पटना, 8 फरवरी, सामाजिक-साहित्यिक संस्था सामयिक परिवेश द्वारा देश के मशहूर व चर्चित कवियों पर आधारित एक वसंत काव्य उत्सव का सुन्दर आयोजन बेली रोड के ज्योतिपुरम में किया गया।
कार्यक्रम का उद्घाटन सामयिक परिवेश संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता मेहरोत्रा, नई धारा के संपादक एवं वरिष्ठ कवि डॉ शिवनारायण सिंह, प्रसिद्ध लोक गायिका डॉ नीतू कुमारी नवगीत एवं चर्चित कवि पंकज प्रियम, कवयित्री रूबी भूषण ने सम्मिलित रूप से दीप प्रज्वलित कर किया।
ममता मेहरोत्रा द्वारा केदारनाथ अग्रवाल की कविता हवा हूं हवा मैं बसंती हवा हूं सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूं बड़ी बावली हूं बड़ी मस्त मौला नहीं कुछ फिक्र है बड़ी ही निडर हूं जिधर चाहती हूं उधर घूमती हूं का पाठ किया गया। डॉ नीतू कुमारी नवगीत ने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता, अभी न होगा मेरा अंत ,अभी अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल बसंत अभी न होगा मेरा अंत का खूबसूरती से पाठ किया। प्रसिद्ध कवयित्री एवं शिक्षिका रूबी भूषण ने सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता जालियांवाला बाग को प्रस्तुत कर वसंत के एक अन्य रूप से हम सभी को परिचित कराया। यहां कोकिला नहीं काग है शोर मचाते काले काले कीट भ्रमर का भ्रम उपजाते !ओ !प्रिय ऋतुराज किन्तु धीरे से आना ,यह है शोक स्थान यहां मत शोर मचाना। युवा कवि पंकज प्रियम ने वसंत के स्वागत में सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित कविता सुनायी । आया वसंत आया वसंत छाई जग में शोभा।
कार्यक्रम के प्रारंभ में सामयिक परिवेश की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता मेहरोत्रा ने कहा कि वसंत ऋतु हमारे जीवन में नूतनता का संचार करता है। शरद ऋतु की समाप्ति के बाद ऋतुराज वसंत का आगमन होता है जिससे हमारी जिंदगी में नई चेतना, नवप्रवाह, नवलय, सौंदर्य, समरसता और खुशहाली आती है। वरिष्ठ कथा लेखिका ममता मेहरोत्रा ने कहा कि हरी-भरी धरती इस ऋतु में पीली चादर ओढ़ लेती है। इस ऋतु में हमें दिव्य ज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। यह रितु मन वचन और कर्म से पवित्र होने का ऋतु भी है। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में समृद्ध और स्वाधीन भारत के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने का संकल्प लेने का सही समय वसंत ही है। शिवनारायण सिंह ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उन्होंने बसंत पर आधारित अपनी प्रसिद्ध रचना महुआ मादर मंजरी मदिर मदीर बौराय, अबकि सजनी चैत में फागुन रास रचाए को गुनगुनाए। डॉ सुजीत वर्मा ने निष्ठुर मौसम के विरुद्ध एक क्रांति है वसंत सुनाया। मुकेश ओझा ने पीत-पीत हुई पात सिकुड़ी सिकुड़ी सी रात । संगीता मिश्रा,रजनी प्रभा एवं सुनील कुमार ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। अर्चना आर्यन ने नागार्जुन की कविता का पाठ किया -रंग बिरंगी खिली खिली अध खिली, किसिम किसिम की गंधों स्वादों वाली ये मंजारियां कविता सभी को सुनाई।