पटना, 11 दिसंबर, “यह दिव्यांगों का विवाह है सिर्फ इसलिए यह अनोखा नहीं है बल्कि इसलिए भी अनोखा है कि एक ही जगह मंडप में अमीर और गरीब भी बैठेंगे और छोटे-बड़े जात वाले दिव्यांग भी.” यह कहना था ‘विकलांग अधिकार मंच’ कि अध्यक्षा कुमारी वैष्णवी का. अवसर था होटल पनाश, गाँधी मैदान, पटना में विकलांग अधिकार मंच एवं वैष्णो स्वावलंबन के सयुंक्त तत्वधान में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस का जहाँ मीडिया बंधुओं को यह जानकारी दी गयी कि, विकलांग अधिकार मंच एवं वैष्णो स्वावलंबन द्वारा 16 दिसंबर, 2018 को ट्रांसपोर्ट नगर, पटना में 11 दिव्यांग जोड़ों के सामूहिक ‘अनोखा विवाह-3’ आयोजित होगा. सभी जोड़ों का विवाह निबंधित कराया जाता है जिससे शादी के बाद दोनों में से एक दिव्यांग होने पर सरकार द्वारा एक लाख, दोनों दिव्यांग होने पर दो लाख, साथ ही अगर अंतर्जातीय विवाह हो तो अलग से एक लाख रूपए का प्रोत्साहन अनुदान भी दिया जायेगा. एक सुखमय वैवाहिक जीवन बिताने में सहयोग के उद्देश्य से इस विवाह में सभी को उनकी गृहस्थी के सामान भी उपहार स्वरूप भेंट किये जाते हैं. जिसमे पलंग, रजाई, तोशक, ट्रंक, सिलाई मशीन, बर्तन, कपड़ा, गहना व अन्य सामान दिए जायेंगे.
जब ‘बोलो जिंदगी’ ने मंच की अध्यक्षा कुमारी वैष्णवी से पूछा कि इस ‘अनोखे विवाह’ के शुरुआत की कहानी क्या है तो वैष्णवी ने बताया – “चूँकि 12 राज्यों में हमारा संगठन है, कई स्टेट में सरकार द्वारा प्रोत्साहन राशि दी जाती थी दिव्यांग जोड़ों को शादी करने के लिए. वो लोग हमें भी कराने को कहते थें ,लेकिन हम बताते कि बिहार में न प्रोत्साहन राशि होती है, न शादी के लिए लोगों में वैसा उत्साह ही दिखता है. जब बिहार में गैर विकलांग लड़कियों के लिए भी गरीबी, जात-पात इत्यादि को लेकर बहुत समस्याएं हैं तो दिव्यांग लड़कियों की शादी के बारे में सोचना थोड़ा मुश्किल था. लेकिन हमारी इच्छा होती थी तो हम जब गांव में उनके पास जाने लगें, उनसे बात करने लगें तो उनके अंदर एक कुंठा देखि हमने और वे कभी गृहस्थ जीवन के बारे में सोचते तक नहीं थें. उनके परिवार वाले भी इस विषय पर कुछ बात नहीं करते थें. फिर हमलोगों ने इसपर काम करना शुरू किया और दोनों तरफ के पक्षों को बैठाकर एक परिचय सम्मलेन शुरू किये तो पहले दफे काफी सफलता मिली. 7 शादियां फिक्स हुईं 2016 में. तब बहुत लोगों ने सवाल भी किया कि शादी कराकर क्या करेंगे, दोनों एक दूसरे पर बोझ हो जायेंगे. लेकिन हम ये कहते थें कि, कौन कहता है कि बोझ हैं. एक लड़की दोनों पैर से दिव्यांग होकर भी दस लोगों का खाना बनाकर खिला रही है तो क्या वो बोझ हो सकती है. फिर आप कैसे डिसाइड कर सकते हैं कि वो किसी पर बोझ हैं. फिर हमलोगों ने जब इसकी शुरुआत कि तो लोगों के मन में ख़ुशी की लहर आयी. फिर सरकार ने प्रोत्साहन राशि देना शुरू किया तो सबका मनोबल बढ़ा. हम तो ये कहते हैं कि कोई पैसों पर काम करने के लिए नौकर रख लेगा लेकिन पैसे से कोई जीवन साथी को नहीं रख सकता है. यह दिव्यांगों का विवाह है सिर्फ इसलिए अनोखा नहीं है बल्कि इसलिए भी अनोखा है कि एक ही जगह मंडप में अमीर और गरीब भी बैठेंगे और छोटे-बड़े जात वाले दिव्यांग भी.”
