चलना है कि कुछ ना भी करें, कपडे भी फाड़ दें तो बहुत बुरा हो जायेगा. सब देखना-सोचना पड़ता था. उस समय काम का ऐसा जुनून रहता था कि मैं नहीं करुँगी तो कोई दूसरा कर जायेगा. बॉस कहेगा कि उसका फोटो इतना अच्छा आया तुम्हारा क्यों नहीं…? तो कौन जवाब देगा… इसलिए जब मेरी बच्ची होनेवाली थी मैंने जॉब छोड़ दिया कि जॉब करना है तो अच्छे से करना है. बच्ची अभी छोटी है इसलिए अभी फ्रीलांसिंग करती हूँ. जब समय मिलता तो मै पेंटिंग बनाती और कई जगह एक्जीबिशन भी लगायी. अब मेरी बच्ची 2 साल की है तो उसे साथ लेकर जाती हूँ और अब काम को लेकर चूजी हो गयी हूँ. मतलब बच्ची के साथ रैला-रैली में नहीं जा सकती मगर फैशन शो में जा सकती हूँ. अब मैं खुद का ‘गो बिहार’ पोर्टल शुरू करने जा रही हूँ जिसके बारे में आनेवाले दिनों में पता चलेगा. साथ-साथ फोटोग्राफी तो हमेशा के लिए चलती रहेगी.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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