मेरा जन्म जयपुर (राजस्थान) में हुआ. लेकिन मेरा ललन-पालन और स्कूली शिक्षा बिहार में हुई क्यूंकि मेरे पैरेंट्स बिहार में सेटल हो चुके थें. 9 वीं तक मेरी पढ़ाई हुई पटना के केंद्रीय विधालय में. स्कूल के अंदर मैं कल्चरर एक्टिविटीज एवं स्पोर्ट्स के अंदर बहुत ऐक्टिव थी. क्लास की मॉनिटर भी थी और स्कूल की कैप्टन भी बनी. स्कूल में मेरा फिजिक बहुत अच्छा था. बाकि लड़कियां बहुत पतली-दुबली सी दिखती थीं वहीँ मैं चूँकि हैल्दी थी तो उनलोगों को मोटी लगती थी. वे अक्सर मोटी-मोटी कहकर चिढ़ाती थीं. उनकी बुलिंग के चलते मैंने जिमिंग स्टार्ट की. अभी भी बहुत लोगों के मन में रहता है कि अरे लड़कियां जिम जाएँगी, वेट ट्रेनिंग करेंगी..! तो उस वक़्त 2003 में समझ सकते हैं कि क्या माहौल होगा. लोग कहते थें कि वेट ट्रेनिंग करेगी तो लड़कों जैसी हो जाएगी. मैं तब ट्यूशन के बहाने जिम जाती थी. 2 बजे जिम बंद होता था. मैं खुद से जिम खोलती थी. स्कूल से जिम, जिम से ट्यूशन और ट्यूशन से घर यही मेरी दिनचर्या थी. जिम के ऑनर बहुत सपोर्टिव थें. वे पूरी की पूरी चाभी दे देते थें. तब मैं पापा से छुपाकर जिम जाती थी. लेकिन मम्मी और भाई का सपोर्ट मिला. जिम के लिए मम्मी ही चुपके से मुझे पैसे देती थी. जब पोल खुली और पापा जान गए तो बुरा नहीं माने. जब मेरे पिता को पता लगा कि इसकी सोच बहुत अच्छी है कि भाई मुझे अगर जींस पहननी है तो ऐसी बॉडी के साथ पहनूं कि लोग मुझे ताने ना मारें, मेरे को टॉप पहनना है तो पेट निकालकर भद्दी ना दिखूं… तो इस अच्छी सोच के साथ फिट रहने के लिए अगर बॉडी बनानी है तो कोई भी पैरेंट्स इसके लिए मना नहीं करेंगे. आपकी हर अच्छी चीज के अंदर, अच्छी सोच के अंदर आज नहीं तो कल पैरेंट्स सपोर्ट करेंगे ही और आज सपोर्ट ही है मेरे माँ-बाप का कि मैं इण्डिया से लेकर एब्रॉड तक अकेली जाती हूँ.
जब स्कूल में मैं मैं 10 वीं में आयी तो सारी लड़कियों को मैंने देखा कि हार्मोन चेंज होने की वजह से सभी गोल-मटोल हो चुकी थीं. लेकिन मेरी फ्रेमिंग फिट एन्ड फाइन थी. मेरी जिमिंग की वो जर्नी जो 9 वीं क्लास से स्टार्ट हुई वो अभी तक जारी है. मैंने कड़ी मेहनत करके 6 पैक ऐब्स भी बनाई. मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई दिल्ली से हुई और तब मैं इंजीनियरिंग के साथ-साथ कॉर्पोरेट के अंदर मार्केटिंग का जॉब करते हुए वाइस प्रेजिडेंट, मार्केटिंग के ओहदे तक पहुंची. उसके बाद मैं दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हो गयी. मुंबई में मीडिया सेक्टर में भी काम किया. वहां मैंने अपना एन.जी.ओ. स्टार्ट किया ‘गॉड्स ब्यूटीफुल चाइल्ड्स’ जिसे मैं 5 सालों से चला रही हूँ. जो बच्चों के डेवलपमेंट के लिए काम करती है और जो बर्न विक्टिम महिलाएं हैं या जिनका सेल्फ कॉन्फिडेंस खो चुका है, उनको किसी का सपोर्ट नहीं है. मेरा मानना है जब भी आपके अंदर समाज को देने की इच्छा होती है तभी आप कुछ बेहतर कर सकते हैं. जब आप सिर्फ अपने लिए सोचते हैं तो अपने लिए बाउंड्री तैयार करते हैं कि मुझे ये करना है, मुझे वो करना है. मगर जब आप बहुत सारे लोगों की जिमेदारी ले लेते हैं तो ऊपरवाला आपका कद खुद-ब-खुद बड़ा कर देता है. वो पावर देना शुरू कर देता है, चाहे वो दिमाग से हो, पैसे से हो या ओहदे से हो. मैं 26-27 साल की उम्र में इतने बड़े फेडरेशन ( IBBF) में फिजिक स्पोर्ट्स की डायरेक्टर हूँ जिसके अंदर कभी मैं खेला करती थी. वहां पर एक-से-एक सीनियर्स हैं और वहां पर सबसे यंगेस्ट लड़की मैं हूँ. और मुझे युवाओं का मार्गदर्शन करना है.
