पटना की चीफ डेंटल कंसल्टेंट डॉ. आकांक्षा अभिषेक जो ‘द टूथ डॉक्टर्स’ डेंटल क्लिनिक की फाउंडर हैं इस कोरोना काल में खुद संक्रमित हो गयी थीं बावजूद ये ना सिर्फ़ कोरोना से ज़िंदगी की जंग में खुद विजयी हुईं बल्कि कई सारे कोविड पेशेंट्स की ज़िंदगी बचाने के काम आईं.
कोरोना के दूसरी लहर के तेज़ होते ही 16 अप्रैल को इन्हें अपना क्लिनिक बंद करना पड़ा. बंद होने के तीन-चार दिन बाद ही इनके सहयोगी डॉक्टर्स के कोरोना के सिम्टम्स दिखने शुरू हो गयें, फ़िर एक हफ़्ते बाद ये खुद भी कोरोना पॉजिटिव हो गईं. उसके बाद होम कोरन्टीन रहकर कोरोना से फाइट करती रहीं. उस दौरान वीकनेस इतनी ज्यादा होती थी कि ख़ुद से उठकर घर में कोई काम करना भी मुश्किल था. तब उनके लिए खाना भी कोविड पेशेंट्स को निःशुल्क खाना पहुंचा रही किसी संस्था की तरफ़ से ही आता था. नींद बहुत कम आती थी. तब घर में अकेले समय व्यतीत करना बहुत मुश्किल था. समय का सदुपयोग करने के लिए उसी दौरान डॉ. आकांक्षा सोशल मीडिया के कई मुहिम से जुड़ीं. कोविड पेशेंट्स की सहायता के लिए व्हाट्सएप पर बने 5-6 ग्रुप्स से वे जुड़ गयीं.
मैसेज के द्वारा मरीजों को हेल्प पहुंचाने के इस मुहिम में शामिल होते ही शुरू के लगातार 10 दिन ज़रा सी भी फ़ुर्सत नहीं मिल पा रही थी. डेंटिस्ट होने के नाते इनके पास सीरियस डेंटल केसेज़ तो आते ही थें उसके अलावा कोविड से रिलेटेड, सुगर और हार्ड पेशेंट्स के केसेज़ बढ़ने लगें. डॉ. आकांक्षा के कुछ फ्रेंड्स पटना एम्स में थें, तो इनका काम होता कि आये हुए मैसेजेस के आधार पर वे मरीज़ और डॉक्टर्स के बीच कॉर्डिनेट करती थीं. सीरियस डेंटल केस में कई बार ये वीडियो कॉलिंग के माध्यम से मरीज को चिकित्सीय सलाह देती थीं. 17 मई को जब ये कोरोना निगेटिव हुईं तो और उत्साह से सोशल मीडिया द्वारा जनसेवा के मुहिम में जुट गयीं. उस दौरान कब सुबह से रात हो जाती पता ही नहीं चलता था. चाहे आधी रात को 3 बजे हों या सुबह के 4, टाइम का कोई लिमिटेशन नहीं था. कभी भी किसी सीरियस केस के मैसेज आ जाते थें इसलिए हमेशा तब फोन को भी ऑन रखना पड़ता था. फोन के जरिये ही वे यथासंभव हॉस्पिटल में बेड की बुकिंग से लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर की रिफलिंग तक मुहैय्या करा देती थीं.
जिस टाइम कोरोना अपने पीक पर था, ऑक्सीजन सिलेंडर की बहुत ज्यादा मारा मारी थी, डॉ. आकांक्षा ने अपने क्लिनिक के दो ऑक्सीजन सिलेंडर डोनेट किये थें. शुरू में तो वे उनके जान पहचानवालों के पास गयें फ़िर वहाँ से कई जगह रोटेट होते रहें.
इस दौरान विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं को डॉ. आकांक्षा ने अपनी तरफ़ से ज़रूरतमंदों के लिए 70 किलो राशन सामग्री और लगभग 5 हज़ार कोविड की आम दवाएं वितरित करने हेतु दीं. फेसबुक के माध्यम से उन्हें पता चला कि इन ज़रूरी दवाओं की आवश्यकता शहर से ज्यादा गाँव में है तो अपने फ्रेंड्स के माध्यम से दवाएं वहाँ तक पहुंचाईं. एक दफ़े सहरसा जिले में दवा भेजनी थी. तब दोस्तों ने उन्हें बताया कि राजधानी एक्सप्रेस से एक बंदा कहीं बाहर से आ रहा है और सहरसा जाएगा, बीच में उसका स्टॉपेज पटना स्टेशन है, लेकिन ट्रेन 10 मिनट ही रुकेगी… तबतक डॉ. आकांक्षा पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी थीं, वे दोस्तों के बताए अनुसार तय समय पर पटना स्टेशन पहुँचकर उस बंदे को ज़रूरी दवाएं दे आईं. सहरसा पहुँचते ही दवाएं तीन-चार गाओं में भेज दी गईं जहाँ बहुत ज्यादा जरूरत थी.
बोलो ज़िंदगी के साथ विशेष बातचीत में डॉ. आकांक्षा कहती हैं, “जब मैं भी कोरोना पॉजिटिव हो गयी तो फ़िर हर हाल में अपने मन को पॉजिटिव बनाये रखने के लिए इस सामाजिक मुहिम से जुड़ गई, औऱ जब आपका मन एक बार सकारात्मक हो उठता है तो फ़िर आपके शरीर को स्वस्थ होने में ज्यादा वक़्त नहीं लगता.”