वुशू (मार्शल आर्ट) में देश के लिए गोल्ड मैडल जीतना चाहती हैं ट्रैक्टर मैकेनिक की बेटी नूतन

वुशू (मार्शल आर्ट) में देश के लिए गोल्ड मैडल जीतना चाहती हैं ट्रैक्टर मैकेनिक की बेटी नूतन

कन्धों से कन्धा मिला रही हैं लड़कों से आज लड़कियां
दकियानूसी और जंग लगे दरवाजे तोड़ रही हैं आज लड़कियां,
माँ-बाप का हर सपना साकार कर रही हैं आज लड़कियां 
ज़रूरत पड़ने पर खुद बेटा बन जा रही हैं आज लड़कियां…’

इन पंक्तियों को चरितार्थ कर रही हैं आरा (बिहार) की रहनेवाली वुशू (मार्शल आर्ट) की इंटरनेशनल प्लेयर नूतन. पहली बार 2008 में इंडोनेशिया के बाली में हुए सेकेण्ड वर्ल्ड वुशू चैम्पियनशिप में इण्डिया का प्रतिनिधित्व करते हुए नूतन ने कांस्य पदक जीता. फिर 2009 में चीन के मकाउ में हुए पांचवे एशियन वुशू चैम्पियनशिप में भी कांस्य पदक हासिल किया. इसके अलावे नूतन के नाम दर्ज हैं नेशनल लेवल पर देश के विभिन्न हिस्सों में हुए वुशू चैम्पियनशिप में जीते गए दर्जनों अवार्ड. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झाड़खंड, उड़ीसा एवं महाराष्ट्र में नूतन गोल्ड मैडल जीतकर बिहार का नाम रौशन कर चुकी है. सितम्बर, 2016, पंजाब में हुए तीसरे फेडरेशन कप वुशू चैम्पियनशिप में नूतन ने फिर से गोल्ड जीता और अक्टूबर 2017, आसाम में हुए 26 वें सीनियर नेशनल वुशू चैम्पियनशिप में सिल्वर जीतकर आयी है. फरवरी 2017, आंध्रप्रदेश के गुंटूर में खेलो इण्डिया के तहत हुए नेशनल स्कूल स्पोर्ट्स चैम्पियनशिप में नूतन बिहार की टीम की कोच बनकर गयीं और उनकी टीम ने वहां 2 गोल्ड एवं 3 ब्रॉन्ज जीता. नूतन का फ़िलहाल एक ही सपना है कि वो देश के लिए गोल्ड मैडल जीतकर लाये. उनके प्रदर्शन को देखते हुए अब तक बिहार सरकार उन्हें 5 बार सम्मानित भी कर चुकी है. नूतन के सराहनीय प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें 2016 में ‘सिनेमा इंटरटेनमेंट’ द्वारा ‘सशक्त नारी सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है. स्पोर्ट्स कोटे के तहत नूतन पटना कलेक्ट्रियट में 2012 से एल.डी.सी. के पद पर कार्यरत हैं. नवम्बर, 2016 में नूतन इंटरनेशनल बॉक्सर, अनिल कुमार के साथ परिणय सूत्र में बंध चुकी हैं.

अपने पुराने दिनों को याद करते हुए नूतन बताती हैं कि ‘बचपन में मैं बहुत सीधी-सादी लड़की थी. हर बार दूसरे बच्चों से मार खाकर रोती-बिलखती घर चली आती थी. तब पापा मुझे डाँटते हुए कहते कि क्यों मार खाकर आ गयी, तुम भी मारो. ऐसा नहीं था कि वो मुझे मारपीट के लिए उकसाया करते थे बल्कि उनका इरादा मुझे निडर एवं साहसी बनाने का था. बचपन में जिस गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी अक्सर उसके छत से बगल में ही कुछ लड़कों को जूडो-कराटे सीखते हुए देखा करती थी. मेरा भी मन होता सीखने का, लेकिन तब वहां लड़कियों के लिए माहौल अनुकूल नहीं था. मेरे घर में भी इसकी इजाजत नहीं थी. मैंने स्कूल में कबड्डी, तीरंदाजी जैसे कई खेलों में हिस्सा लिया लेकिन मुझे मार्शल आर्ट्स ने ज्यादा प्रभावित किया. वुशू जिसे पहले कुंगफू के नाम से जानते हैं, इसकी ट्रेनिंग देने वाले सर ने मुझे इस खेल के लिए प्रेरित किया. मैं भी वुशू खेलने लगी. लेकिन मेरे आस-पास का माहौल अच्छा नहीं था. पड़ोसी व रिश्तेदार ताने देते कि, इस खेल को खेलकर क्या करोगी? मारपीट वाला गेम लड़कियों के लिए अच्छा नहीं होता. मुँह-नाक में चोट लग गयी तो शादी भी नहीं होगी. यही बात मम्मी के दिल में बैठ गयी इसलिए वो भी चाहती थीं कि इस खेल को मैं जबतक स्कूल में हूँ तब तक ही खेलूं, आगे नहीं. मगर पापा ने मुझे कभी नहीं टोका. जब चौथी क्लास में थी तभी से पापा ने मुझे बाइक चलाना, स्केटिंग करना सीखा दिया था. तब मैं मम्मी और रिश्तेदारों से कहती कि हर जगह मुझे आप बचाने आएंगे क्या ? मुझे अपने लिए खुद ही तो लड़ना होगा. फिर मैं धीरे-धीरे पदक जीतकर घर लाने लगी. पहली बार महारष्ट्र में हुए ताइक्वांडो प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीतकर घर आई तो पापा-मम्मी बहुत खुश हुए. उन्हें मुझपर विश्वास होने लगा.’