युवाओं के तौर पर मैं अगर कहूं तो हर माँ-बाप संस्कार देते हैं लेकिन उसको आगे बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है. इसके चलते सोशल वर्क की अवधारणा मन में आयी. और मैंने बर्न विक्टिम्स को स्पॉन्सर करना शुरू किया था. मैंने बहुत करीब से उन जली हुई औरतों को देखा, उनके दर्द को देखा था. तो मैंने शुरुआत में 10 औरतों को खुद के पैसों से बिना एन.जी.ओ. स्टार्ट किये स्पॉन्सर किया था. एक दिन मैं ऐसे ही बैठी सोचने लगी कि मान लो कल मैं जब नहीं रहूंगी तो ये जो मैंने शुरुआत की है और ये जो 10 औरतें और उनके परिवार हैं फिर उनके माध्यम से हजार दो हजार लोग मुझसे जुड़ चुके हैं उन सबका क्या होगा. तो इस मकसद से मैंने एन.जी.ओ. स्टार्ट किया. फिर एक दिन मैं सोच रही थी कि फिटनेस और हेल्थ को लेकर इण्डिया के अंदर बहुत मिथ है. जो अच्छे गुड लुकिंग लोग हैं, अच्छे बॉडीवाले हैं वो या तो एक्टर बनते हैं या तो स्पोर्ट्समैन . मगर कोई चेहरा फिटनेस आइकॉन के तौर पर नहीं है कि देखकर लोग कहें कि यार मुझे इनकी तरह फिट होना है.
तब एक दिन मेरे भाई सौरभ ने कहा – “जब तू इतनी ज्यादा मेहनत करती है, ऑफिस जाती हो, ऑफिस के बाद जिम जाती हो, रात के दस-ग्यारह बजे घर आती हो, तुम्हारा खान भी बाहर का नहीं होता तो इतना करने के बाद तुम स्पोर्ट्स के अंदर क्यों नहीं?” तब मैंने सोचा की हाँ अगर मैं स्पोर्ट्स में आती हूँ और अगर मैं जीतती हूँ तो एक फेस बन जायेगा कि एक लड़की जो वेल एजुकेटेड है, अच्छे घर से है, अच्छा कमा रही है. अभी तक इस फिल्ड में सिर्फ ट्रेनर आते थें कि चलो चार लोगों को ट्रेनिंग मिल जाएगी. लेकिन मुझे फिटनेस सेलेब्रिटी बनना था, फिटनेस का फेस बनना था. तो उसके लिए मैंने वर्ल्ड चैम्पियनशिप से शुरुआत की. और उपरवाले के आशीर्वाद से मैंने वर्ल्ड चैम्पियनशिप से ही जीतने की शुरुआत की.
