मेरा मायका यूँ तो बिहार के नालंदा जिले में हुआ लेकिन मेरे जन्म के कुछ महीने बाद ही मेरी माँ के गुजर जाने की वजह से नानी मुझे अपने पास पटना लेकर आ गयी. पापा बेटा चाहते थें और उन्हें बेटी हो गयी तो इसी खीज में उन्होंने मुझसे एक दूरी बना ली. जब ननिहाल आयी मैं तब 6-7 महीने की थी. वहीँ बड़े होते हुए मुझे नानी ने एक माँ का प्यार दिया. संत जोशफ से प्लस टू करने के बाद पटना वीमेंस कॉलेज से मैंने मास कम्युनिकेशन में ग्रेजुएशन किया. घर में सबका मन था कि मैं डॉक्टर बनूँ लेकिन कहते हैं ना कि जहाँ किस्मत लेकर जाएगी वहीँ जाइएगा.
पढ़ाई खत्म होते ही दर्श न्यूज चैनल में बतौर एंकर मैंने करियर की शुरुआत की. वहां के बाद आर्यन न्यूज ज्वाइन किया. उसमे एक स्पेशल क्राइम शो लेकर आयी थी. जब आर्यन में थें तभी मेरी शादी हो गयी. शादी के दो-तीन महीने बाद ही मैंने जॉब छोड़ दिया. मेरा ससुराल मुजफ्फरपुर के भरथुआ गांव में पड़ता है. चूँकि मैं कॉलेज के समय से ही दूरदर्शन के ‘युवालोक’ कार्यक्रम से जुड़ी थी. शादी बाद आर्यन छोड़ने पर मैंने दूरदर्शन का ‘स्वच्छ भारत’ कार्यक्रम शुरू किया. चूँकि मेरा बच्चा होनेवाला था इसलिए थोड़े टाइम के लिए वहां से ब्रेक ले लिया.
जब बच्चा 6 महीने का हो गया तो मैं फिर से दूरदर्शन गयी और वहां ‘बिहार बिहान’ के लिए लाइव एंकरिंग करने लगी. मॉर्निंग शो था तो झिझक हुई घर में बोलने में कि सुबह-सुबह उठकर चली जाउंगी. फिर जब मैंने किसी तरह घरवालों को बताया तो ससुरालवालों ने बोला कोई बात नहीं. मैं सोच रही थी कि 6 महीने के बच्चे को छोड़कर जाउंगी कैसे और कैसे मैनेज होगा लेकिन मेरे सास-ससुर सबने बोला कि नहीं कोई दिक्क्त नहीं है. फिर मैं आराम से जाती थी और आराम से वापस आ जाती थी. शादी के बाद मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया. साथ-साथ पढ़ाई, दूरदर्शन में एंकरिंग और बच्चे व घर-परिवार की जिम्मेदारी चलती रही.
मेरी शादी 28 नवम्बर, 2012 को हुई थी. हमारे यहाँ एक मांग बहुराने की प्रक्रिया होती है जिसमे सुबह-सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नाक से मांग तक सिंदूर लगाया जाता है. रिवाज के अनुसार कहा जाता है कि नाक से थोड़े ऊपर का हिस्सा मायके का होता है फिर वहां से ऊपर मांग तक का हिस्सा ससुराल का होता है. तो सुबह-सुबह करने से मायके और ससुराल में तालमेल बना रहेगा. मुझे बहुत ज्यादा आइडिया नहीं था. वैसे मेरे मायके में दो ममियां हैं लेकिन मैं सोती रहती थी और वे लोग कब ये सारी चीजें कर लेती थीं मुझे खबर ही नहीं पड़ती थी. नई बहु की यह प्रक्रिया सवा महीने तक चलती है. बहुत दिन सुबह-सुबह उठकर नहा लिया कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन जब ठंढ बढ़ी और जब रात में सोने जाती तो दिमाग में यही डर हावी रहता था कि इतनी ठंढ में