हम छात्रावास में हों या कॉलेज-विश्वविधालय में उस समय की मस्ती ही कुछ और होती है. मैं पटना विश्वविधालय के प्राचीन इतिहास विभाग में थी. पूरे विभाग का स्टडी टूर राजगीर गया था. राजगीर उन दिनों आज की तरह चमक दमक वाला नहीं था.रत्नागिरी पर्वत पर जाने के लिए रोप वे भी नहीं था. प्राचीन कालीन सीढियाँ बानी थीं, छठी शताब्दी बी.सी. के स्थल, जरासंध का पौराणिक अखाड़ा इत्यादि. हम छात्र पत्थरों पर चढ़कर पर्वत पर पहुँचते थे. पटना कॉलेज के बी.ए. की मैं, राधिका तथा दो लड़के, बी.एन.कॉलेज के दो छात्र तथा विश्विधालय के 5 -6 इंटर के करीब तीस छात्र -छात्राएं थे. मैं उस पहाड़ी पर रोती-धोती पहले भी चढ़ चुकी थी अपने पति रामचंद्र खान जी के साथ इसलिए मैं नीचे ही रुक गयी. मेरे साथ कई लोग रुक गए. उसी समय बी. एच .यू. के प्राचीन इतिहास विभाग के छात्र-छात्रा भी आये थे भ्रमण के लिए. उसमे से एक छात्र इंदुमती की चप्पल टूट गयी. उसने नीचे ही चप्पल छोड़ दिया. फिर सभी जब लौटे तो इंदुमती की चप्पल नहीं मिली. हम लौटकर वेणुवन होटल जो तब एक सामान्य सा घर हुआ करता था में ठहरे. खाया-पिया और लौट आये. बस में चप्पल प्रकरण ही चलता रहा. हम आनंद लेते रहें कि बेचारी बी.एच.यू. वाली फिर राजगीर आएगी चप्पल ढूंढने.
कुछ दिन बीते तो इंदुमती की शादी पटना विश्वविधालय के विनोद से हो गयी. पहले कोई बड़ा रिशेप्सन का रिवाज नहीं था पर बहू-भात में हम प्राचीन इतिहास के जूनियर-सीनियर छात्र-छात्राएं आमंत्रित किये गए थे. भोजन के बाद पढ़ी लिखी वधू के निकट विनोद के सहपाठी अशोक पैकिंग पेपर में लपेटी सामग्री लेकर गए और कहा – ” भाभी जी यह आपका वही चप्पल है जो राजगीर में रत्नागिरी की तलहटी में छूट गया था. मुझे मालूम था कि आप एक दिन यहाँ आएँगी, सो संभालकर रखा था.” सभी हक्के बक्के यह दृश्य देखते रह गए. कालांतर में इन्दु, अशोक और अनेक साथी म्यूजियम और पुरातत्वविभाग में नौकरी करने लगें.हम अक्सर जब मिलते-बैठते तो इंदुमती का वह चप्पल प्रकरण यादकर खूब हँसते.