“सार्वजनिक स्थलों पर आवारा पशुओं पर नियंत्रण- जनसुरक्षा पर बड़ा कदम”

“सार्वजनिक स्थलों पर आवारा पशुओं पर नियंत्रण- जनसुरक्षा पर बड़ा कदम”
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड

देश में कुत्तों के काटने की घटनाओं में वृद्धि पर चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर 2025 शुक्रवार को यह निर्देश दिए हैं कि देशभर में शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन आदि परिसरों में आवारा कुत्तों को हटाएं और उन्हें निश्चित डॉग शेल्टर में छोड़ा जाए। इतना ही नहीं, इन संस्थाओं में कुत्तों का प्रवेश रोकने के लिए बाड़ भी लगाए जाने की बात कही गई है।

पाठकों को बताता चलूं कि कुत्तों (श्वानों) पर निर्देशों में क्रमशः शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों आदि संस्थागत क्षेत्रों में नगरपालिका आठ सप्ताह में बाड़ लगाकर कुत्तों का प्रवेश रोकना, हर संस्था में नोडल अधिकारी का होना, जिसका विवरण बोर्ड पर प्रदर्शित हो, कुत्तों को इन संस्थाओं से हटाकर टीकाकरण व बधियाकरण करके शेल्टर होम में छोड़ना,हर तीन माह में अफसरों द्वारा व्यवस्था का निरीक्षण करना, अस्पताल में एंटी रेबीज वैक्सीन का स्टॉक सुनिश्चित करना तथा पशु कल्याण बोर्ड द्वारा चार सप्ताह में आवारा कुत्तों के काटने की रोकथाम की एसओपी जारी करना जैसे निर्देश शामिल हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय स्वागत योग्य कदम है, क्योंकि देशभर में पिछले कुछ समय में कुत्तों के काटने की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। वास्तव में शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ना आज चिंता का विषय बन गया है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, रेबीज के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। जनता में भय का माहौल है और आये दिन हम मीडिया की सुर्खियों में यह पढ़ते हैं कि बच्चों पर हमले की घटनाएं अधिक सामने आ रही हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है कि नगर निगम और प्रशासन मिलकर इन घटनाओं पर नियंत्रण के ठोस कदम उठाएं। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि माननीय कोर्ट ने हाईवे व एक्सप्रेस-वे पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए वहां से भी आवारा मवेशियों को हटाकर बाड़े में भेजने के भी निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि पीठ ने नगरपालिका, परिवहन व अन्य विभागों को संयुक्त अभियान चलाकर हाईवे व एक्सप्रेस-वे से आवारा पशुओं को हटाने और आश्रय स्थलों पर भेजने के निर्देश दिए हैं। हाइवे पर पशु रोकने को डेडिकेटेड गश्ती दल बनाकर 24 घंटे काम करने व सूचना पर कार्रवाई करने को भी कहा। इतना ही नहीं पीठ ने हाईवे पर जगह-जगह हेल्पलाइन नंबर प्रदर्शित करने, बड़े अफसरों को नियमित निगरानी करने के आदेश भी दिए हैं।दरअसल, प्रायः यह देखा गया है कि हाइवे और एक्सप्रेस-वे पर आवारा पशुओं की मौजूदगी सड़क दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बन रही है। अचानक सड़क पर आ जाने से वाहन चालक नियंत्रण खो बैठते हैं, जिससे गंभीर हादसे होते हैं। खासकर रात के समय दृश्यता कम होने के कारण खतरा और बढ़ जाता है। इन घटनाओं में न सिर्फ इंसानी जानें जाती हैं, बल्कि पशुओं की भी मौत होती है। सरकार और स्थानीय प्रशासन को यह चाहिए कि वे इसके लिए ठोस प्रबंधन और निगरानी जैसे कदम उठाएं।

बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि हाईवे पर आवारा पशुओं के मामले में शीर्ष अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से दिए आदेश को देश में लागू कर दिया। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने आवारा कुत्तों के आतंक पर स्वतः प्रसंज्ञान मामले की सुनवाई के बाद यह निर्देश दिए हैं। जानकारी के अनुसार बेंच ने आवारा कुत्तों के मामले सख्ती बरतते हुए राज्यों के मुख्य सचिवों को हिदायत दी है कि आदेश की पालना नहीं करने पर उन्हें व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इतना ही नहीं, इस संबंध में, मुख्य सचिवों से 3 सप्ताह में हलफनामे पर स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी गई है। जानकारी के अनुसार इस संबंध में अगली सुनवाई 13 जनवरी को होगी। बहरहाल, प्रायः यह देखा गया है कि शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, खेल परिसरों, बस डिपो और रेलवे स्टेशनों में आवारा कुत्तों व पशुओं की समस्या तेजी से बढ़ रही है और इन स्थानों पर आए दिन लोग इन जानवरों के हमलों या बाधाओं का सामना करते हैं। अक्सर बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह स्थिति विशेष रूप से खतरनाक बन जाती है।अस्पतालों में स्वच्छता और सुरक्षा पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। विभिन्न खेल परिसरों में भी खिलाड़ी अक्सर आवारा कुत्तों/आवारा पशुओं की मौजूदगी से परेशान रहते हैं। बस डिपो और रेलवे स्टेशनों पर इन पशुओं के कारण दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल, नगर निकायों की लापरवाही से यह समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है।जरूरत है कि इन जानवरों के पुनर्वास और नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। हाल फिलहाल, आवारा श्वानों की समस्या से निजात के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित ताजा निर्देश अनुकरणीय है। माननीय कोर्ट ने इस बात को समझा है कि श्वान और आवारा पशु आज आमजन के लिए कितनी बड़ी समस्या बनकर उभरे हैं।

