अभी इस लॉक डाउन की स्थिति में घर की महिलाओं पर वर्क लोड बढ़ गया है. बच्चों की छुट्टियां तो हैं लेकिन वे खेलने बाहर नहीं जा सकतें, पति ऑफिस नहीं जा रहें तो ऐसे में घर की महिलाओं की दिनचर्या कैसी है और वो इस सिचुएशन को हैंडल करते हुए कैसे पूरे परिवार को सलीके से संभाल रही हैं ? इसी संबंध में बोलो ज़िन्दगी टीम ने फोन पर बात की पटना के अलग-अलग इलाकों की कुछ घरेलू और कामकाजी महिलाओं से जो यहाँ प्रस्तुत है……
रितु रीना, साइंस टीचर, डीएवी पब्लिक स्कूल,पुनाईचक – कोरोना से बचने का एकमात्र व सरल उपाय है घर से ना निकलें. मगर महिलाओं के लिए यह अलग ही अनुभव लाया है. एक तरफ गृहणियों का पूरा रूटीन बिगड़ गया है वहीँ दूसरी तरफ वर्किंग वुमेन भी काफी खट्टा-मीठा अनुभव झेल रही हैं. लॉकडाउन की स्थिति में जहाँ उन्हें परिवार के साथ ज्यादा टाइम बिताने को मिल रहा है वहीँ मेड को छुट्टी दे देने के कारण सारे घरेलू काम जैसे बर्तन, कपड़े, झाड़ू-पोंछा, खाना बनाना आदि सब करना पड़ रहा है. मैंने खाना बनाने के लिए भी मेड लगा रखा है क्यूंकि मुझे सुबह स्कूल के लिए निकलना पड़ता है. आमतौर पर अपने लिए कुछ भी नाश्ता लेकर निकल जाती थी लेकिन अब अपने परिवारवालों खासकर अपनी बेटी की बिरयानी, चाउमीन, पास्ता जैसी चीजों की फरमाईश पूरी कर रही हूँ. ऐसा लगता है पूरा दिन किचेन में बीत रहा है. बेटी का स्कूल बंद है तो उसकी बोरियत दूर करने के लिए बैडमिंटन भी खेल रही हूँ. मेरे पतिदेव सिविल कोर्ट में हैं और उन्हें अलटरनेट डे ड्यूटी देनी है पर वो भी कभी-कभी बर्तन धुल देते हैं ताकि मुझे मदद मिले. उनकी बार-बार चाय पीने की आदत है जिसकी वजह से दिन में आठ-दस बार चाय बनाती हूँ. मुझे मेरी सासु माँ का भी बहुत सपोर्ट मिल रहा है. इतनी मदद होने के बावजूद मैं दिनभर व्यस्त हूँ और कोई छुट्टी वाली फिलिंग नहीं आ रही है. लेकिन फिर भी बोलो ज़िन्दगी के माध्यम से मैं यही कहना चाहूंगी कि इसी तरह परिवार के साथ मिलकर तथा सोशल डिस्टेंस बनाकर ही हम कोरोना से जीत सकते हैं.
किरण उपाध्याय, कंकड़बाग – स्कूल-कोचिंग बंद होने से मेरे सभी बच्चे तो घर में ही रहते हैं लेकिन मेरे हसबैंड गवर्नमेंट ऑफिसर हैं इसलिए उन्हें लगभग पूरे हफ्ते ऑफिस जाना होता है. पहले बच्चे नाश्ते में जब-तब बाहर से भी टेस्ट चेंज करने के लिए ऑनलाइन कुछ-न-कुछ ऑर्डर कर देते थें लेकिन अभी सब घर का ही बना खाने की फरमाइश कर रहे हैं. किचेन से लेकर घर के अन्य काम भी बढ़ गए हैं फिर भी मैं इस पल का आनंद ले रही हूँ क्यूंकि सभी परिवार के लोग इकट्ठे हैं. लेकिन अब सुबह उठते ही काम को लेकर हड़बड़ी नहीं रहती, बल्कि अब बड़े इत्मीनान से घर के सारे काम निपटाती हूँ. एक दिन यूँ ही एक भिखारी दरवाजे पर आ गया था जो भूखा था, मैंने उसे कुछ खाने को दे दिया और फिर इनलोगों का ध्यान आया तो मैंने दूध देनेवाले राय जी से कहा कि उन्हें राह में ऐसे गरीब भूखे लोग दिखें तो वे उन्हें ज़रूर बताएं कि सरकार उनके खाने की व्यवस्था कर रही है. आप आस-पास मिले वैसे लोगों को कंकड़बाग स्थित पंचशिव मंदिर के पास भी भेज सकते हैं जहाँ भूखे गरीबों को खिलाने की व्यवस्था की जा रही है.
