पटना, 3 अप्रैल, बोलो ज़िन्दगी के साथ फोन पर विशेष बातचीत में मुंबई से भोजपुरी फिल्मों के भीष्मपितामह कहे जानेवाले अभिनेता कुणाल सिंह ने अपनी लॉक डाउन स्टोरी सुनाते हुए कलाकारों, मजदूरों और जानवरों के प्रति अपनी गहरी संवेदना प्रकट करते हुए अपने शुभचिंतकों के नाम एक संदेश भी दिया है जो यहाँ प्रस्तुत है –
“आप तमाम शुभचिंतको को कुणाल सिंह का प्रणाम. यूँ तो भोजपुरी फ़िल्मों के कलाकार के हैसियत से मेरा और आपका सम्बन्ध पिछले कई वर्षों से रहा है, और उसी रिश्ते के तहत आप जो अपने हैं आप से अपनी बात कह रहा हूँ. आज कोरोना महामारी से पूरी दुनिया परेशान है, आप भी और मैं भी. और इस लॉक डाउन ने तो जैसे ज़िन्दगी की रफ़्तार ही रोक दी है. मगर इंसान की ज़िंदगी सुख और दुख के थपेड़े खाते हुए ही कटती है.
पिछले 5 मार्च को मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया. धार्मिक रीति रिवाज़ पूरा करते करते कोरोना महामारी का संक्रमण चारों ओर फैल गया. और जो जहाँ है वहीं रुक गया. मगर इस लॉक डाउन ने इस ज़िन्दगी को और अच्छी तरह समझने का अवसर दिया. मैंने पाया कि धार्मिक होते हुए भी धर्म को और अच्छी तरह समझने की उत्सुकता मेरे अंदर पैदा हो गयी है. हर धर्म को समझने का प्रयास करने लगा. डीजे के शोर से मुक्ति पाकर पुरानी फिल्मों के गीत-संगीत का आनन्द उठाने का अवसर मिला. हम इंसान तो अपनी भूख अपनी जरूरतों को किसी ना किसी तरह पूरा कर लेते हैं लेकिन मेरा ध्यान सड़क पर घूमते जानवरों ने आकर्षित किया. मैं सोचने लगा वो अपनी भूख की ज्वाला कैसे शांत करेंगे. सड़कें सूनी, शहर बन्द…और मैं अपने घर पर खिचड़ी बनवाकर उन्हें खिलाने का काम करने लगा. सच मानीय बड़ा आनन्द आया. और वो कुत्ते,गायें अब मुझे पहचानने लगे हैं, देखते ही करीब आ जाते हैं और मैं उन्हें उम्मीद की नज़रों से ताकते हुए देखता हूँ. तो वो भी मुझे अपने होने का एहसास कराते हैं, ईश्वर ने उनकी भी रचना की है, वो भी तो अपने ही हैं.
बाद में महसूस हुआ कि हम कलाकार भी तो मजदूर ही हैं, अगर कला की मजदूरी ना करें तो परिवार का पेट कैसे भरेंगे. काम बंद, आमदनी नहीं, हमारे जैसे कलाकार तो कुछ दिन अपने परिवार को पाल लेंगे, लेकिन वो कलाकार जो दिनभर मेहनत करते हैं, तब शाम को उन्हें मेहनताना मिलता है. वो मजदूर जो दिनभर पसीना बहाते हैं, सड़कों पर छोटी छोटी दुकान लगानेवाले, रिक्शा चलाकर परिवार को पालनेवालों का क्या हाल होगा. खाली हाथ, भूखे बच्चे , सूनी आंखों से देखते घर के बाकी लोग सच में दिल दहल जाता है. लेकिन अपने लिए, अपने परिवार के लिए हमे अनुशासन में रहना होगा, और इस महामारी से लड़ने के लिए बताए गए सारे नियमों का पालन करना होगा. हिम्मत नहीं हारें, हम जीतेंगे, ज़रूर जीतेंगे. बस कुछ दिनों की ही बात है फिर हमसब अपने-अपने सपनों को पूरा करने पंछी की तरह पंख फैलाये खुले आसमान में उड़ेंगे.”