

केंद्र सरकार ने 21 नवंबर 2025 शुक्रवार को कार्य परिस्थितियों में बड़े बदलाव का कदम उठाते हुए देश में नई श्रम संहिता (लेबर कोड) लागू कर दी। यह वाकई काबिले-तारीफ है कि निजी एवं असंगठित क्षेत्र के करोड़ों कामगारों के लिए उपयोगी इस नए लेवर कोड में अनिवार्य नियुक्ति-पत्र, न्यूनतम और समय पर वेतन की गारंटी और एक साल में ही ग्रेच्युटी भुगतान की व्यवस्था की गई है, वहीं सामाजिक सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ईएसआइसी सुविधा और 40 साल की सेवा के बाद अनिवार्य स्वास्थ्य जांच जैसी सुविधाओं का प्रावधान किया गया है।
यहां पाठकों को बताता चलूं कि ईएसआईसी भारत सरकार की एक सामाजिक सुरक्षा योजना है, जिसका उद्देश्य कर्मचारियों और उनके परिवारों को बीमारी, दुर्घटना, मातृत्व और रोजगार से जुड़ी अन्य आपात स्थितियों में आर्थिक तथा चिकित्सीय सुरक्षा प्रदान करना है। गौरतलब है कि श्रम मंत्री मनसुख मांडविया ने एक्स पोस्ट में नया लेबर कोड लागू करने की घोषणा की है तथा हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘श्रमेव जयते’ का नारा देते हुए इसे एक ऐतिहासिक दिन बताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के बाद इसे सबसे बड़ा रिफॉर्म बताया है। उन्होंने कहा है कि -‘यह कृषकों को मजबूत बनाने वाला है। श्रमिक भाई-बहनों के लिए सामाजिक सुरक्षा और समय पर वेतन की व्यवस्था सुनिश्चित करेगा। इनसे एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार होगा, जो भविष्य में कामगारों के हकों की रक्षा करेगा और भारत की आर्थिक वृद्धि को नई शक्त्ति देगा, साथ ही विकसित भारत की यात्रा को भी तेज गति मिलेगी।’ कितनी अच्छी बात है कि नए लेबर कोड में महिलाओं के लिए खास सुविधाएं जोड़ी गई है वहीं खतरनाक व जोखिम वाले उद्योगों, गिग वर्कर्स और आइटी क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों के लिए भी विशेष उपाय किए गए हैं।
यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि गिग वर्कर्स वे लोग होते हैं जो स्थायी नौकरी की बजाय छोटे-छोटे काम या प्रोजेक्ट के आधार पर काम करते हैं। इन्हें तय मासिक वेतन नहीं मिलता, बल्कि जितना काम करते हैं, उसी के हिसाब से कमाई होती है। आज के समय में ओला-उबर के ड्राइवर, स्विगी-जोमैटो, ब्लिंकिट ,अमेज़न के डिलीवरी पार्टनर, फ्रीलांसर (कंटेंट राइटर, ग्राफिक डिज़ाइनर, वीडियो एडिटर, वेब डेवलपर, डिजिटल मार्केटर आदि), डिज़ाइनर, या अर्बन कंपनी जैसी सर्विस देने वाले लोग गिग वर्कर्स के रूप में जाने जाते हैं। यह काम लचीला होता है, इसलिए लोग अपनी सुविधा अनुसार समय तय कर सकते हैं, लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसमें स्थायी नौकरी जैसे लाभ जैसे पीएफ, पेंशन, मेडिकल सुरक्षा अक्सर नहीं मिलते। यही कारण है कि गिग वर्कर्स को असंगठित क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है।