जब अपने मायके बेगूसराय से मुजफ्फरपुर ससुराल पहुंची तो वहां घर में सारी की सारी ग्रामीण महिलाओं को देखकर मैं थोड़ी घबरा सी गयी कि कहीं यहाँ मुझे ज्यादा पर्दे में तो नहीं रहना पड़ेगा और क्या यहाँ की महिलाएं मुझे समझ पाएंगी. जब कोहबर में ले जाया गया तो वहां महिलाओं की हंसी ठिठोली से मन थोड़ा हल्का हुआ. और जब मॉर्डन सोच रखनेवाली अपनी जेठानी को देखा और उनसे बातचीत हुई तो मेरा डर खत्म हो गया.
जब मुझे सासू माँ के पास ले जाया गया तो उन्होंने मुझे देखते ही ख़ुशी से सहेजकर रखी एक खूबसूरत सी साड़ी मुझे तौफे के रूप में दी. दरअसल शादी के पहले ससुराल में मुझे किसी ने देखा नहीं था. और तभी मेरी सास ने निश्चय किया था कि अगर बहू गोरी हुई तो ही उसे वो नई साड़ी तौफे में देंगी. लेकिन अगर बहू काली हुई तो वो साड़ी उसे हरगिज नहीं देंगी. तब रिवाज था कि ससुराल में पहले दिन बहू को खाना नहीं है लेकिन मेरे पति ने मुझे अनजाने में मिठाई खिला दी थी.
उसी दिन मेरे ससुर को बाथरूम में अचानक जोर का चक्कर आ गया था. घर में कोहराम मच गया कि कहीं उन्हें कुछ हुआ तो नहीं. मैं भी बुरी तरह डर गई कि अगर उन्हें कुछ हुआ तो मुझपे कलंक लग जायेगा कि नई दुल्हन के आते ही ये सब हो गया. लेकिन कुछ बुरा नहीं हुआ और थोड़ी देर में ही ससुर जी की तबियत ठीक हो गयी. घरवालों के साथ साथ तब मैंने भी राहत की सांस ली.