सुबह उठकर नहाना होगा. सोचकर ही हालत पतली हो जाती थी. बहुत बार कौवा स्नान करके निकल जाया करती थी. घर में किसी को यह बताती नहीं थी कि डाँट पड़ेगा. फिर किसी तरह सवा महीने बीत गए. उसी सवा महीने के दौरान गांव जाना हुआ था कुल देवता की पूजा करने. गांव के रीती-रिवाजों को मैंने गौर से देखा नहीं था. वहां ऐसा था कि दिनभर तैयार होकर बैठे रहना है कि कौन कब आ जायेगा नहीं पता है. जब सब लोग दुल्हन देखने आये तो बड़ा सा घूंघट की हुई थी. सबने कहा – “बेटा, घूंघट हटाओ.” मैंने हटाया तो सब देख रहे थें. चूँकि होता ये है कि जब घूंघट उठाया जाता है तो आँख बंद होनी चाहिए और नीचे की तरफ आँखें झुकी होनी चाहियें. उसी में से किसी ने बोला कि “ऊपर देखो-ऊपर देखो” तो और भी लोग कहने लगें कि “हाँ बेटा, सब यहाँ घर के लोग हैं तो देखो. तब मैंने पटाक से देख लिया. अब सारे लोग लगे हंसने. पहले तो मुझे रोना सा आ गया कि एक तो सबने बोला कि ऊपर देखो और जब देखी तो मजाक उड़ने लगे यह कहकर कि “बोलेंगे ऊपर देखने तो ऊपर देख लोगी.” खैर वो भी समय बीत गया. फिर हमलोग 5-6 दिन बाद वापस पटना आ गएँ.
मुझे बहुत ज्यादा खाना बनाना नहीं आता था. मेरे ससुर को शुगर की प्रॉब्लम है तो मेरी सास ने बोला कि चीनी की खीर तो खाएंगे नहीं तो गुड़ की ही खीर बना दो चूल्हा-छुलाई की रस्म में. मुझे गुड़ की खीर बनाना आता नहीं था और खास बात कि मेरी सासु माँ को भी नहीं आता था. जब दूध और चावल उबल रहा था तो मैंने हड़बड़ी में गुड़ डाल दिया और दूध फट गया. उस दिन पूरा घर खचाखच मेहमानों से भरा हुआ था और ऐसा फटा हुआ दूध का खीर देखकर कोई भी मजाक उड़ा देता. जब खीर लेकर आएं तो सबको पता चल गया. लेकिन सासु माँ ने अपने ऊपर लेते हुए कहा कि “मेरी गलती है, हम ही बोले कि उबलते हुए ही गुड़ दाल दो और दूध फट गया.” फिर सबने ऐसे ही खा लिया एक-दूसरे के साथ हंसी-मजाक करते हुए. बड़ों ने कहा- “कोई बात नहीं, होता है, आगे से ध्यान रखना.” मेरे ससुर जी खाने के बहुत शौक़ीन हैं उनको चाहिए की वेरायटी-वेरायटी बनाकर दीजिये तो बहुत खुश होंगे. हांलांकि मैं शुरू-शुरू में खाना बहुत अच्छा नहीं बनाती थी. कभी नमक ज्यादा तो कभी कुछ-कभी कुछ… लेकिन ससुर जी ने कभी कुछ नहीं बोला. उन्हें नॉनवेज में छोटी मछली बहुत पसंद है जो मुझे बनाने आता नहीं था. तो मैं लेकर तैयार कर देती तो मेरे देवर बना दिया करते थें कि चलो खराब ना हो, कहीं पापा गुस्सा ना हो जाएँ. वैसे अधिकांशतः जब घर में नॉनवेज आता तो मैं साइड हो जाती और देवर जी ही बनाते थें. मेरी सासु माँ ने तब बोला था – “तुम्हें खाना बनाने की एक साल ट्रेनिंग दूंगी. और क्यूंकि मायके में मेरा कभी किचेन से वास्ता ही नहीं पड़ा. मामा मुझे किचेन में जाने ही नहीं देते थें. लेकिन फिर धीरे-धीरे खाना क्या नॉनवेज बनाने में भी ट्रेंड हो गयी.