वास्तव में सच तो यह है कि भारत में कुत्तों के काटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2023 में देशभर में लगभग 30 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें 286 लोगों की मौत भी हुई। यह आंकड़ा 2022 की तुलना में करीब 26 प्रतिशत ज्यादा था। वर्ष 2024 में भी स्थिति चिंताजनक रही, जब देश में लगभग 22 लाख लोगों को कुत्तों ने काटा, जिनमें पांच लाख से अधिक बच्चे शामिल थे। राज्यों में केरल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली में मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। शहरी क्षेत्रों में, विशेषकर नोएडा जैसे शहरों में, घटनाएं 31 प्रतिशत तक बढ़ीं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विश्व स्तर पर हर साल लगभग 59 हजार लोगों की मौत रेबीज़ के कारण होती है, जिनमें अधिकांश मामले एशिया और अफ्रीका से आते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, बढ़ती आवारा कुत्तों की संख्या, टीकाकरण की कमी और कचरे का ढेर इन घटनाओं के प्रमुख कारण हैं। यह स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती बनती जा रही है, जिससे निपटने के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर कदम उठाने की आवश्यकता है। हाल फिलहाल न्यायालय ने शुक्रवार(7 नवंबर 2025) को सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, खेल परिसरों, बस डिपो और रेलवे स्टेशनों से आवारा कुत्तों को हटाना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि नसबंदी करने के बाद कुत्तों को वापस उन्हीं जगहों पर नहीं छोड़ा जा सकता। मतलब यह कि सार्वजनिक जगहों से जिन श्वानों को उठाया जाएगा, फिर वहां उनकी वापसी नहीं होगी। वास्तव में जब नसबंदी के बाद श्वानों को उनके इलाकों में छोड़ दिया जाता है, तो उनके द्वारा काटने की गंभीर समस्या जस की तस बनी रहती है। माननीय कोर्ट के आदेश के बाद अब यह नहीं किया जा सकेगा, और इससे श्वानों के काटने की घटनाओं में कमी आएगी,ऐसी संभावनाएं हैं।आज श्वानों की वजह से तन-जन-धन की हानि हो रही है। बहरहाल, यह सब जानते हैं कि देश की कई सड़कों पर मवेशी व कुत्ते आवारा घूमते रहते हैं, जिससे न सिर्फ उन्हें बल्कि लोगों की जान को भी खतरा होता है। आज जब सड़कों पर गाड़ियाँ तेज़ी से दौड़ रही हैं, तो मवेशियों को सुरक्षित जगहों पर रखना इंसानियत की निशानी है। अंत में यही कहूंगा कि पशु भी जीव हैं और उन्हें भी जीने का समान अधिकार है। जीवों के प्रति दया और करुणा भारतीय संस्कृति का मूल मूल्य रहा है। परंतु यह भी एक कड़वा सच है कि सड़कों पर छोड़े गए पशु न तो सुरक्षित हैं, न ही यह स्थिति मानव के लिए सुरक्षित है। मानवाधिकार की तरह पशु-अधिकारों की भी रक्षा जरूरी है।

आवारा पशुओं के संरक्षण हेतु ठोस नीति बनाई जानी बहुत ही महत्वपूर्ण और अहम् है।वास्तव में यह मानवीयता और संवेदनशील समाज की दिशा में एक सकारात्मक कदम साबित होगा।यह भी कि आवारा पशुओं/श्वानों के इस मुद्दे को संवेदनशीलता और गंभीरता से देखना बहुत जरूरी है। दरअसल, आवारा कुत्तों और मवेशियों की सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि आम लोगों की। उन्हें सड़कों पर छोड़ देने से उनकी जान जोखिम में पड़ेगी और दुर्घटना होने पर दोनों इंसान और जानवर खतरे में होंगे। इसलिए अदालत का तेजी से और सख्त कदम उठाना सही है।इस दिशा में सभी राज्यों को मिलकर काम करना चाहिए। यह भी कि आज आवारा पशुओं और श्वानों के संदर्भ में कड़े निर्देश और निगरानी जरूरी हो गये हैं। बहरहाल, जयपुर में भांकरोटा के पास जयसिंहपुरा में शुक्रवार को ही पशुओं के प्रति क्रूरता का एक मामला सामने आया। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार किसी ‘सिरफिरे’ ने स्ट्रीट डॉग को पैर बांधकर बिजली पोल पर फेंक दिया। करंट से तड़पते हुए कुत्ते की मौत हो गई। पुलिस मौके पर पहुंची और बिजली सप्लाई बंद करवाकर कड़ी मशक्कत से कुत्ते का शव उतारकर दफनाया।इस संदर्भ में यही कहूंगा कि पशु क्रूरता एक गंभीर अपराध है, क्योंकि यह न केवल निर्दोष जीवों पर अत्याचार है, बल्कि मानवता के मूल मूल्यों के भी विरुद्ध है। भारत में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत किसी भी पशु को अनावश्यक पीड़ा या कष्ट पहुँचाना दंडनीय अपराध माना गया है। पशुओं को मारना, भूखा रखना, उनके साथ हिंसा करना या उन्हें मनोरंजन का साधन बनाना अमानवीय कृत्य है। हर जीव को जीने का अधिकार है, और मानव का कर्तव्य है कि वह उनकी सुरक्षा और संवेदना का सम्मान करे। समाज में करुणा और दया की भावना तभी जीवित रह सकती है जब हम सभी पशुओं के प्रति संवेदनशील बनें।

 

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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