हाल ही में एक ख़बर सुर्खियों में आई थी कि पटना में एक बेटी ने अपनी माँ के देहांत के बाद उनका अंतिम संस्कार किया, उनके मृत शरीर को मुखाग्नि दी. वो बेटी हैं पटना की गुड़िया कुमारी जो पटना वीमेंस कॉलेज से ग्रेजुएट हैं और फिलहाल बीएड फाइनल ईयर की स्टूडेंट हैं. गुड़िया ने जिन महिला को मुखाग्नि दी वो उनकी बुआ थीं सीनियर एडवोकेट, सुजाता मुखर्जी जो पिछले 38 सालों से पटना हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रही थीं. बचपन में ही गुड़िया की माँ का देहांत हो गया था तो उनकी बुआ जो सिंगल वूमेन थीं उन्होंने गुड़िया को गोद ले लिया और एक माँ का प्यार दिया. चूंकि गुड़िया के पिताजी ज्यादा पढ़े – लिखे नहीं थे इसलिए परिस्थिति को समझते हुए बुआ ने सभी की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. गुड़िया, उनका भाई और पिताजी सभी बुआ के साथ ही रहते थे. परन्तु दुर्भाग्यवश 2018 में गुड़िया के भाई की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. बचपन से गुड़िया का ना सिर्फ़ लालन पालन उनकी बुआ ने किया बल्कि उसके स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई की सारी जिम्मेदारी निभाईं. बुआ सुजाता मुखर्जी गुड़िया के लिए माँ-बाप से बढ़कर थीं, वही गुड़िया की गॉडमदर और सबकुछ थीं.
सबसे पहले 15 अप्रैल 2021को गुड़िया के पिताजी कोरोना संक्रमित हुयें फ़िर 20 अप्रैल को ख़ुद गुड़िया और उनकी बुआ भी कोरोना पॉजिटिव हो गईं. बुआ किडनी की बीमारी से ग्रसित थीं जो 8 सालों से डायलिसिस ले रही थीं. हफ़्ते में 3 बार उन्हें डायलिसिस लेनी पड़ती थी.21 अप्रैल को जब मामला सीरियस हुआ तो गुड़िया अपनी बुआ को लेकर अकेले ही हॉस्पिटल्स के चक्कर काटने लगीं, तब कोरोना अपने चरम पर था, कहीं भी बेड नहीं मिल पा रहा था. तब गुड़िया की बुआ को कोरोना के इलाज़ से भी ज्यादा ज़रूरत डायलिसिस की थी. गुड़िया के अपार्टमेंट में रहनेवाले डॉ. शिवेंदु झा ने अपने परिचित डॉ. पंकज के माध्यम से रुबन हॉस्पिटल में बेड दिलवाया जहाँ 22 अप्रैल को गुड़िया ने अपनी बुआ को एडमिट कराया. रात के 10 बज गए थे, अगले दिन गुड़िया अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित कर पातीं कि तभी उनके पापा जो कोरोना संक्रमित थे वह भी अचानक सीरियस हो गये. गुड़िया अपने पापा को एनएमसीएच लेकर गयीं और फिर अकेले ही आधी रात को वहाँ से रुबन में भर्ती करवाया. इसी बीच 10 मई को बुआ ने अपनी अंतिम सांस ली और रुबन में उनका देहांत हो गया. तब गुड़िया एकदम अकेली पड़ गईं. उनके बाकी के रिश्तेदार सभी बिहार से बाहर दूसरे राज्य और विदेश में थें. ऐसे माहौल में उनका यहाँ आना भी बहुत मुश्किल था. जब दूर से ही सभी रिश्तेदारों ने गुड़िया को सहारा दिया और लगातार फोन से उसके संपर्क में रहें तो फ़िर गुड़िया ने हिम्मत बटोरकर सारी जिम्मेदारी अपने सर ले ली.
गुड़िया की बचपन कि दोस्त श्रेया की मां संगीता अग्रवाल ने “माँ वैष्णो देवी सेवा समिति” के मुकेश हिसारिया जी से सम्पर्क कर सारी जानकारी दी कि “एक बेटी की माँ का देहांत हो गया है, पिता भी हॉस्पिटल में एडमिट हैं, पटना में अभी वो बिल्कुल अकेली है, उसे मदद की ज़रूरत है”. फ़िर मुकेश जी ने अपनी संस्था के माध्यम से गुड़िया की बुआ के लिए एम्बुलेंस से लेकर पंडित, घाट पर रजिस्ट्रेशन और दाह-संस्कार की व्यवस्था करा दी. घाट पर गुड़िया को घण्टों प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी और तुरंत ही सब हो गया. गुड़िया ने और लोगों की तरह सुन रखा था कि लड़कियां शमशान में अग्नि नहीं देती हैं, लेकिन आज गुड़िया ही अपनी बुआ सुजाता मुख़र्जी की बेटी, बेटा सबकुछ थी इसलिए उन्होंने ही अपनी माँ समान बुआ को कंधा भी दिया और मुखाग्नि भी दी. और यह सारी प्रक्रिया उनके सारे रिश्तेदार जो पटना से बाहर थें फोन पर वीडियो कॉलिंग के माध्यम से देख रहे थें. सभी ने गुड़िया का शुक्रिया अदा किया कि “तुम हो तभी हम ये सारा क्रियाकर्म देख पाएं.” गुड़िया के रिश्तेदार उनकी बुआ के कोरोना पॉजिटिव होने के समय से ही फोन के माध्यम से गुड़िया से जुड़े थें, सलाह देते थें, प्रोत्साहित करते थें.
