पटना, 27 दिसंबर 2020 को स्थानीय यूथ क्लब के प्रांगण में उर्दू-फ़ारसी के सर्वाधिक लोकप्रिय शायर मिर्जा ग़ालिब की 223वीं जयंती मनाई गई. इस अवसर पर प्रसिद्ध शायर समीर परिमल के स्वास्थ्य-लाभ के पश्चात सकुशल पटना आगमन पर उनका सम्मान एवं नूतन-वर्षाभिनंदन के उपलक्ष्य में एक भव्य काव्य-मिलन का आयोजन किया गया. ज्ञातव्य है कि पटना के वरिष्ठ शायर समीर परिमल एक दुर्लभ गंभीर बीमारी ‘क्रोन्स डिजीज’ से ग्रस्त हैं और हाल ही में मेदान्ता अस्पताल (गुरुग्राम) से वापस लौटकर पटना आये हैं.
ग़ालिब के बारे में बोलते हुए समीर परिमल ने कहा कि “ग़ालिब शायरी के पितामह हैं, उनकी ग़ज़लों में उर्दू-फ़ारसी अल्फ़ाज़ जिस नज़ाक़त, नफ़ासत और कैफ़ियत के साथ मौजूद हैं, वह अन्यत्र दुर्लभ है. ग़ालिब सिर्फ़ एक शायर या व्यक्तित्व नहीं बल्कि शायरी के ब्रह्मांड हैं.
काव्य-गोष्ठी में सिमरन राज़, चंदन द्विवेदी, अक्स समस्तीपुरी, श्वेता सुरभि, केशव कौशिक, सुनील कुमार, नवनीत कृष्ण, लता परासर, नागेंद्र मणि, निधि राज़, अमन राज़, राहुल कान्त पाण्डेय, अश्विनी कविराज, अंकेश, आशुतोष, पंकज मिश्रा इत्यादि ने अपनी रचनाओं से खूब वाह-वाही लूटी.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि घनश्याम जी, संचालन कुंदन आनंद जी ने किया.
कार्यक्रम में समीर परिमल ने सुनाया –
“आगे बढ़कर जी लूँ जिसको, लम्हा ढूँढ रहा हूँ मैं
काले सायों में एक साया अपना ढूँढ रहा हूँ मैं”.
चन्दन द्विवेदी ने सुनाया-
“अब जाना छत पर क्यों सोना अच्छा था
आंखों का चंदा तक सीधा रस्ता था.”
केशव कौशिक ने सुनाया-
“हारकर भूक से पिया पानी
मौत की देख इंतिहा पानी”
कुंदन आनंद जी ने सुनाया-
“रात न होती तो तारे कौन तुझको जानता,
गुम ही रहता तू सदा दिनमान का मारा हुआ.”
अक्स समस्तीपुरी ने सुनाया –
“अपने पहलू से बांध ले मुझको
और आवारगी नहीं होती !”
सिमरन राज ने सुनाया –
“न जाने क्यूँ दिलों में इक मिलन की आस जगती है
कोई जब रेल मेरे गाँव से होकर गुज़रती है.”
सुनील कुमार जी ने सुनाया –
“हम भला कब किसी से डरते हैं
फ़ालतू बतकही से डरते हैं.”
कवि घनश्याम ने सुनाया-
“सियासी चालबाज़ी में अगर मैं दक्ष हो जाता
तो संभव था कि मैं भी आपके समकक्ष हो जाता”.
नालंदा से आए शायर नवनीत कृष्णा ने सुनाया-
“थोड़ा -सा अब उदास हूँ लेक़िन खफ़ा नही हूँ मैं ,
तुझको यकीं दिलाता हूँ के बेवफ़ा नही हूँ मै.”
शायर अमन ने सुनाया-
“गलत कहना सभों को ही कभी अच्छा नहीं होता
हकीकत ये भी है के हर कोई अच्छा नहीं होता.”
गया से आए शायर कुमार आर्यन ने सुनाया-
“दूसरे के कानों पे चलने वाले
तुम्हें अपने पैरों पे चलना चाहिए”.
आर जे श्वेता सुरभि जी ने पढ़ा-
“कुछ ख्वाहिशें झाँकी हैं झरोखों से ..
कुछ हसरतें दस्तक देती हैं खिड़कियों पर…”
राहुलकान्त पांडेय जी न सुनाया-
“नभ से आकर सूर्य की किरणों ने धरती चूम ली है
आओ हम स्वागत करे यह भोर का आमंत्रण है।।”
साथ ही अंकेश जी, आशुतोष कुमार, नागमणि जी, अश्विनी सरकार, अश्विनी कविराज,लता परासर आदि ने भी अपनी रचना सुनाई.