जब मुझे ससुराल आये चार-पांच दिन ही हुए थें तब एक बार किचेन के बेसिन में बहुत सारे बर्तन रखे थें. मेड ने सुबह साफ किया था तो शायद जूठा बेसिन में ही छोड़ दिया था जिससे वह पूरा जाम हो गया था. मेड ने बोला – “दीदी जाम हो गया है…” तो हम आएं और कुछ पतला लकड़ी जैसा ढूंढा पर मिला नहीं. बालकनी में लोहे की रॉड रखी थी, मैं लेकर गयी और रॉड जाली में घुसाकर जितनी ताकत मेरे अंदर थी लगा दी. हुआ क्या कि बेसिन तो सही सलामत रहा लेकिन जाली का हिस्सा नीचे गिर गया. फिर बेसिन का गन्दा पानी पूरे घर में फ़ैल गया. सासु माँ ने कमेंट किया कि “इसको बोला गया साफ़ करने तो इसने पूरा साफ़ ही कर दिया.” दोपहर का वक़्त था, किचेन के बेसिन के बिना काम हो नहीं सकता था तो देवर जी दौड़े-दौड़े मार्केट गए और बेसिन का सामान लेकर आएं. अचानक से प्लम्बर नहीं मिला तो पति-देवर सबने मिलकर उसको ठीक-ठाक किया. मेरी और सासु माँ में इतनी अच्छी बॉन्डिंग है कि जब मेरे और पति के बीच कुछ भी हुआ तो मेरी सासु माँ मेरा ही पक्ष लेती हैं. मेरे ससुर जी को घर में कोई भी बात कहनी होगी तो वे मुझसे ही कहेंगे. वे अपने बेटों को कभी बेटा कहकर नहीं बुलाएँगे लेकिन मुझे कहेंगे ‘प्रिया बेटा, प्रिया बेटा…’ कभी किसी बात को लेकर डांटा तो बिल्कुल भी नहीं. तो मेरी सासु माँ कहती भी थीं कि “कुछ होता है तो आपको बोलना चाहिए, बोलते क्यों नहीं हैं.’ लेकिन फिर भी वे मुझे कभी कुछ नहीं बोलेंगे और अपने बेटों को जितना हो सके डाँट सुना देंगे, क्यूंकि बेटियों से उन्हें बहुत प्यार है. मेरी एक ननद है जो फ़िलहाल दिल्ली में रहती हैं. वे मेरी स्ट्रेस बस्टर हैं, जब उनसे बात करती मेरा सारा स्ट्रेस खत्म कर देती थीं. मैं बहुत लकी हूँ कि मायका जितना बेहतरीन है उतना ही ससुराल भी बेहतरीन है. जब मैं 6 कक्षा में थी तभी मेरे मामा की शादी हुई और तब से लेकर अबतक मेरे हर छोटी-मोटी जरूरतें या कुछ भी होता तो मैं मामी को बेफिक्र होकर बोल देती की मम्मी ये प्रॉब्लम है.
शादी के एक साल के भीतर मेरी सासु माँ का पी.एम.सी.एच. में मेजर ऑपरेशन हुआ. कहते हैं ना कि घर में कोई बीमार होता है तो पूरा का पूरा परिवार बीमार हो जाता है. तब मैं 8 महीने की प्रेग्नेंसी में 8 -9 दिन हॉस्पिटल में रही और डेली हॉस्पिटल से घर आना-जाना करती थी. दिनभर हॉस्पिटल में रहती सिर्फ रात में सोने के लिए घर आती थी. आस-पड़ोस के लोग टोकते कि बहु को ऐसी हालात में हॉस्पिटल क्यों बुलाती हैं तो सासु माँ कहतीं “जाको राखे साइयाँ मार सके न कोई….’ जो होना होगा वही होगा. अब मेरे घर में मेरे साथ यही है तो यही आएगी ना.” तब ससुर जी भी बहुत ख्याल रखते थें. खाना-वाना, जूस लेकर मुझे देते थें कि हॉस्पिटल में हूँ तो मुझे परेशानी न हो. यही सब चीजें हैं कि जब आपको बहुत सपोर्ट मिलता है तो परेशानी फिर परेशानी नहीं लगती. खैर अभी तक मैं सुसराल से लेकर मायके तक सबकी लाड़ली हूँ.