पल्लवी नारायण, पटनासिटी – मेरे पति आदित्य कुमार प्रॉपर्टी डीलर हैं लेकिन अभी इस हालात में अपना काम छोड़कर घर पर ही बैठे हैं. मेरी दो साल की जुड़वाँ बच्चियां हैं जिसे मेरे हसबैंड देखते हैं तबतक मैं घर के काम निपटा लेती हूँ. चूँकि संयुक्त परिवार में हूँ इसलिए घर के सभी लोग मिलजुलकर काम कर रहे हैं. मेरे घर गाय और तीन पालतू कुत्ता भी है. गाय अब दूध नहीं देती है लेकिन बचपन से है इसलिए उसकी सेवा भी करनी पड़ती है. अपने से ज्यादा इन जानवरों के भोजन की भी चिंता रहती है. चोकर भी महंगा हो गया है फिर भी गाय को खिलाना तो है ना, तीनो कुत्तों का भी घर में खाना बनाना पड़ता है. अभी के हालात देखते हुए मेरे हसबैंड ने अपनी माँ से कहा कि सिर्फ घर के जानवरों का नहीं बाहर के जानवरों का भी सोचो, इसलिए अब थोड़ा बहुत खाना हम घर के बाहर भी अन्य भूखे जानवरों के लिए रख देते हैं. मैं घर के लोगों के लिए खाना बनाती हूँ तो सासु माँ सभी जानवरों के लिए खाना बना देती हैं. मेरे छोटे देवर भी घर में हैं तो काम में हाथ बंटाते हैं. सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं. घर के सभी पुरुष सपोर्ट करने के लिए खाने और चाय पीने के बाद अपना-अपना बर्तन भी धो देते हैं. मेरे यहाँ चैत्र छठ भी होता है इसलिए अभी हमलोग लहसुन-प्याज भी नहीं खा रहे हैं. हमलोगों के घर के बगल में ही चावल का गोदाम है तो वहां से एक बोरा चावल का ले लिए हैं, लेकिन सब्जी का परेशानी है. जब आलू का रेट बढ़ गया है तो हरी सब्जियों का भाव आप समझ सकते हैं. ऐसे में हम यही विचार कर रहे हैं कि कुछ दिन हरा सब्जी नहीं भी मिले तो चावल-दाल और आलू की भुजिया से ही काम चलाया जाये.
मिसेस हुदा मो. शहज़ाद, प्रिंसिपल, हीरा पब्लिक स्कूल, फुलवारीशरीफ – मेरे हसबैंड मो. शहज़ाद रशीद एडवोकेट हैं. तीन बच्चे हैं. बच्चे बोल रहे हैं कि मम्मी-डैडी घर को ही स्कूल बना दिए हैं. लेकिन उनकी शैतानियों से थोड़े देर बचने के लिए उन्हें होमवर्क देकर घर के कामों में लग जाती हूँ. वैसे घर में काम का बंटवारा हो गया है. किचेन में खाना तो मुझे ही बनाना है, लेकिन जैसे मशीन में कपड़े धुल गएँ तो बच्चे ले जाकर सूखने के लिए धूप में डाल आते हैं और सूखने के बाद वही ले भी आते हैं. हसबैंड की जिम्मेदारी है पीने का पानी भरना, किसी को अगर फ्रूट खानी है तो वे कटिंग करके सर्व भी कर देते हैं. बच्चे घर की साफ़-सफाई में भी हेल्प कर रहे हैं. जब फुर्सत में बैठे होते हैं तो कभी बच्चों के संग यू-ट्यूब पर कोई ऐसा वीडिओ देख लेते हैं जिससे मनोरंजन भी हो जाये और बच्चों का ज्ञानवर्धन भी हो जाये. ऐसे ही हमलोगों का पूरा दिन निकल जाता है. सोशल वर्क के तहत ज़रूरतमंदों को खाना पहुँचाने का काम कर रही एक संस्था के साथ जुड़कर पड़ोस में ही हम दो महिलाएं मिलकर सोशल डिस्टेन्स और साफ़-सफाई का ध्यान रखते हुए पैकिंग का काम भी कर रही हैं. इसके लिए हरेक घंटे में सैनेटाइजर का इस्तेमाल करते हैं. और जैसे ही घर आती हूँ तो पहने हुए कपड़े उसी वक़्त वाशिंग मशीन में डालकर साफ़ कर देती हूँ.
