“Fathers Day” …..क्यूंकि पापा ने सिखाया बढ़ते रहना

“Fathers Day” …..क्यूंकि पापा ने सिखाया बढ़ते रहना

“चमकता हूँ, गरजता हूँ, हाँ जोरों से बरसता हूँ मैं..

तेरी फिक्र और चाहत लिए खुद भी भींगता हूँ मैं..

ज़ज़्बात छलकते नहीं फिर भी तुझसे प्यार करता हूँ मैं.

तू मेरा स्वाभिमान है बेटी, हाँ तेरा पिता हूँ मैं.”

 

एक पिता और बेटी का रिश्ता, यूँ तो इस रिश्ते को किसी और बंधन की ज़रूरत नहीं होती लेकिन जब मौका हो ‘फादर्स डे’ का तो ऐसे में आइये जानें कुछ बेटियों से कि उन्हें क्यों गर्व है अपने पिता पर और उनकी सफलताओं में उनके पापा का कितना योगदान रहा है…:-

शिखा मेहता, सोशल वर्कर (संस्थापिका ‘यू ब्लड बैंक’) :-  मैं 2016 से रेगुलर रक्तदान के क्षेत्र में कार्य कर रही हूँ, और हर 1 दिन हर मिनट हर सेकेंड हमारे पिताजी हमें इस कार्य के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं. हमारे पिताजी हमारे लाइफ के रियल हीरो हैं. उन्होंने हमें कभी भी ऐसे नेक कार्य करने से नहीं रोका, कई बार ऐसी मुसीबतें आयीं जहां पर हमें लगा कि यह हमसे नहीं हो सकता है वहां पापा ने हमारी हिम्मत और हौसले को बढ़ाया और हमें आगे बढ़ाने में हर एक मोड़ पर हमारा साथ दिया.

 

 

 

 

 

14 जून ‘विश्व रक्तदान दिवस’ के अवसर पर शिखा अपने पिता और भाई के साथ रक्तदान करती हुईं

 

 

मैं, मेरा भाई, माँ और पिताजी लगभग 3 सालों से हर साल 14 जून विश्व रक्तदाता दिवस के शुभ अवसर पर साथ में स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं और समाज को प्रेरित करने की कोशिश करते हैं कि रक्तदान कर आप कई लोगों की जिंदगी बचा सकते हैं. हमें सामाजिक कार्य को लेकर कई बार पटना से बाहर जाना होता है लेकिन हम बहुत बार खुद में निराश होते हैं कि हम नहीं जा पाएंगे, तब हमारे पिता के पास समय नहीं होता लेकिन फिर भी वे अपने बिजनेस के कामों को रोककर कई बार हमारे नेक कार्यों के लिए हमें अपने साथ लेकर गए हैं. और यदि मेरी माँ कह दे कि पहले ये काम कर लो बाद में ब्लड डोनेशन करा देना, वहां पर हमारे पापा कहतें कि “लाओ ये काम मैं कर देता हूं, शिखा  को ब्लड डोनेशन कराने दो, ये पहले जरूरी है क्यूंकि किसी को कीमती वक्त और रक्त देने से नई जिंदगी मिलती है तो सबसे पहले यही जरूरी है.”

 

 

 

 

कोमल कश्यप, म्यूजिक स्टूडेंट, दिल्ली यूनिवर्सिटी :- पापा, ये शब्द बोलते ही एक मुस्कान मेरे चेहरे पर आती है, मेरे लिए मेरे पापा सुकून हैं, जिनसे मैं जितना चाहे बोल सकती हूँ, कुछ भी शेयर कर सकती हूँ, जो कहना हो, बताना हो वो सारी बातें वो सुनते हैं, समझते हैं और प्यार इतना कि पापा के लिए उनकी तीनों बेटियां करोड़ो में एक हैं. मैं घर में सबसे छोटी हूँ इसलिए पापा मुझे लाडली बुलाते हैं, वर्तमान में मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदुस्तानी म्यूजिक वोकल से मास्टर्स की पढ़ाई कर रही हूँ. कहने के लिए पापा की सिर्फ तीन बेटियां हैं लेकिन उन्होंने अपनी बेटियों को हमेशा बेटा माना है, हमारे पापा ने हमें हर चीज़ में सपोर्ट किया है. ऐसा कभी नहीं हुआ कि पापा हमारे किसी डिसीजन में साथ ना हों या कभी किसी चीज़ के लिए मना किया हो. वो हमारे साथ हमेशा से खड़े रहें हैं और अपनी बेटियों का हौसला बढ़ाया है. मेरा फील्ड थोड़ा अलग है क्योकिं मैं संगीत से हूँ, गाना सुनते हुए बड़ी हुई हूँ और वो मेरे पापा ही हैं जिन्हे संगीत सुनने की हमेशा से रूचि रही है. बड़ी हुई तो मैंने संगीत को ही अपना लक्ष्य बना लिया,12-13 साल उम्र से मैंने संगीत सीखना शुरू किया, सीखने के दौरान मेरा परिवार मेरी सबसे बड़ी ताकत रहा है, कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी ने संगीत सीखने या गाने से मना किया हो खासकर कि मेरे पापा. कहीं भी किसी सिंगिंग शो का ऑडिशन हो, कहीं हिस्सा लेने जाना हो,पापा ने मेरा हौसला बढ़ाया है. जीतें हो या ना जीतें हो, मुझे हमेशा से उनका सपोर्ट मिला है कि कुछ भी हो हार या जीत, बस लगे रहना है, मेहनत से ऊपर कुछ और नहीं है. यही कारण है आज भी मैं संगीत सीख रही हूँ और हमेशा सीखती रहूंगी, मेरे पापा की एक खास बात है, वो अपनी तीनों बेटियों को थैंक यू बेटा बोलते हैं, कुछ अच्छा बहुत अच्छा करो अपने फील्ड में तो पापा हमें congratulations ना बोलकर थैंक यू बेटा बोलते हैं.

