भगवान का टेलर : जो इंसानों के नहीं, सिर्फ देवताओं के कपड़े सिलते हैं

भगवान का टेलर : जो इंसानों के नहीं, सिर्फ देवताओं के कपड़े सिलते हैं

भगवान के टेलर के पास नवरात्रि में माता की चुनरी बनवाने लगती रही है भक्तों की भीड़ | आमतौर पर टेलर की दुकान पर जाकर लोग कहते हैं – “भाई, पैंट-शर्ट बना देना या ब्लाउज़ फिट कर देना।” लेकिन खंडवा की आशा मार्केट में एक दुकान ऐसी भी है जहाँ ग्राहक आकर कहते हैं – “हमें नवरात्रि पर माता रानी की चुनरी चाहिए…”, “गणेश उत्सव में बप्पा को नई पोशाक पहनानी है…”

दुकानदार कैंची उठाता है, कपड़ा नापता है और मुस्कुराकर कहता है – “हो जाएगा… भगवान का काम है, देर कैसे होगी?” जी हाँ, ये कहानी है भरत कुवादे की, जिन्हें लोग पूरे शहर में “भगवान का टेलर” कहते हैं।

दर्जी से डिज़ाइनर तक का सफर
भरत ने 18 साल पहले अपने पिता से सिलाई का काम सीखा। शुरुआत लेडीज़ वर्क से की, पर मन नहीं लगा। फिर धीरे-धीरे उन्होंने मंदिरों की प्रतिमाओं के लिए वस्त्र बनाना शुरू किया और देखते ही देखते यही उनकी पहचान बन गई।

डायरी में छुपा है नाप का खजाना
भरत की दुकान में एक मोटी-सी डायरी रखी है। उस डायरी में इंसानों के नाप नहीं, बल्कि भगवानों के नाप लिखे हैं। कौन-से मंदिर की प्रतिमा कितनी ऊँची है, किसका सीना कितना चौड़ा है, किसकी पोशाक लंबी चाहिए – सब कुछ।
भक्त मंदिर का नाम बताते हैं और भरत तुरंत कहते हैं – “ठीक है, कपड़े कल तक तैयार मिल जाएंगे।”

त्योहारों पर रहती है रौनक
नवरात्रि हो, जन्माष्टमी, गणेशोत्सव या हनुमान जयंती – भरत की दुकान पर भीड़ ऐसी लगती है जैसे किसी मंदिर में लगती है। इस बार नवरात्र में ही 150 से ज्यादा ऑर्डर बुक हो चुके हैं।

कपड़ों में भी मौसम का ध्यान
गर्मी में भगवान को पहनाते हैं सिल्क और रेशमी पोशाकें, तो सर्दियों में मखमली वस्त्र। उनकी दुकान चमकते सितारों और झिलमिल लेस वाले कपड़ों से भरी रहती है।

सेवा ही सबसे बड़ा काम
भरत कहते हैं –
ये सिर्फ काम नहीं, भगवान की सेवा है। सुई चलाते वक्त हमेशा यही सोचता हूँ कि यह कपड़े किसी इंसान के लिए नहीं, बल्कि खुद भगवान के लिए तैयार हो रहे हैं।

खंडवा से निकलकर दूर तक नाम
आज भरत का नाम खंडवा ही नहीं, बल्कि हरदा, खरगोन, बुरहानपुर, इंदौर और बड़वानी तक पहुँच गया है। लोग सीधे कहते हैं –भगवान को कपड़े पहनाना है तो भरत कुवादे के पास ही जाना है।

प्रस्तुति : हेमंत मोरने

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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