पटना, “माँ वैष्णो देवी सेवा समिति” के संस्थापक सदस्य मुकेश हिसारिया ने अपनी मौसी को खोने के बाद साझा कीं उनसे जुडी हुईं यादें – यादें माँसी की :- (संस्मरण)
इस बार के कोरोनाकाल के भयावह दौर में लगभग 20 से 25 मौके पर अंतिम संस्कार में सहयोग के लिए मैं जब-जब किसी जरूरतमंद के लिए शमशान घाट पर जा रहा था मैं भीतर ही भीतर रो रहा था, हर बार ईश्वर और माँ गंगा से ये प्रार्थना कर रहा था कि मेरी मौसी को यंहा मत बुलाना ! क्यूँकि माँ को खोने के बाद अब मौसी को खो देना का दुःख नहीं झेल सकता था मैं.
1 जून को शाम 7 बजे के बाद मौसीजी का स्वास्थ्य गिरना शुरू हो गया था, उसी समय डॉ संजय झुनझुनवाला जी घर आये (दूसरे दिन बाद में पता चला कि वो मेरी मौसी के ससुराल के रिश्तेदार हैं ). उन्होंने कहा कि वे ऑफ ट्रीटमेंट ठीक है. उसी समय एक दूसरे डॉक्टर डॉ खालिद भी आये उन्होंने नोसल और हाई फ्लो मास्क लगाकर दो सिलेंडर से ऑक्सिजन देना शुरू किया और फिर निमुलाईसर कर स्थिति को संभालने का प्रयास किया बावजूद ऑक्सीजन लेवल गिर रहा था !
मौसा जी, आलोक (मौसेरा भाई), दोनों नर्सों के साथ नन्हे से सिद्धि और मन्नू कमरे में लगातार मौसी-मौसी कर रहे थे. इस बीच आलोक ने मुझे कमरे में बुलाया और कहा कि “आप माँ के पास बैठो.” मैं अपना हौसला खोता जा रहा था, उसी समय मौसी के हाथ को मैंने जैसे ही पकड़ा ऑक्सिजन लेवल 71 के पार हुआ और नन्हा मन्नू चिल्लाने लगा और ताली बजाने लगा कि मौसी जीत रही है, मौसी को कुछ नही होगा. नन्हे मन्नू के लिए हर घंटे घर मे घूम कर भाग भाग कर घर के हर सदस्य को मौसी का ऑक्सिजन लेवल बताने का एक तरह से जुनून हो गया था.
23 अप्रैल को मैं मेडिवेरसल में भर्ती अपनी मौसी के लिए स्पेशली विंध्याचल भी गया. उसी दिन एक अद्भुत घटना घटी, दिन में 1 बजे के आसपास डॉ साकेत शर्मा ने एक दवा आलोक को लिखकर दी जो बिहार में कंही नही थी. आलोक ने व्हाट्सअप किया मैंने माँ का नाम लिया. दवा बंगलोर और वाराणसी से उसी रात पटना पहुंच गई. उस दवा ने मौसी जी को कितना फायदा किया ये तो मैं नही बता सकता. इसका एक फायदा मिला कि उस दिन के बाद से डॉ साकेत शर्मा जी का बात करने का तरीका और व्यवहार हमलोगों के साथ बिल्कुल बदल गया और वो परिवार के सदस्य की तरह मौसीजी के साथ व्यवहार करने लगे.
पूरे शहर के लोग मेरी मौसी जी के लिए दुआ कर रहे थे तभी 25 मई को पटना के श्री राजीव झुनझुनवाला जी ने बंगलोर से स्पेशली मेरी मौसी जी के लिए 2DEGE मेडिसिन भी मंगा कर दी. सबसे बड़ी बात है कि ये दवा उस समय तक पूरे देश मे सिर्फ दस हज़ार लोगों के हाथों में ही थी !
मैंने अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा पूजा पाठ 11 अप्रैल से 1 जून के बीच मे किया. जिसने भी जो उपाय बताया वो उपाय भी मैंने किया, जिसने जो पूजा बताया वो पूजा भी किया, जिसने जो टोटका बताया उसको भी किया ! अंधविश्वास के वो सारे काम किये जो मैं कभी नही करता लेकिन मौसी को वापस नही ला पाया !
पोस्ट कोविड के इन्फेक्शन और माहौल चेंज करने के डॉ साकेत शर्मा जी के सुझाव को मानते हुए रविवार को जब घर लाने की बात हुई तो पूरा शहर मेरे साथ था. मौसी जी के लिए जिनसे भी मैंने जम्बो 45 लेटर वाला ऑक्सिजन सिलेंडर मांगा सब ने अपनी गाड़ी से भेजा. देखते ही देखते 15 जैम्बो सिलेंडर एक छोटा सिलेंडर और दो कंसंट्रेटर घर आ गया ! सभी लोग दुआ कर रहे थे 11 अप्रैल से लेकर 31 मई तक रोज सुबह जब मैं मौसी से मिलता मौसी मुस्कुराती और कहती मैं फाइन हूं.
1 जून की रात 10.30 बजे आलोक ने बताया कि “भैया चेन्नई से डॉ जस्टिन ने कहा है कि गिरते ऑक्सिजन को बढ़ाने के लिए अगर छाती के बल सुलाया जाए तो ऑक्सिगन लेवल बढ़ता है.” हमलोगों ने 11 बजे रात को इस काम को भी किया. इस काम को करते ही मैंने महसूस किया कि मौसी जी का सर उस जगह था जंहा 20 जुलाई 2020 को माँ का पैर था. ऐसा लगा जैसे मौसी माँ से कह रही थी कि मुझे भी अपने चरण में ले लो. ऑक्सिजन गिरना जारी था तभी आलोक ने मेरी माँ यानि अपनी मौसी का फोटो मुझसे मांगा और माँ के सीने से उस फ़ोटो को लगाया और फिर 11.20 में मेरी प्यारी मौसी ईश्वर के श्रीचरणों में अपनी बड़ी दोनों बहनों के पास चली गयी !!
अलविदा मौसी …सॉरी मौसी..माफ करना मौसी …जाने वो कौन सा देश जंहा तुम चली गयी ……