

विज्ञान हमेशा से मानव शरीर से प्रेरणा लेता रहा है। चाहे उड़ान का सपना रहा हो या कृत्रिम बुद्धिमत्ता का निर्माण। हर जगह मानव शरीर की बनावट और उसकी कार्यप्रणाली ने वैज्ञानिकों को दिशा दी है। इसी प्रेरणा का परिणाम है दक्षिण कोरिया के उल्सान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (UNIST) के वैज्ञानिकों का नया चमत्कार, एक ऐसी रोबोटिक मसल (कृत्रिम मांसपेशी) जो अपने वजन से 4000 गुना अधिक भार उठा सकता है, और साथ ही रबर जैसी लचीलापन और स्टील जैसी मजबूती रखता है।
यह तकनीक न केवल रोबोटिक्स की दुनिया में क्रांतिकारी साबित होने वाली है, बल्कि कृत्रिम अंगों (Prosthetics), वियरेबल टेक्नोलॉजी, और मानव-मशीन इंटरफेस के क्षेत्र में भी एक नए युग का द्वार खोलती है।
पारंपरिक रोबोट धातु और कठोर ढांचों से बने होते हैं। उनकी गति सीमित होती है और वे नाजुक या असमतल सतहों पर ठीक से काम नहीं कर पाता है, इसीलिए वैज्ञानिकों ने एक नया क्षेत्र विकसित किया है “सॉफ्ट रोबोटिक्स”, जिसमें ऐसे रोबोट बनाए जाते हैं जो नरम, लचीले और जैविक संरचना जैसे व्यवहार करता है।
“सॉफ्ट रोबोटिक्स” का लक्ष्य ऐसे रोबोट बनाना है जो मानव हाथ या मछली के पंख की तरह स्वाभाविक रूप से मुड़ सकें, झुक सकें और अपने वातावरण के अनुसार प्रतिक्रिया दे सके।
 दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने जो कृत्रिम मांसपेशी बनाई है, वह एक “ड्यूल क्रॉस-लिंक्ड पॉलिमर नेटवर्क” पर आधारित है। यह नेटवर्क दो तरह के बंधनों से मिलकर बना है। पहला रासायनिक बंध (Chemical Bonds) है जो स्थायी मजबूती प्रदान करता है और दूसरा भौतिक बंध (Physical Bonds) है जो तापमान और दबाव के प्रभाव में टूटता और बनता रहता है। यह संरचना ही इसे कठोर और लचीला दोनों बनने की क्षमता देता है।
दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने जो कृत्रिम मांसपेशी बनाई है, वह एक “ड्यूल क्रॉस-लिंक्ड पॉलिमर नेटवर्क” पर आधारित है। यह नेटवर्क दो तरह के बंधनों से मिलकर बना है। पहला रासायनिक बंध (Chemical Bonds) है जो स्थायी मजबूती प्रदान करता है और दूसरा भौतिक बंध (Physical Bonds) है जो तापमान और दबाव के प्रभाव में टूटता और बनता रहता है। यह संरचना ही इसे कठोर और लचीला दोनों बनने की क्षमता देता है।
जब इस मांसपेशी पर विद्युत या तापीय ऊर्जा दिया जाता है, तो पॉलिमर नेटवर्क में मौजूद बंध सक्रिय हो जाता है। भार उठाने की स्थिति में यह कठोर हो जाता है और जब उसे सिकुड़ना या मुड़ना होता है, तो वह नरम हो जाता है। इस प्रकार, यह कृत्रिम मांसपेशी बिल्कुल वैसी ही गतिशील प्रतिक्रिया देता है जैसी हमारी प्राकृतिक मांसपेशियां देती हैं।
महज 1.25 ग्राम वजन वाली यह कृत्रिम मांसपेशी 5 किलोग्राम तक का भार उठा सकता है। यह अनुपात अपने आप में एक रिकॉर्ड है, यानि यह अपने वजन से लगभग 4000 गुना ज्यादा भार उठाने में सक्षम है। मानव मांसपेशियां अपने वजन से औसतन 30 से 40 गुना भार उठा पाता है। इस हिसाब से यह रोबोटिक मसल मानव मांसपेशियों से 100 गुना अधिक ताकतवर है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, यह मांसपेशी सिकुड़ने पर 86.4 प्रतिशत तनाव (strain) झेल सकता है, जो मानव मांसपेशियों की तुलना में दो गुना से भी अधिक है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि रोबोटिक मांसपेशियां अब केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रहेंगी, बल्कि वास्तविक जीवन के कार्यों में भी उपयोगी साबित होगी।
