कुर्जी, पटना की रहनेवाली अंशु गोसाईं टोला स्थित महंत हनुमान शरण उच्च विधालय में 12 वीं की छात्रा है. 2015 -16 के नेशनल वुशू (मार्शल आर्ट) प्रतियोगिता के लिए गोल्ड मैडल जीतकर बिहार से चयनित हो चुकी है. 2016 में अंशु पुणे में हुए 15 वीं जूनियर नेशनल वुशू चैम्पियनशिप में ब्रॉन्ज मैडल जीतकर आई. फिर इसी साल फरवरी 2017 में आंध्रप्रदेश में हुए ‘खेलो इण्डिया’ वुशू चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतकर आयी. इस बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए 29 अगस्त 2017 को खेल दिवस के मौके पर होनेवाले सम्मान समारोह में बिहार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा अंशु को सम्मानित किया गया. लेकिन अंशु की इस सफलता के पीछे उसके कोच का बहुत बड़ा हाथ है. 2011 में जब अंशु बांकीपुर कन्या उच्च विद्यालय में 6 वीं कक्षा में पढ़ रही थी तभी कुर्जी, चश्मा सेंटर के पास सड़क पर सब्जी बेचने के दौरान उसका परिचय हुआ वर्तमान में उसके कोच एवं पटना वुशू एसोसिएशन के सचिव सूरज कुमार से फिर तो उसकी जिंदगी ही बदल गयी. अंशु के मम्मी-पापा नौबतपुर अपने गांव में रहते हैं और अंशु पटना के कुर्जी स्थित विकासनगर में अपनी नानी के साथ रहती है. चूँकि अंशु के कोई मामा नहीं हैं और नाना जी भी गुजर चुके हैं इसलिए नानी की देखभाल के लिए अंशु अपनी दो बहनों और इकलौता भाई के साथ ननिहाल में ही रहकर पढाई करती है. अंशु के पापा अरुण राय एक पेट्रोलपंप कर्मी हैं तो माँ आंगनबाड़ी शिक्षिका हैं . नौबतपुर से ही रोजाना उनके पापा खगौल स्थित पेट्रोलपंप पर ड्यूटी करने जाते हैं. हफ्ते में दो दिन उसके मम्मी-पापा कुर्जी आकर बच्चों से मिलजुल लेते हैं. बहुत पहले अंशु की नानी की आर्थिक स्थिति को देखकर किसी ने अपनी खाली पड़ी जमीन पर उन्हें सब्जी उगाने की इजाजत दे दी थी. चूँकि अंशु की नानी ही उसकी पढ़ाई-लिखाई का बोझ उठा रही थीं इसलिए उसने भी नानी के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. स्कूल से घर आने के बाद वो खेत से सब्जियां उठाकर कुर्जी, चश्मा सेंटर के पास ले आती थीं जहाँ फिर नानी के साथ सब्जी बेचने में उनकी मदद करती थी.
कुर्जी, चश्मा सेंटर के पास ही रहनेवाले वुशू गेम के पटना जिला के सक्रेटरी सूरज एक शाम सब्जी लेने इनके पास पहुंचे तो उन्हें यह देखकर हैरत हुई कि स्कूल ड्रेस पहनी एक बच्ची सब्जी बेच रही है. पूछताछ के क्रम में जब सूरज जी को पता चला कि अंशु को खेल कूद में बहुत रूचि है और वह अपने स्कूल की स्पोर्ट्स टॉपर है तब उन्होंने अंशु को वुशू, मार्शल आर्ट मुफ्त में सीखने का ऑफर दिया. फिर अगले ही दिन से अंशु ने सूरज जी की कुर्जी स्थित संस्था में फ्री में वुशू मार्शल आर्ट सीखना शुरू कर दिया. बहुत कम समय में ही अंशु अपना जौहर दिखाने लगी. पहली बार अंशु बिहार कला संस्कृति व युवा विभाग के तत्वधान में आयोजित विधालय वुशू जिला प्रतियोगिता 2013 -14 में दिल्ली में आयोजित 59 वीं नेशनल स्कूल गेम्स ‘अंडर 19’ में हिस्सा लेकर क्वार्टर फाइनल तक पहुंची. 2014 में फिर एक बार नेशनल के लिए सेलेक्ट होकर 17 वीं जूनियर नेशनल वुशू प्रतियोगिता, छत्तीसगढ़ में हिस्सा लिया. 2015 में आरा में हुए राज्य वुशू प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल प्राप्त किया. इसके आलावा सितंबर 2015 में नेशनल विंग चुन कुंगफू प्रतियोगिता, गौहाटी में गोल्ड मैडल जीता. एनसीसी की तरफ से 2014 में दिल्ली केंट में हुए प्रतियोगिता में भाग लेकर निशानेबाजी में गोल्ड मैडल जीता.
उम्र कम होते हुए भी अंशु के इस प्रदर्शन को देखते हुए नॉट्रेडेम एकेडमी स्कूल की ‘जूली’ संस्था ने वहां पढ़नेवाली गरीब जूनियर बच्चियों के लिए अंशु को स्पोर्ट्स टीचर के रूप में नियुक्त कर लिया. अंशु अपने स्कूल की पढ़ाई करते हुए, वुशु , मार्शल आर्ट की प्रैक्टिस भी करती और जूली संस्था में बतौर स्पोर्ट्स टीचर अपनी सेवाएं देने लगी. लेकिन जब अंशु 10 वीं क्लास में गयी तो अपनी पढ़ाई की वजह से उसने ‘जूली’ संस्था जाना छोड़ दिया लेकिन वुशू की प्रैक्टिस चलती रही. अंशु की नज़र अब बड़े लेवल की प्रतियोगिताओं पर है जिसमे हिस्सा लेकर वो बिहार के लिए गोल्ड मैडल जितना चाहती है. उसे जो सुविधाएँ मिलनी चाहियें वो नहीं मिल पा रहीं, लेकिन पैसों के अभाव में भी अंशु का हौसला पस्त नहीं हुआ है और वह अपनी उम्र की लड़कियों के लिए एक रोल मॉडल बन गयी है. अंशु को तो सूरज के रूप में गॉडफादर मिल गया लेकिन ठीक उसी हालात से गुजर रही अन्य होनहार बच्चियों का भविष्य क्या होगा अब यह राज्य सरकार को देखना होगा.