तब 100-150 रूपए की साइकिल भी मैंने ऑफिस से एडवांस लेकर खरीदी थी : स्व.रामाशीष सिंह, भूतपूर्व अवर सचिव, बिहार लोक सेवा आयोग

तब 100-150 रूपए की साइकिल भी मैंने ऑफिस से एडवांस लेकर खरीदी थी : स्व.रामाशीष सिंह, भूतपूर्व अवर सचिव, बिहार लोक सेवा आयोग

भोजपुर जिले के आरा शहर से ग्रेजुएशन करने के दरम्यान हमारे साथ के कुछ एक लड़के अपने अभिभावकों से कभी कभार कुछ पैसे माँगा लिया करते थे, लेकिन तब हमारे समय में पॉकेटमनी का फैशन नहीं था. मेरे खाने -पीने, पहनने, किताबों एवं फ़ीस की व्यवस्था मेरे अभिभावक कर ही देते थे. मैं कभी फिजूल खर्च के लिए उनसे पैसे नहीं मांगता था. ना ही मुझे पान-बीड़ी का शौक था और ना ही मैं घूमने-फिल्म देखने में ज्यादा दिलचस्पी लेता था. हाँ एकाध बार मैंने कॉलेज लाइफ में हॉल में जाकर फिल्म देखी तो थीं मगर कभी अपने पैसों से नहीं. संगी-साथी ही मुझे दिखाते. तब दिलीप कुमार का क्रेज था मगर मेरा सारा ध्यान अपनी पढाई पर ही केंद्रित था क्यूंकि मेरा सपना ऊँचा था और मैं अपने माँ-बाप एवं गांव का नाम रौशन करना चाहता था.

ग्रेजुएशन करने के बाद मैं बनारस जाकर एम.ए. करना चाहता था. मगर तब हॉस्टल में रहने-खाने, पढाई में सब मिलाकर 150 रूपए महीना लगता था जो उस वक़्त ज्यादा था. तब सिर्फ खेतीबाड़ी से उतनी आमदनी नहीं थीं. घर कि आर्थिक स्थिति और छोटे भाइयों के भविष्य को ध्यान में रखकर मैंने एम.ए. करने का ख्याल दिल से हमेशा के लिए निकाल दिया. मैंने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी खूब लगन से की और पहले ही प्रयास में मुझे सफलता मिली.

अपने बड़े बेटे-बहु और पोते-पोतियों के साथ स्व. श्री रामाशीष सिंह

1955 में बिहार लोक सेवा आयोग (बी.पी.एस.सी.) में सहायक पद पर नियुक्त किया गया, तब मेरी उम्र 21  वर्ष थी. तब पटना रहने में बहुत कठिनाई हुई क्यूंकि पहले पटना कभी आए नहीं थे. स्टेशन के पास फुटपाथ पर जहाँ पहले छोटे छोटे होटल हुआ करते थे वहीँ थोड़े दिन रहें 20 रूपए महीने देकर. वहां से रोज पैदल ही ऑफिस जाते थे. फिर वहां से मीठापुर में रहने लगे किराये पर. जब जॉब लग गया तो घर से पैसा लेना बंद कर दिया. तब 100 -150  रूपए की साइकिल भी मैंने ऑफिस से एडवांस लेकर खरीदी थी. आमदनी जब बढ़ी तो अपने से ज्यादा गांव घर की पोजीशन ठीक करने में दिलचस्पी लेने लगा. अपने छोटे भाई-भतीजों की पढाई-लिखाई की व्यवस्था पर ध्यान देने लगा और तब पता ही नहीं चला कि मुझे भी कुछ शौक है.
उस ज़माने में कम उम्र में ही शादियां हो जाती थीं. मेरी भी शादी घरवालों ने तभी करा दीं जब मैं
7 वीं क्लास का स्टूडेंट था. मैंने अपनी पत्नी की सूरत नहीं देखी थी. शादी के पहले मेरा एक करीबी मित्र उन्हें चुपके से देखकर आया और मुझसे बोला कि भाभी नरगिस (तब की मशहूर हीरोइन) की तरह दिखती हैं.

 

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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