पारंपरिक रूप से, कृत्रिम मांसपेशियों में एक बड़ी समस्या यह थी कि वह या तो बहुत ताकतवर होती थी लेकिन कठोर, या फिर बहुत लचीली लेकिन कमजोर। इस नए डिजाइन में वैज्ञानिकों ने इस दुविधा को खत्म कर दिया है। इसका रहस्य है पहला है ड्यूल-नेटवर्क संरचना, जो तनाव झेलते हुए खुद को पुनर्गठित कर सकता है और दूसरा है थर्मल नियंत्रण प्रणाली, जो मांसपेशी को ऊर्जा मिलने पर तुरंत स्थिति बदलने में सक्षम बनाता है। इस प्रकार, यह मांसपेशी स्टील की तरह सख्त बन सकता है और जब जरूरत हो तो रबर जैसा मुलायम भी हो सकता है।
यह मांसपेशी मानव शरीर की जैविक मांसपेशियों की कार्यप्रणाली से प्रेरित है। मानव मांसपेशियां एक्टिन और मायोसिन फाइबरों से बनी होती हैं जो एक-दूसरे पर फिसलकर सिकुड़ने और फैलने की प्रक्रिया करती हैं। नई कृत्रिम मांसपेशी भी इसी सिद्धांत पर काम करती है, केवल अंतर यह है कि इसमें फाइबर की जगह स्मार्ट पॉलिमर नेटवर्क है, जो तापमान और दबाव के अनुसार बदलता है।
आज के कृत्रिम हाथ-पैर मोटरों और भारी बैटरियों पर निर्भर हैं। वे धीमे, कठोर और सीमित गति वाले होते हैं। नई रोबोटिक मांसपेशी के आने से यह स्थिति बदल सकती है। अब कृत्रिम हाथ मानव हाथ जैसी गति और ताकत से चीजें उठा सकेंगे, मुड़ सकेंगे और सूक्ष्म कार्य कर पाएंगे। यह मांसपेशी इतनी संवेदनशील है कि सूई में धागा डालने जैसे कार्यों के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है।
सॉफ्ट रोबोट्स का उपयोग उन क्षेत्रों में होता है जहां कठोर मशीनें असफल रहती हैं, जैसे- गहरे समुद्र में खोज अभियान, मानव शरीर के अंदर सूक्ष्म सर्जरी, आपदा क्षेत्रों में खोज और राहत कार्य, अंतरिक्ष में नम्य रोबोटिक आर्म्स। इन सभी कार्यों के लिए ऐसी मांसपेशियों की जरूरत होती है जो लचीली भी हो और मजबूत भी, और यह नया आविष्कार उस आवश्यकता को पूरा करता है।
इस मांसपेशी का केंद्र बिंदु है “Dual Cross-linked Polymer Network”, जिसमें दो तरह की ऊर्जा गतिशील क्रियाएं होती हैं। पहला रासायनिक बंधन, स्थायी और मजबूत होते हैं, जो संरचनात्मक स्थिरता बनाए रखते हैं। दूसरा भौतिक बंधन, तापमान या विद्युत संकेत के आधार पर टूटते और बनते रहते हैं, जिससे लचीलापन आता है।
जब तापमान बढ़ाया जाता है या विद्युत धारा दी जाती है, तो यह नेटवर्क फेज ट्रांजिशन (phase transition) करता है यानि ठोस जैसी स्थिति से मुलायम जेल जैसी स्थिति में बदल जाता है। यही इसकी कार्यप्रणाली की कुंजी है।
प्रोफेसर हुन यूई की टीम ने बताया है कि इस मांसपेशी की ऊर्जा घनत्व (Energy Density) मानव मांसपेशियों से 30 गुना अधिक है। इसका मतलब यह है कि यह कम ऊर्जा में भी अत्यधिक कार्य कर सकता है, यह खासियत उन उपकरणों के लिए बहुत जरूरी है जो सीमित बैटरी पर चलते हैं, जैसे- वियरेबल डिवाइस, ड्रोन और रोबोटिक एक्सोस्केलेटन।
भविष्य में यह तकनीक स्मार्ट कपड़ों या एक्सो-सूट्स में इस्तेमाल हो सकता है। एक ऐसा जैकेट जो पहनने वाले की मांसपेशियों के साथ समन्वय में काम करे, और जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त बल दे। यह वृद्ध लोगों, सैनिकों, और दिव्यांगों के लिए अद्भुत सहायक तकनीक बन सकता है।
