पटना, कला जागरण और सामयिक परिवेश द्वारा आयोजित (27 से 29 जुलाई) तीन दिवसीय प्रेमनाथ खन्ना स्मृति समारोह के अंतिम दिन कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम मे युवा एवं वरिष्ठ कवियों ने अपनी कविता से सभी को प्रभावित किया जिनमे कुछ पत्रकार बंधू भी शामिल थें. इस आयोजन पर विस्तार से बताते हुए चर्चित लेखिका ममता मेहरोत्रा ने ‘बोलो ज़िन्दगी‘ को बताया कि “आम जन में साहित्य, कला और रंगमंच से जुडाव खासकर युवायों के लिए बहुत आवश्यक है. यह मानसिक शांति और कर्मयोगी बनने मे काफी मदद करता है.”
कवि गोष्ठी मे अम्लेन्दु अस्थाना,चन्दन दिवेदी, प्रियंका वर्मा, डा.सुनिता कुमारी, प्रेरणा प्रताप, श्याम कुंवर भारती, आनन्द प्रवीण, श्रीकांत व्यास, प्राची, अश्वनी, अभिषेक मिश्रा, राज, राकेश सिंह ‘सोनू’, प्रीतम कुमार, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता सहित कई कवियों ने कविता पाठ किया. मंच संचालन राकेश सिंह ‘सोनू’ ने किया.
कवियों ने क्या खूब सुनाई इसकी कुछ बानगी देखिये-
समीर परिमल- “रिश्तों के यहां पल-पल संसार बदलते हैं, हर रोज कहानी में किरदार बदलते हैं,
हर मोड पे नफरत के पत्थर हैं पडे लेकिन दिलवाले कहां, अपनी रफ्तार बदलते हैं.”
अमलेन्दु अस्थाना- “पेडों के नीचे बैठे पल, कुछ सोए से कुछ सम्हल-सम्हल
कुछ हाथों से जो फिसल-फिसल, वो दूर खडे मुस्काते पल…”
चंदन दिव्वेदी – “आधा चंदा तेरे छत पर
आधा चंदा मेरे पास.
आधे-आधे होते सपने
आधी निद्रा का अभ्यास….”
प्रेरणा प्रताप – “हर वक़्त हो तुम
हर बार हो तुम
सारी हदों के पार हो तुम
प्रेरणा का विस्तार हो तुम…”
डा. सुनिता कुमारी- “सुबह-सुबह हमला हुआ, दुपहर तक लाशे थी टी.वी. पर
सफेद कपडों मे बन्धी हुई,किसी मृतक का चेहरा दिखता न था…”
राकेश सिंह ‘सोनू‘- “….ना वो मासूम किसी सेठ, नेता व वीवीआईपी की औलाद थी
कि उसके रातों-रात लापता होते ही पूरा सिस्टम एलर्ट हो जाता
बस एक-दो फोन कॉल होतें और उसका पता चल जाता.
वो तो थी एक आम आदमी की बच्ची
ना वो हम सबको दिखाई दी होगी ना ही सुनाई दी होगी….!”
प्रियंका वर्मा – “मन मेहो-मेहो महुआ सा हुआ सखी री
मेघों के कटोरे हैं इत-उत डोले….”
अश्वनी कविराज – “मरना कोई इलाज नहीं
जिंदगी जीना आसान नहीं
खुद के लिए ना सही
मुझे दूसरों के लिए जीना है
मुझे मौत को मना करना है
क्यूंकि आज फिर जीने की तमन्ना है…”
प्राची झा – “उसकी यादों का नशा अब उतर जाना चाहिए,
इतना पुराना ज़ख्म है अब भर जाना चाहिए…”
आदि शक्ति नाट्य महोत्सव ‘तलाश’ के मंचन के साथ सम्पन्न
कला जागरण और सामयिक परिवेश द्वारा आयोजित प्रेमनाथ खन्ना स्मृति आदि शक्ति नाट्य महोत्सव के अंतिम दिन ‘आकार’ के कलाकारों ने तलाश नाटक का मंचन किया. ममता मेहरोत्रा की कहानी ‘तलाश’ अपने हालात से मजबूर एक बेबस लड़की की जिन्दगानी है. उसके पिता ने उसकी शादी बहुत ही कम उम्र में कर दी है मगर वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है, कामयाबी हासिल करना चाहती है. इसके अलावा वह नर्तक बनने का सपना भी देखती है. उसे बचपन से ही नृत्य करने का शौक था मगर उसके परिवार में कभी भी किसी महिला को घर से बाहर जाकर अपने सपने को पूरा करने की आजादी नहीं थी. इस नाटक के माध्यम से महिला की बेबसी और लाचारी को दर्शाया गया है. इस नाटक का मंचन नृत्य नाटिका के अंदाज में किया गया है. मंच पर गीत-संगीत और नृत्य के बीच कहानी को दर्शाने की कोशिश की गई है.
नाटक में संगीत दिया है राजीव मिश्रा ने जबकि संरचना किया है सरोज प्रिया मिश्रा ने. परिकल्पना व निर्देशन किया आशुतोष कुमार ने. नाटक मे मंच पर आनंद प्रवीण, राज कुमार, राजन मोदी, उर्मिला यादव, अनीश दूबे, सरोज प्रिया मिश्रा, संजय कुमार सिहं, तान्या,वीणा, अदिति, मौसम ने अभिनय किया. मंच परे गीत रचना (आनन्द प्रवीण), नृत्य संरचना(सरोज प्रिया मिश्रा), सेट निर्माण ( राज कु.,संजय कु.सिहं), वस्त्र विन्यास(सरोज प्रिया),प्रोपर्टी(राजकुमार,उर्मिला,राजन), वेश भूषा(संजय सिहं,सरोज प्रिया), संगीत निर्देशन(राजूमिश्रा), सहयोग (अनीश दूबे,आलोक), प्रकाश परिकल्पना(राहुल कुमार रवि),संजय सिहं(प्रस्तुति निर्देशक), गौतम गुलाल(सह निर्देशक) कहानी(ममता मेहरोत्रा), नाट्य रूपांतरण एवं निर्देशन(आशुतोष कुमार) ने किया.
इसके पूर्व ‘कलांगन’ के कलाकारों ने रंगारंग प्रस्तुति दी. डॉ. सुनिता कुमारी ने ‘बोले मोरनी बागा में…’ पर नृत्य की प्रस्तुति दी. गौतम बनर्जी ने झिम-झिम घिरे सावन…, पल-पल दिल के पास…., ओ मेरे दिल के चैन…. जैसे सदाबहार गीतों को गाया. पूरे आयोजन का संयोजन चर्चित लेखिका ममता मेहरोत्रा ने किया.