हमारे ज़िन्दगी में एक ऐसा वक़्त आया जहाँ पापा की तबयत काफ़ी ज़्यादा खराब हो गई, गलत इलाज के चलते हमें काफ़ी कुछ suffer करना पड़ा लेकिन भगवान की कृपा रही कि आज हमारे पापा स्वस्थ हो रहें हैं, और उन्हीं की देन है कि आज हमसब एकसाथ मजबूत होकर खड़े हैं. हालात से लड़ना, कभी हार नहीं मानना, आपके जीवन में कितना भी बुरा समय क्यों ना आ जाए, कभी टूटना नहीं चाहिए, हिम्मत बनाये रखनी चाहिए, ये सब हमें पापा ने ही सिखाया है. हम पापा को अपना आदर्श मानते हैं तभी आज उनकी तरह हम इस मुश्किल घड़ी से निकल पाए हैं.

 

खुशबू मेहता, CS स्टूडेंट :- पापा हमारी जिंदगी के सुपरहीरो होते हैं और मेरे पापा भी ऐसे ही हैं. हम तीन बहने हैं, भाई नहीं हैं. लेकिन हम तीनों ही पापा के बेटे भी हैं. मेरे पापा ने हमे हर तरह की आजादी दी. वह पढ़ाई पर खास जोर देते हैं. पापा ने कभी अपनी भावनाओ को हमारे सामने व्यक्त नही किया और हम तीनो बहनो की हर जरूरत को पूरा किया है. ‘फादर्स डे’…..यह दिन मुझे मेरी जिंदगी के सबसे दमदार शख्स के गुण गाने का मौका देता है. मेरे पापा बहुत सपोर्टिंव हैं और एक अच्छे दोस्त की तरह मेरे साथ खड़े रहते हैं. पापा से ज्यादा हमे इस दुनिया में कोई प्यार नही कर सकता है. पापा छोटी छोटी खुशियो का ख्याल रखते हैं. आज भी मेरी सारी फरमाइश पापा पूरी करते हैं. पापा आप मेरे वो गुरुर हैं, जो कोई  भी कभी  भी नही तोड़ सकता है.

मेरी तरफ से पापा के लिए दो पंक्ति •••

“दुनिया की भीड़  में

सबसे करीब जो है ,

मेरे पापा, मेरे खुदा

मेरी तकदीर वो हैं.”

 

नूतन, वुशु मार्शल आर्ट की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी :- मै समाहरणालय पटना में कार्यरत हूँ. मेरे पापा का नाम श्री जितेंद्र प्रसाद है, वो एक ट्रैक्टर मैकेनिक हैं. हम तीन बहन और एक भाई हैं. मेरे पापा कभी भी बचपन से बेटा- बेटी में भेदभाव नहीं किये, और गरीबी का एहसास नहीं होने दिये. उनको जहां पर लगा कि हमलोग कमजोर हैं वहां हमेंहिम्मत दीए और हमें मजबूत बनाने की कोशिश किए. हमलोग जिस परिवार में और जो समाज से आते हैं, वहाँ लड़की बहुत ज्यादा खेलती कूदती नहीं थी. तब हमारा समाज भी बहुत विकसित नहीं था. ऐसे समाज में रहकर भी पापा पूरे परिवार और समाज के खिलाफ होकर हमें आगे बढ़ाने का प्रयास किये.  खेल में जाने से कभी भी नहीं रोके, हमारा  समर्थन किये. बहुत सारे लोग बहुत तरह की बाते करते थे. मेरे पापा से बोलते थे, “क्यो लड़की को खेलने भेज रहे हो, लड़की को बाहर मार्शल आर्ट सिखा रहे हो, घर में खाना बनाना सिखाओ नहीं तो बिगड़ जाएगी. बिहार से बाहर भेजते हो कुछ अनहोनी ना हो जाए, लड़की घर की इज्जत होती है घर में ही शोभा देती है, स्टेडियम में हाफ पैंट पहनकर शोभा नहीं देती. लड़की का हाथ-पैर टूट जाएगा तो शादी भी नहीं होगी.. जो पैसा खेलकूद में बर्बाद कर रहे हो, शादी और दहेज के लिए जोड़ कर रखो, तीन-तीन बेटियां हैं, पापा ने हमलोग के लिए दहेज के पैसे जोड़ने में नहीं बल्की हमे अपने पैरों पर खड़ा करने में अपना पूरा पैसा और मेहनत लगा दिया.