यह मांसपेशी कार्बन-आधारित पॉलिमर से बनी है, जिनका उत्पादन अपेक्षाकृत कम लागत और कम प्रदूषणकारी है। इसके अलावा, इसकी संरचना रीसायकल योग्य और ऊर्जा-कुशल है, जिससे यह हरित तकनीक के अनुरूप भी है।
UNIST के वैज्ञानिकों ने बताया कि वे अब इस तकनीक को बड़े पैमाने पर उत्पादन योग्य बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। भविष्य में यह मांसपेशी विभिन्न उद्योगों में उपयोगी हो सकता है जैसे- चिकित्सा उपकरण, स्वचालित निर्माण, सर्जिकल रोबोट्स और स्पेस इंजीनियरिंग।
यह आविष्कार केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह मानव शरीर और मशीनों के बीच की दूरी घटाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। रोबोट अब केवल औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाली मशीनें नहीं रहेंगे वे मानव जैसी संवेदनशीलता और निर्णय क्षमता वाले साथी बन सकता है।
प्रोफेसर हुन यूई का कहना है कि “हमारा लक्ष्य केवल ताकतवर कृत्रिम मांसपेशी बनाना नहीं था, बल्कि ऐसी प्रणाली विकसित करना था जो मानव शरीर की तरह परिस्थितियों के अनुसार प्रतिक्रिया दे सके।”
उनकी टीम का मानना है कि यह तकनीक भविष्य में रोबोटिक सर्जरी, मानव-सहायक मशीनें और स्मार्ट एक्सोस्केलेटन जैसे क्षेत्रों में गेमचेंजर साबित होगी।
आने वाले वर्षों में इस मांसपेशी को और अधिक ऊर्जा-कुशल, तापमान-अनुकूल, और स्व-उपचारक (Self-Healing) बनाने पर अनुसंधान चल रहा है। यदि यह सफल हुआ, तो रोबोटिक शरीर के अंग न केवल मानव जैसे कार्य करेंगे बल्कि खुद की मरम्मत भी कर सकेगा, बिल्कुल जीवित कोशिकाओं की तरह।
इस तकनीक का प्रभाव केवल विज्ञान तक सीमित नहीं रहेगा। यह दिव्यांगजनों के लिए नई स्वतंत्रता, बुजुर्गों के लिए शारीरिक सहारा और चिकित्सा जगत के लिए नवीन सर्जिकल संभावनाएं लेकर आएगा। कृषि, निर्माण, रक्षा और घरेलू उपकरणों में भी इसका उपयोग देखा जा सकेगा।
यह तकनीक अत्यंत प्रभावशाली है, लेकिन कुछ चुनौतियां भी मौजूद हैं, ऊर्जा स्रोत का आकार घटाना, ताकि यह पहनने योग्य हो सके। दीर्घकालिक टिकाऊपन बढ़ाना, ताकि यह वर्षों तक कार्य कर सके। लागत घटाना, ताकि यह आम लोगों के लिए सुलभ बन सके। शोधकर्ता इन चुनौतियों पर लगातार काम कर रहे हैं, और शुरुआती संकेत बताता है कि आने वाले दशक में यह तकनीक व्यावहारिक रूप ले लेगा।
कुछ दशक पहले तक कृत्रिम मांसपेशी का विचार केवल विज्ञान-कथा (Science Fiction) में ही संभव लगता था। आज, यह वास्तविक प्रयोगशालाओं में जीवंत रूप ले चुका है। यह मानव की उस असीम जिज्ञासा का प्रमाण है जो प्रकृति से सीखकर नई सृष्टि रचती है।
इस रोबोटिक मांसपेशी का निर्माण केवल एक वैज्ञानिक आविष्कार नहीं है, बल्कि यह उस दिशा का संकेत है जहां मानव शरीर, मशीन, और बुद्धिमत्ता एक साथ मिलकर काम करेगा। यह तकनीक भविष्य के समाज की परिकल्पना को बदल देगी। जहां मशीनें केवल आदेश नहीं मानेंगी, बल्कि महसूस करेगी, प्रतिक्रिया देगी और सहायता करेगी।
 
 
                 
         
                
                 
                         
                        