दिसंबर, 2014 में वर्ल्ड चैम्पियनशिप स्पोर्ट्स फिजिक में मैंने पहला ख़िताब लिया इण्डिया के लिए. 49 साल के अंदर इस कैटेगरी में इण्डिया को कोई मैडल नहीं आया था. उजबेकिस्तान के अंदर मैं पहली महिला बनी जिसने इण्डिया के लिए सिल्वर मैडल लिया. फिर उसके बाद मिस इण्डिया स्पोर्ट्स फिजिक 2015 में गोल्ड मेडलिस्ट बनी. 2016 में जीता, 2017 में भी जीता. लगातार हैट्रिक की भी एक हिस्ट्री बनी. उसके बाद इस फिल्ड में लड़कियां आना शुरू हो गयीं. कुछ मेरे जैसी बनना चाहती थीं. तो यही मकसद था कि हेल्थ एवं फिटनेस दोनों को एक कॉम्बिनेशन के अंदर एक चेहरे के रूप में सामने लाना. साथ में जिसकी बैकग्राउंड अच्छी हो, जिसकी शक्ल बहुत अच्छी हो, बॉडी अच्छी हो और जो बोलना जानता हो. पहले लोग बोलते थें कि औरत बॉडी बिल्डर तो अच्छी है मगर हमें नहीं बनना है.
मेरा मानना ये था कि इण्डिया को फिटनेस कंट्री बनाने के लिए एक पहल की जाये. यूथ जो गुमराह हो रहे हैं. लेट नाईट पार्टी, जंक फ़ूड खाना ये उनके हेल्थ के लिए सही नहीं है. लेकिन वे किसी की सुनते नहीं हैं जबतक उनके सामने एक एचीवमेंट वाला चेहरा ना हो. तो इसकी पहल मैंने की. नियत अच्छी थी इसलिए इतना सारा अचीवमेंट मुझे मिला. अभी मैं 5 सालों से इंटरनेशनल जज हूँ बॉडी पावर एक्सपो की. ये फिल्ड मैन डोमिनेटिंग है और इसमें सारे मर्दों के बीच मैं अकेली फीमेल हूँ. तो यह भी एक स्ट्रगल चल रहा है कि औरतें किसी भी चीज में मर्दों से कम नहीं हैं. जो मैंने अनुभव हासिल किया तो मेरी जिमेदारी बनती है कि मुझ जैसे एथलीट नेशनली भी बनें, बिहार से भी बनें और इंटरनेशनली भी बनें तो भारत और अदर स्टेट का भी नाम बढ़े. साथ में एक औरत अपने पावर को समझे. इन्ही सब मकसद को लेकर मैंने पिछले साल मुंबई में अपनी एक एकडमी स्टार्ट की है ‘फिटनेस फॉरएवर’. ये पहली एकमात्र एकडमी है जो इंस्पायरिंग एथलीट्स के लिए है और महिलाओं के लिए है चाहे वो किसी भी प्रोफेशन की हों. ये स्पोर्ट्स आपको फिजकली और मेंटली स्ट्रॉग बना देता है. जब औरत मेंटली- फिजिकली स्ट्रांग हो जाएगी तो अपने आप उसका डिप्रेशन, अन कॉन्फिडेंस होना दूर हो जायेगा.
फिटनेस बचपन से मेरी लाइफ स्टाइल का पार्ट हो चुका है तो मैं कहना चाहूंगी कि फिटनेस बनाने की जरूरत नहीं है बल्कि फिटनेस लाइफ स्टाइल का ही पार्ट होना चाहिए. जिस तरह एजुकेशन हमारा फंडामेंटल राइट है उसी तरह फिटनेस व हेल्थ भी हमारा फंडामेंटल राइट है. अगर हम फिट रहेंगे तो ही पढ़ेंगे, अगर हम फिट रहेंगे तो ही डिसीजन लेंगे. अगर हम फिट रहेंगे तो ही प्रॉब्लम का सामना कर सकेंगे. तो एक हेल्दी लाइफ और फिटनेस को बनाने के लिए कुछ ज्यादा करने की जरूरत नहीं है. थोड़ी वर्कआउट, खाने के अंदर ज्यादा से जायदा ग्रीन वेजिटेवल, प्रोटीन युक्त प्रोडक्ट, दूध-दही खा सकते हैं. बाहर कोल्ड ड्रिंक्स की जगह पर लस्सी पी सकते हैं. ये छोटी-छोटी चीजें बस अपनाने की जरुरत है , आप फिट रहने लगेंगे.