सच तो यह है कि गिग वर्कर्स,खनन श्रमिकों और टैक्सटाइल श्रमिकों के लिए नये लेबर कोड में विशेष इंतज़ाम किए गए हैं,जो सराहनीय हैं। वास्तव में अब गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों सहित सभी श्रमिकों को पीएफ, ईएसआइसी, बीमा और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ मिल सकेंगे। इतना ही नहीं,खनन श्रमिकों के क्रम में आवागमन दुर्घटना पर मुआवजा, खान में सुरक्षा व स्वास्थ्य मानकों का ध्यान, निशुल्क स्वास्थ्य जांच के साथ ही साथ काम के घंटों की सीमा प्रतिदिन 8 से 12 घंटे, तथा प्रति सप्ताह 48 घंटे तय की गई है। टैक्सटाइल श्रमिकों के लिए भी प्रावधान किए गए हैं। मसलन, ठेकेदार कर्मियों को समान वेतन, कल्याणकारी लाभ, बकाया निपटान के लिए तीन साल की अवधि, तथा ओवरटाइम पर दोगुना भुगतान जैसी व्यवस्थाएं नये लेबर कोड में की गईं हैं। नये लेबर कोड में महिलाओं के लिए खास सुविधाओं में क्रमशः लिंग भेद निषेध, समान कार्य के लिए समान वेतन, महिलाओं को सहमति व जरूरी सुरक्षा उपायों के साथ रात्रि पाली में तथा सभी प्रकार के काम की अनुमति, शिकायत निवारण समितियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व जरूरी, महिला कर्मचारी के परिवार की परिभाषा में सास-ससुर को शामिल करना, 26 सप्ताह का मातृत्व अवकाश, क्रैच व वर्क फ्रॉम होम की सुविधा के साथ ही साथ 3500 रुपए का मेडिकल बोनस दिए जाने की व्यवस्थाएं भी की गईं हैं।
वास्तव में लेबर कोड में विभिन्न सुधारों से कामगारों को निश्चित ही लाभ हो सकेगा। अब निश्चित अवधि के कर्मचारियों (फिक्स टर्म एंप्लॉयीज) सहित सभी श्रमिकों के लिए समय पर और न्यूनतम वेतन की गारंटी की बात कही गई है तथा नियुक्ति पत्र अनिवार्य किया गया है, जिसमें पद, वेतन, सुविधाओं आदि का जिक्र भी किया गया है। इतना ही नहीं, पांच वर्ष के बजाय अब एक वर्ष के बाद ही सामान्य कामगार एवं एफटीई के लिए ग्रेच्युटी, महिलाओं के लिए समान वेतन, सामाजिक सुरक्षा की गारंटी, 40 साल उम्र से ज्यादा पर सालाना मेडिकल चेकअप, ओवरटाइम के लिए दोगुना वेतन, अवकाश, कार्यस्थल पर सुरक्षा, उत्पीड़न, भेदभाव व वेतन संबंधी विवादों का समय पर समाधान, खतरनाक क्षेत्रों में श्रमिकों के लिए 100% स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी के साथ ही साथ 500 से ज्यादा कर्मचारियों वाले संस्थान में जवाबदेही के लिए सुरक्षा समिति अनिवार्य की गई है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि लेबर कोड में श्रम कानूनों को वैश्विक मानदंडों के समान लाने के प्रयास किए गए है। इस नए लेबर कोड से करीब 40 करोड़ लोगों को फायदा होने का अनुमान है। संक्षेप में कहें तो सरकार ने 29 मौजूदा श्रम कानूनों का चार श्रम संहिताओं में संहिताकरण किया गया है। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि केंद्र सरकार ने 2020 में संसद में श्रम संहिताओं को पारित करने के पांच साल से भी ज्यादा समय बाद इन्हें लागू किया है।
यह भी उल्लेखनीय है कि वेतन संहिता, 2019; औद्योगिक संबंध संहिता, 2020; सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 तथा व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020 जैसे नए कानूनों को मिला कर यह लेबर कोड बनाया गया है। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि भारत के नए लेबर कोड पुराने 29 श्रम कानूनों को मिलाकर बनाए गए हैं, जिनका उद्देश्य श्रमिकों के अधिकारों को मजबूत करना और उद्योगों के लिए नियमों को आसान बनाना है। इन कोडों के तहत मजदूरों को समय पर वेतन, सामाजिक सुरक्षा, सुरक्षित कार्यस्थल और स्पष्ट नियमों का लाभ मिलेगा। वहीं, कंपनियों के लिए रजिस्ट्रेशन और कंप्लायंस की प्रक्रिया सरल हुई है। गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को भी पहली बार सुरक्षा के दायरे में लाने का प्रयास किया गया है। कुल मिलाकर, नए लेबर कोड भारत में श्रमिक हित और औद्योगिक विकास के बीच बेहतर संतुलन बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।सच तो यह है कि अब नये लेबर कोड से हमारे देश में नौकरियों की पूरी दुनिया ही बदल जाएगी।