‘बोलो ज़िन्दगी’ के लिए अपना संस्मरण साझा करती नूतन

पहले बिहार में ट्रेनिंग के लिए लड़कियां पार्टनर के रूप में कम मिलती थीं. इसलिए वुशू गेम की ट्रेनिंग नूतन को मज़बूरी में लड़कों के साथ करनी पड़ती थी. धीरे-धीरे जब प्रैक्टिस में नूतन लड़कों को भी मात देने लगी तब उनका आत्मविश्वास बढ़ गया. 2008 में जब मध्य प्रदेश में ट्रेनिंग के लिए एकेडमी में नूतन का सेलेक्शन हुआ तो नूतन अकेले वहां गयी. उनका रहना, खाना-पीना, पढ़ाई और खेल की ट्रेनिंग का जिम्मा एकेडमी के ऊपर था. घरवालों की कमी खल रही थी लेकिन सपना सच करना था तो उनसे दूर होकर रहना ही पड़ा. पहली बार नूतन दिसंबर 2008 में सेकेण्ड वर्ल्ड वुशू चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने विदेशी धरती पर गयी. रास्ते में लैंग्वेज प्रॉब्लम को लेकर वह चिंतित थीं कि वहां कैसे दूसरों से बातें करेंगी. वह पहली दफा विदेशी लड़कियों से फाइट करनेवाली थीं. टर्की-रसिया की लड़कियां बहुत लम्बी-चौड़ी थीं तो नूतन सोच रही थी कि कैसे इनका मुकाबला करेंगी. लेकिन जब खेलने उतरी तो जोश इतना था कि सबकुछ भूल गयी और सिर्फ खेल पर ही ध्यान लगाने लगी. विदेशों में खेल का माहौल नूतन को बहुत अच्छा लगा. लड़कियां भी लड़कों की तरह ही ट्रेनिंग ले रही थीं. हमारे यहाँ लड़कियां प्रैक्टिस के वक़्त शर्म से और बचाव के लिए चेस्ट गार्ड लगाती हैं. लेकिन वहां उन्होंने देखा लड़कियां बिना संकोच और बिना चेस्ट गार्ड के लड़कों के साथ प्रैक्टिस कर रही हैं. वुशू पकड़ने और पटकने का भी गेम है लेकिन अपने यहाँ आमतौर पर लड़कों के साथ प्रैक्टिस में ऐसे हालात में लोग बुरा समझते होंगे. लेकिन ऐसा कुछ विदेश में नहीं था. जब पहली बार नूतन देश के लिए कांस्य मैडल जीतकर घर लौटी तो जो सम्मान मिला कभी उसे नहीं भूल सकती. ताना मरनेवाले लोगों ने भी शाबाशी दी और फिर कभी नूतन ने नहीं सुना किसी से कि ये गेम ही क्यों चुना ?

सशक्त नारी सम्मान से सम्मानित होतीं नूतन

2009 में जब नूतन इण्डिया कैम्प, मेरठ में थी तो पैर में चोट लगने की वजह से प्लास्टर चढ़ गया था. चाइना जाने में थोड़े ही दिन बचे थे. वह सेलेक्शन का मौका खोना नहीं चाहती थी. जब उन्होंने अपनी चिंता कोच के समक्ष व्यक्त की तब कोच ने कहा कि खेलना है तो प्रैक्टिस जरुरी है. चाहो तो प्लास्टर तोड़ दो. फिर नूतन ने 3 दिन में ही प्लास्टर तोड़कर प्रैक्टिश शुरू कर दिया. ट्रायल के बाद सेलेक्शन भी हो गया. फिर दूसरी बार इंडिया का प्रतिनिधित्व करने वें चाइना गयीं और वहां भी कांस्य पदक जीतकर लौटीं. अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी बनने के बाद जब एक दफा नूतन आरा के वीर कुंवर सिंह स्टेडियम में प्रैक्टिस करने पहुंची तो, वहीँ एक अभिभावक अपनी बच्चियों के साथ वॉक कर रहे थें. वे अपनी बच्चियों को नूतन के पास लेकर आएं और उनसे कहने लगे कि ‘तुम लोग भी नूतन दीदी से सीखो और इनके जैसा ही बनो.’ उनकी बात सुनकर तब नूतन को बहुत गर्व महसूस हुआ. एक और घटना याद करते हुए नूतन बताती हैं कि जब शुरूआती दिनों में वे सीखने ग्राउंड में जाती थीं तो लड़के कमेंट करते कि ‘देखो, लगता है ये लड़का ही बन जाएगी.’ कभी-कभी इससे भी भद्दे कमेंट पास होते जिन्हें वे हर बार इग्नोर कर देती. तब नूतन यही सोचती कि एक दिन मैं ऐसा कुछ कर दिखाउंगी कि ये लड़के तब खुद अपने आप पर शर्मिंदा होंगे. नूतन बताती हैं कि ‘पापा जितेंद्र प्रसाद ट्रैक्टर मैकेनिक और माँ गृहिणी, जाहिर है ऐसे में आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी तो नहीं ही होगी. तब पापा अपनी मेहनत की कमाई हम सब की देखभाल में खर्च कर रहे थें. जब मैं अपने पैर पर खड़ी हो गयी तो अच्छा लगा घर की जिम्मेदारी निभाने और भाई-बहनों के सपने पूरे करने में.’ शादी के बाद भी नूतन को अपने पति का सपोर्ट मिल तो रहा है लेकिन जहाँ पहले वह 3 टाइम प्रैक्टिस करती थीं अब शादी बाद घर गृहस्थी और जॉब की वजह से नूतन एक टाइम ही प्रैक्टिस कर पाती हैं. मगर फिर भी नूतन के जज्बे और लगन को देखते हुए लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब वह इंडिया के लिए गोल्ड जीतकर लाएंगी.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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