रितु चौबे, फाइनांस एक्जक्यूटिव, श्रीकृष्णानगर – पहले जब ऑफिस जाना होता था तो एक शेड्यूल बना था कि 9 बजे तक ऑफिस जाने के पहले सुबह बच्चों को स्कूल, हसबैंड को ऑफिस के लिए रेडी कर, लंच-ब्रेकफास्ट बनाकर सब निपटाते हुए निकलो और तब ऐसे में दिल करता था कि काश संडे के सिवा कोई और भी दिन मिलता. एक सन्डे को 6 दिन का बचा काम करना होता था. पर कोरोना के कारण 21 दिन की छुट्टी मिली तो अभी कुछ ही दिन में लग रहा है कि जैसे वर्क लोड बढ़ गया है. घर में अब सभी फरमाइश का नाश्ता बनाने को कहते हैं. लांच भी फरमाइश का और डिनर भी अपने मन का. अभी से मुश्किल लगने लगा है, अभी तो 15 अप्रैल तक ऐसे ही चलेगा. एक औरत होने के नाते मुश्किलें शायद बढ़ गयी हैं लेकिन इन विषम परिस्थितियों में भी परिवार को सँभालते हुए हम सब को कोरोना पर विजय भी तो प्राप्त करनी है.
निभा प्रसाद, आनंदपुरी – कोरोना की वजह से घर के सभी लोगों का हर वक़्त घर पर ही रहना हम घरेलू महिलाओं के लिए वैसे तो अच्छी स्थिति नहीं है परन्तु यह बात ज़रूर है कि अब पहले जैसे समय की पाबंदी नहीं है. अब आराम के साथ अपना काम करती हूँ. मेरे पति पटना हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं लेकिन कोर्ट बंद होने से अब वो भी घर पर ही रहते हैं. यह सही है बच्चों की खाने संबंधित मांगें बढ़ गयी हैं पर मैं फिर भी मजे ले रही हूँ. हाँ लेकिन बच्चों के शरारत से परेशान भी हूँ. चैत्र नवरात्र चल रहा है, पूजा भी कर रही हूँ और परिवार को सँभालते हुए ईश्वर से कोरोना से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना भी.
सुल्ताना, उर्दू टीचर, सुल्तानगंज – खुद की बुटीक भी है, लेकिन अभी शॉप के साथ ऑर्डर भी बंद है. अब शॉप का काम घर पर ले आयी हूँ. स्कूल में पढ़ाने भी जाती थी वो भी बंद है. बाहर काम पर नहीं जा रही तो अब सुबह उठकर नमाज-कुरान पढ़ने के बाद नाश्ता बनाने में लग जाती हूँ. अब टीवी पर न्यूज भी देख ले रही हूँ. बुटीक का जो पेंडिंग काम था वो अब घर पर पूरा कर रही हूँ. पहले शॉप पर कारीगर से कराती थी लेकिन अभी वो घर पर भी नहीं आ सकते हैं तो मैं खुद से ही कर रही हूँ. वैसे लॉक डाउन होने के पहले उनको भी एक हफ्ते का काम हम पहले ही दे दिए थें. बच्चे घर में बोर हो रहे हैं तो उनको पढ़ाने के अलावा उनका ख्याल भी रखना पड़ रहा है. बाहर जब बहुत ज़रूरी होता है तभी निकल रही हूँ. मोहल्ले में राशन की चीजें तो मिल रही हैं लेकिन शब्जी-भाजी और अन्य चीजों के लिए थोड़ी मश्क्कत करनी पड़ती है. हम बड़े कंट्रोल कर भी लें लेकिन बच्चे नाश्ते में चाउमीन, पाश्ता की जिद कर देते हैं तो घर में उनके लिए बनानी ही पड़ती है.