"बनाया है मैंने यह घर धीरे-धीरे! खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे। किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला, क ...
"बनाया है मैंने यह घर धीरे-धीरे! खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे। किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला, कटा ज़िंदगी का सफर धीरे-धीरे।" इन पंक्तियों के अमर रचनाकार डॉ रामरदश मिश्र 31 अक्टूबर 2025 को दि ...