मंच के सचिव दीपक कुमार ने बताया कि – “शुरुआत में दिक्कतें आईं कि हम सिर्फ ये नहीं चाहते थें कि 7 जोड़े आ जाएँ तो दुल्हन को सिंदूर डालो और उसे संग लेकर चले जाओ बल्कि हम चाहते थें कि जो घर में नहीं अरेंज कर पाते हैं उससे भी बड़े रूप में शादी हो मतलब पूरे धूम-धाम से, बैंड-बाजे के साथ, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हो, मुख्य अतिथि भी आएं और मेहंदी लगे, सारा विधि-विधान भी हो. उस समय हम बहुत जगह जाते थें लोगों से सहयोग लेने तो 2016 में ऐसा भी हुआ था कि हमे लोग भगा भी दिए थें. कई लोग सामने खड़े हैं, लेकिन बिना मिले-बात किये, हम क्या करें कहते हुए सीधे सामने से निकल जाते थें. पहली बार ये दिक्कत आ रही थी कि जो शादी तय हुई थी तो लोग सामने परिचय सम्मलेन में बैठना नहीं चाह रहे थें. लेकिन फिर धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता आयी और सब आसान हो गया. लोग खुद सामने से शादी के लिए हमारे पास आवेदन देने लगें.”
वहीँ मंच की सहयोगी तबस्सुम अली ने बताया कि- “टीम ने जब प्रस्ताव रखा कि ये 10 शादियां हम हिन्दू-रीती रिवाज से करें तो यहीं साथ-साथ मुस्लिम दिव्यांग जोड़ों का भी निकाह किया जाये. लेकिन प्रॉब्लम ये आ रही थी कि ऐसा कौन काजी हो जो वहां निकाह पढ़ाये जहाँ 10 हिन्दू जोड़ों का मंत्रोचारण हो रहा हो, फेरे लिए जा रहे हों और उस बीच एक जोड़े का निकाह हो. फिर भी मैंने एक ऐसे काजी से बात की, उनको सारा कुछ बताया तो वो पूरी तरह से सहयोग करने को तैयार हुए. हिंदू विवाह में क्या है कि जोड़े अगल-बगल मंडप में बैठते हैं, लेकिन मुस्लिम में क्या है कि दोनों के बीच पर्दा रहता है. हमने डिसाइड किया है कि 10 को एक लाइन से बैठाएंगे मंडप में और मुस्लिम जोड़ो को आमने-सामने बैठाएंगे पर्दा कर के और उनका निकाह पढ़ाएंगे. निकाह के बाद एक रस्म होती है छुहाड़े-मुकुंदाने बाँटना तो हम वो रस्म भी कराएँगे. एक अद्भुत सा नजारा होगा कि एक तरफ हिन्दू तो एक तरफ मुस्लिम रीती-रिवाज से विवाह संम्पन होंगे. हम चाहते हैं कि इससे एक अच्छा मैसेज भी समाज में जाये कि शादी दो आत्माओं का मिलन है जो धर्म-सम्प्रदाय से परे है.”
मंच के मीडिया प्रभारी अभिनव आलोक ने बताया कि “15 दिसंबर, 2018 को शाम 5 बजे मेहँदी रस्म व 16 दिसंबर को सुबह 9 बजे से बारात निकासी, दोपहर 12 बजे से शुभ विवाह, शाम 6 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम व भोज का आयोजन होगा. दिव्यांग जोड़ों को आशीर्वाद देने और हमारी टीम को प्रोत्साहित करने के लिए कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद, श्री रामकृपाल यादव, श्री अश्वनी चौबे, श्री उपेंद्र कुशवाहा, बिहार सरकार के मंत्री श्री नन्द किशोर यादव, श्री श्रवण कुमार, श्री श्याम रजक व अन्य शामिल होंगे.”
प्रेस वार्ता में मौजूद समाजसेवी डॉ. दिवाकर तेजस्वी ने कहा कि “ऐसे आयोजन में सभी को आगे आना चाहिए ताकि समाज में प्यार और सौहार्द बढ़े. लोग वंचित और कमजोर वर्ग के लोगों की मदद कर के अन्य दूसरों को भी प्रोत्साहित करें.”
वहीँ डॉ. किरण शरण ने कहा कि “इस आयोजन से समाज की नकारात्मकता को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है, सचमुच यह विवाह अनूठा है.”
संवादतदा सम्मलेन में मंच के अन्य सहयोगी सदस्य रवि कु. चौधरी, आदर्श पाठक, राधा, आलोक इत्यादि उपस्थित थें. समाज में दिव्यांगों के प्रति नकारात्मकता एवं उनके विवाह में हो रही समस्या को देखते हुए मंच पिछले 2016 से दिव्यांग जोड़ों का सामूहिक अनोखा विवाह का आयोजन करते आ रहा है ताकि दिव्यांगता व जाती-धर्म को दरकिनार करते हुए एक दिव्यांग व्यक्ति का भी सम्मानजनक व अद्भुत विवाह हो सके.