बिहार आर्ट थियेटर के 57 वें स्थापना नाट्योत्सव में हुआ ‘बेटी पढ़कर क्या करेगी?’ का मंचन

बिहार आर्ट थियेटर के 57 वें स्थापना नाट्योत्सव में हुआ ‘बेटी पढ़कर क्या करेगी?’ का मंचन
लोकपंच की प्रस्तुति ‘बेटी पढ़कर क्या करेगी?’

पटना, 25 जून, गाँधी मैदान स्थित कालिदास रंगालय में बिहार आर्ट थियेटर के 57 वें स्थापना नाट्योत्सव का श्रीगणेश हुआ जो हफ्ते भर चलेगा. दीप प्रज्वलित कर नाट्योत्सव का उद्घाटन किया दूरदर्शन बिहार की सहायक निदेशक रत्ना पुरकायस्थ एवं संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष आर.एन.दास ने.
वहीँ बिहार आर्ट थियेटर के सचिव कुमार अनूप ने 1961 की परिस्थितियों का जिक्र करते हुए कहा कि “नाट्यकार अनिल मुखर्जी ने कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए नाट्य संस्था की स्थापना उस समय की जब नाटक-नौटंकी को समाज अच्छी निगाह से नहीं देखता था और तब जहाँ लड़कियों का प्रवेश ही वर्जित था. उन दिनों प्रो. समीर सेन गुप्ता, प्रो. शम्मी खान, मीनाक्षी डे, मीरा झा, मधुकना सरकार, आर.पी.तरुण, अजित गांगुली समेत रंगकर्मियों की एक टीम ने संस्था को नाट्य गतिविधियों से आगे बढ़ाया और कालिदास रंगालय परिसर का निर्माण हुआ. अब आज के दौर में रमेश सिंह, मधुकांत श्रीवास्तव, सिकंदर आजम, अनिल चतुर्वेदी, मृगांक जैसे सशक्त रंग निर्देशकों की टीम संस्था को आगे बढ़ाएगी.” जहाँ वरिष्ठ रंगकर्मी अशोक घोष ने स्वागत तो वहीँ अवधेश नारायण प्रभाकर विशाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
अब बारी थी लोकपंच संस्था द्वारा मनीष महिवाल के निर्देशन में नाटक ‘बेटी पढ़कर क्या करेगी?’ के मंचन की जो बाल विवाह एवं दहेज़ प्रथा के कारण होनेवाले दुष्परिणामों को दर्शाता है. नाटक में दिखाया गया कि कैसे माँ-बाप अपनी बेटियों को पढ़ने-लिखने की बजाये उनका शादी-ब्याह करके अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाने में लगे रहते हैं. इस नाटक के माध्यम से यह सार्थक सन्देश दिया गया कि अगर लड़कियों को सही ढ़ंग से शिक्षा-दीक्षा और मार्गदर्शन मिले तो वो भी समाज में एक मिसाल कायम कर सकती हैं. इस नाटक में दिखाया गया है कि एक बच्ची जो अभी नाबालिग है, वह अपने माता-पिता से अनुरोध करती है कि अभी उसका ब्याह ना करें तथा पढ़ने-लिखने की इजाजत दें. महिला सशक्तिकरण ही इस नाटक का उद्देश्य है.

बाल-विवाह पर चोट करता मंचन ‘बेटी पढ़कर क्या करेगी?’

मंच पर नाट्य प्रस्तुति करनेवाले कलाकार थें- मनीष महिवाल, उदय सागर, गौतमी कुमारी, दीपक आनंद, रजनी शरण, विनोद कुमार, सुजीत कुमार ‘उमा’, बबली कुमारी, भारती, सरबिन्द कुमार, कुणाल कुमार, रोबन कुमार एवं देव टंडन. वहीँ परदे के पीछे के छुपे हुए चेहरों में थें – अभिषेक कुमार (लाइट), सेट/मेकअप (उदय सागर), रौशन कुमार (प्रॉपटी), पूनम कुमारी (ड्रेस), सुजीत कुमार ‘उमा’ (गायन), दिनेश झा (नाल), ब्रिज बिहारी मिश्रा (हारमोनियम), निरु कुमारी (लेखन) मनीष महिवाल (निर्देशन).

 

 

 

 

‘बेटी पढ़कर क्या करेगी?’ के निर्देशक मनीष महिवाल (बाएं) के साथ ‘बोलो ज़िन्दगी’ के संपादक राकेश सिंह ‘सोनू’

मौके पर ‘बेटी पढ़कर क्या करेगी ?’ नाटक के निर्देशक मनीष महिवाल ने ‘बोलो जिंदगी‘ को बताया कि “आज के वक़्त में बच्चियों के जन्म दर में धीरे-धीरे कमी देखने को आ रही है. और इसकी मुख्य वजह अशिक्षा है. तो इस नाटक में हमने दिखाया है कि एक ऐसा परिवार है जो अपनी बच्ची को पढ़ाना नहीं चाह रहा है, वो चाह रहा है कि कोई लड़का मिल जाये तो जल्दी से शादी-ब्याह करके मुक्त हो जाएँ. लेकिन वहीँ बच्ची पढ़ना चाहती है. तो इस नाटक में पैरेंट्स और लड़की के बीच एक अंतर्द्वंद चलता है. कॉमेडी के रूप-रंग में समाज को आइना दिखाने की कोशिश की गयी है. हमारे इस नाटक के पोस्टर में भी आप इसका मैसेज देख सकते हैं कि उसमे एक आदमी शादी करके बच्ची को लेकर जा रहा है और उसके हाथ में स्लेट है जिसमे अ आ इ ई लिखा हुआ है. मतलब इसके माध्यम से हम ये कहना चाहते हैं कि हर लड़की पढ़े, हर लड़की बढे.”

 

 

नाटक के बीच-बीच में लोकगीतों के माध्यम से भी बेटी के पढ़ने की वकालत की जाती है. और जब ‘कलम-कितबिया ला दे हमरा हमहुँ पढ़ब पढ़इया रे….’ यह गीत कानों में गूंजने लगता है तो दृश्य का मंचन बहुत ही असरदार हो जाता है. नाटक के अंत में अपनी बच्ची को पढ़ानेवाले पिता मनीष महिवाल जब शादी के मंडप में पहुंचकर किसी और बच्ची की शादी रोकते हुए पंडित और बच्ची के माँ-बाप को लताड़ते हुए कहते हैं कि “एक बच्ची जो टॉफी के लिए, लेमनचूस (चॉकलेट) के लिए दूल्हे से लड़ाई कर रही है वह भला अपना वैवाहिक जीवन कैसे निभाएगी…?” तो यह मैसेज वह सिर्फ उस बच्ची के अभिभावकों को नहीं देते बल्कि वहां बैठें दर्शकों और पूरे समाज को देते हैं कि पढ़ने-खेलने की उम्र में बच्ची की शादी करना उसका जीवन तबाह करना है.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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