 

मेरे पापा बहुत पढ़े लिखे नहीं हैं, लेकिन फिर भी उनकी सोच थी कि लड़की के लिए दहेज और शादी के पैसे जमा करने से अच्छा है उसको आत्मनिर्भार बनाया जाए, अपने पैरो पर खड़ा किया जाए ताकि बेटियों को जिंदगी में कभी किसी के सामने हाथ ना फैलाना पडे. पापा ने लोगो की बात नहीं सुनी और हमलोगो को सपोर्ट किये, स्केटिंग, बाइक चलाना  ट्रैक्टर चलाना तक सीखाए.  ऐसा कभी नहीं कहे कि लड़की हो तो तुम नहीं कर सकती. जब हम मेच्योर नहीं छोटे थे, जब हमको स्पोर्ट्स इंडिया कैंप में या कभी अकेले खेलने जाना रहता था तो पापा अपना गैराज बंद कर के हमको पहुचाने जाते थे. और साथ में यह गाइड करते जाते थे कि अकेले जाओगी तो कैसे जाना होगा, कैसे ट्रेन पता करना और पकडना होगा. हमलोग का आय का श्रोत बस गैराज ही था. लेकिन पापा कभी भी गरीबी का एहसास नहीं होने दिए, मेरे लिए किक बैग, ग्लव्स या जो भी स्पोर्ट्स इक्विपमेंट की जरुरत होती थी ले आते थे. पापा अपने लिए कपड़े तक नहीं खरीदते थे, खुद फटे पुराने पहनते थे. लेकिन हमलोगो को कोई भी कमी नहीं होने दिये. मेरे पापा एक खिलाड़ी नहीं है, लेकिन फिर भी हमलोगो के स्वास्थ्य के प्रति बहुत ध्यान देते थे. हमलोग के डाइट का बहुत ध्यान दिए. मुझे याद है जब मेरी बड़ी दीदी साइकिल नहीं सीखना चाहती थी, कुछ नहीं करना चाहती थी फिर उसे पापा सुबह में जबरदस्ति उठा के उसे साइकिल चलाने या रनिंग के लिए ले जाते थे. पापा, मम्मी को भी रोज सुबह उठाते थे और कहते थे आप भी चलिये रोज सुबह जॉगिंग या वॉकिंग करने, आप नहीं जाएंगे तो बच्चे नहीं जाएंगे, आप स्वस्थ नहीं रहेंगे तो बच्चे कैसे स्वस्थ रहेंगे… तो मम्मी भी तैयार हो जाती थी.

आज उन्हीं के सपोर्ट से मैं बिहार से बाहर दूसरे राज्य में रह के वुशु की ट्रेनिंग की. मुझे याद है जब पापा को मार्शल आर्ट के बारे में कुछ नहीं पता था फिर मै पापा से फोन पर बताइ थी कि “पापा हम थ्रो (throwing)  के कारण हार जाती हूँ.” मुझे याद है पापा हमारे अकादमी में गये थे तो मेरे शिक्षक से पूछ रहे थे कि उसे पटकने का दांव- पेंच आ गया क्या ? अच्छा से सीखा दिजिएगा मैम.. मेरी टीचर को थ्रो सिखाने के लिए रिक्वेस्ट कर रहे थे.आज अगर उनका सपोर्ट नहीं रहता तो मै इंटरनेशनल लेवल पर इंडिया के लिए मेडल नहीं ला पाती. आज मैं पटना कलेक्ट्रेट में स्पोर्ट्स कोटे से जॉब में हूँ.  मेरी दीदी नीतू बीएसएफ ज्वाइन की. मेरी छोटी बहन तिरंदाजी में बीएसएफ की स्वर्ण पदक विजेता है. मेरी दोनो बहन बीएसएफ में और मम्मी एक टीचर हैं. मेरा भाई हटिओम स्टडी कर रहा…और यह सब पापा के त्याग और समर्पण की वजह से ही हो पाया है. आज भी जब कभी लगता है कि हम कमजोर हैं तो मुझे पापा का सहारा हमेशा मिला है.

 

 

स्टोरी : राकेश सिंह ‘सोनू’

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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