अंत में यही कहूंगा कि भारत जैसे विकासशील देश में नए लेबर कोड का उद्देश्य श्रम क्षेत्र (लेबर फील्ड) को सरल, पारदर्शी और आधुनिक बनाना है। पाठक जानते हैं कि देश में लंबे समय से श्रम कानून जटिल, पुराने और कई बार विरोधाभासी रहे हैं, जिनकी वजह से न ही श्रमिकों को पूरी सुरक्षा मिल पाती थी, और न ही उद्योगों को सहज वातावरण। नए लेबर कोड इन चुनौतियों को दूर करने की कोशिश करते हैं। इन कोडों के तहत वेतन, सामाजिक सुरक्षा, कामकाजी परिस्थितियों और औद्योगिक संबंधों से जुड़े कानूनों को एकीकृत किया गया है। इससे नियमों की संख्या कम हुई है और उनका पालन आसान हुआ है। श्रमिकों को ईएसआई, पीएफ, ग्रेच्युटी जैसी सुविधाओं तक अधिक पहुँच मिलेगी। गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को भी पहली बार सामाजिक सुरक्षा के दायरे में शामिल करने का प्रयास हुआ है। दूसरी ओर, उद्योगों के लिए पंजीकरण, अनुपालन और रिपोर्टिंग की प्रक्रिया सरल हुई है, जिससे रोजगार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। नए कोड न्यूनतम वेतन, ओवरटाइम और काम के घंटे जैसे प्रावधानों को स्पष्ट करते हैं, जिससे श्रमिक शोषण पर रोक लग सके। वास्तव में, नये लेबर कोड आने से पहले हमारे देश में श्रमिकों की स्थिति काफी जटिल और असंगठित थी। अधिकांश मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते थे, जहाँ उन्हें नौकरी की सुरक्षा, नियमित वेतन और सामाजिक सुरक्षा जैसी सुविधाएँ मुश्किल से मिलती थीं। कई उद्योगों में पुराने कानून इतने बिखरे हुए थे कि श्रमिक अपने ही अधिकारों को ठीक से समझ नहीं पाते थे। न्यूनतम मजदूरी हर क्षेत्र में समान नहीं थी, जिससे कई मजदूरों को बहुत कम वेतन मिलता था। काम के घंटे अधिक और विश्राम के अवसर कम होते थे। महिला श्रमिकों को मातृत्व लाभ और सुरक्षा के मामले में पर्याप्त सहूलियतें नहीं थीं। ठेका प्रणाली का दुरुपयोग भी आम था, जिसमें श्रमिकों को स्थाई कर्मचारी बनने का अवसर नहीं मिलता था। श्रमिकों की आवाज़ कमजोर रहती थी, क्योंकि ट्रेड यूनियनों का प्रभाव भी कई जगह कम था। दुर्घटना बीमा, पीएफ और ईएसआई जैसी सुविधाएँ केवल सीमित कर्मचारियों को ही मिल पाती थीं। भटकते मजदूरों, जैसे दिहाड़ी मजदूर और प्रवासी श्रमिकों के लिए कोई मजबूत रजिस्ट्रेशन सिस्टम नहीं था। मजदूरों का शोषण रोकने और उनके वेतन व काम की शर्तों को नियंत्रित करने वाले कई नियम पुराने समय की जरूरतों पर आधारित थे। काम का वातावरण कई जगह सुरक्षित नहीं होता था और दुर्घटनाओं का खतरा ज्यादा होता था। कुल मिलाकर, श्रमिकों की स्थिति असुरक्षित, असंगठित और अपेक्षाकृत कमजोर थी, जिसे सुधारने के लिए नए लेबर कोड की आवश्यकता महसूस की गई।
अब नये लेबर कोड से श्रमिकों के दिन बदलेंगे। हालांकि, इनकी सफलता प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी। यदि सरकार और उद्योग पारदर्शिता से काम करें तो यह कोड भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, श्रमिकों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने और देश को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।