जब बुआ अस्पताल में एडमिट थीं तब भी गुड़िया आईसीयू में पीपीई किट पहनकर जातीं और वीडियो कॉलिंग के माध्यम से बुआ को दिखाती थीं. गुड़िया कहती हैं “वो भी अकेले इतना कुछ परिवार के सहारे और बुआ की दी गयी सीख से ही कर पायीं.” वे बताती हैं कि “उनकी बुआ खुद बहुत स्ट्रांग थीं, उनकी इच्छा शक्ति गज़ब की थी. हर हाल में खुश रहती थीं. कभी कोई समस्या भी होती तो बहुत पॉजिटिव रूप से सामना करती थीं. बुआ तो चली गईं लेकिन अपनी इच्छा शक्ति मुझे दे गयीं. वे हमेशा कहती कि तुम्हारी परेशानी को कोई और हल नहीं करेगा, जो करना होगा तुम्हीं करोगी. याद है मुझे अपने पैरों पर खड़ा करने और साहसी बनाने के लिए उन्होंने क्या किया था. 10 वीं करने के बाद मैंने उनकी प्रेरणा से ही समय का सदुपयोग करने और जीवन में नया अनुभव हासिल करने के लिए एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया था. उसके बाद मुझे घर पर ट्यूशन मिलने लगे. तब विश्वास बढ़ा और अब ट्यूशन के लिए मेरे पास कॉन्वेंट, जोसफ व डॉनबॉस्को के स्टूडेंट्स भी आते हैं.” गुड़िया आगे बताती हैं कि “बुआ और वो माँ-बेटी ही नहीं बल्कि बहुत अच्छे दोस्त भी थें, एकदूसरे से हर बात शेयर करते थें. बुआ किडनी की बीमारी से ग्रसित थीं लेकिन अपनी इच्छा शक्ति की वज़ह से ड्राइवर के साथ कोर्ट जातीं, अपना केस भी देखती थीं. गुड़िया के साथ घूमने और मूवी देखने तक जाती थीं.”
गुड़िया ने बताया कि वे अपने पापा और बुआ के साथ 2020 में अपनी छोटी बुआ के पास नासिक गयी थीं और कोरोना की वज़ह से कई महीनों से सब वहीं पर रह रहे थें. लेकिन उनके एक्जाम की तारीख आ गई तो जनवरी 2021 में सभी पटना चले आएं, लेकिन किसे पता था नियति फिर एक बार उन्हें उनकी माँ से जुदा करने के लिए बुला रही है. गुड़िया बताती हैं, “वो 9 मई का दिन था, बुआ वेंटिलेटर पर जा चुकी थीं. उसी दिन मदर्स डे था और मुझे पूरा यकीन था कि आज के दिन मेरी माँ मुझे छोड़कर नहीं जा सकती. मदर्स डे के दिन वे हमारे बीच मौजूद रहीं फ़िर आधी रात, 10 मई को अपना आर्शीवाद देकर हम सब से बहुत दूर चली गईं.”
गुड़िया बताती हैं कि “बुआ सुजाता मुखर्जी बहुत ही जुझाडू महिला थीं. सिंगल वूमेन होते हुए भी उन्होंने अपनी काबिलियत और साहस की बदौलत एक सम्मानजनक जॉब कीं, खुद से घर खरीदा और हमलोगों की सारी जिम्मेदारी भी पूरी संजीदगी से निभाईं. उनका सपना था कि उनकी लाडली बेटी भी पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाये, और शायद इसलिए उन्होंने मुझे ठीक अपनी तरह ही साहसी बनाया, मुझे अच्छी से अच्छी शिक्षा दी. इसके साथ-ही-साथ मुझे डांस, म्यूजिक, एंकरिंग, डिबेट और राइटिंग सबकुछ सिखाया. आज जो मैं अकेली होकर भी हिम्मत नहीं हार रही वो सब बुआ के बदौलत ही हुआ है.”
गुड़िया जो फिलहाल अपने पापा की जान बचाने में जुटी हुई हैं, अपने एपार्टमेंट में रहनेवाले सरदार सुरजीत सिंह की फैमिली की भी बहुत शुक्रगुजार हैं जो डेढ़ महीने से उन्हें चार टाइम का नाश्ता-खाना, बिस्किट, फल ख़त्म होने के पहले ही दे जा रहे हैं. यहाँ तक कि हॉस्पिटल में एडमिट उनके पापा के लिए भी खाना यही फैमिली दे रही थी. 21 दिन तक गुड़िया के पापा रुबन में एडमिट रहें और 15 मई को गुड़िया ने उन्हें पटना एम्स में ले जाकर एडमिट कराया. उनका 80% लंग्स डैमेज हो गया था. गुड़िया करीब डेढ़ महीने से रोजाना पापा को हॉस्पिटल में खाना पहुंचाने तो कभी कोई ज़रूरी दवा देने जा रही थीं. बोलो ज़िंदगी को गुड़िया से बातचीत के दौरान ही ज्ञात हुआ कि आज 2 जून को ही गुड़िया के पापा डिस्चार्ज होकर घर आ चुके हैं.
अभी उनके पापा को यह ख़बर नहीं है कि उनकी बहन यानी गुड़िया की बुआ अब इस दुनिया में नहीं हैं. इस बाबत गुड़िया कहती हैं, “छोटे भाई को खोने का सदमा पापा के साथ साथ वो खुद भी झेल चुकी हैं, अब अपनी बुआ माँ के जाने के बाद पापा की जिंदगी बचाना और उनके व परिवार के सपने को पूरा करना ही उनका एकमात्र लक्ष्य है.”