बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : श्रीमती विभा सिन्हा की फैमली, आनंदपुरी, पटना

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : श्रीमती विभा सिन्हा की फैमली, आनंदपुरी, पटना
       स्पेशल गेस्ट के साथ बोलो ज़िन्दगी की टीम

13 जुलाई , शनिवार की शाम ‘बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक’ के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह ‘सोनू’, प्रीतम कुमार तबस्सुम अली) पहुंची पटना के आनंदपुरी मोहल्ले में बिहार संगीत नाटक अकादमी की सहायक सचिव श्रीमती विभा सिन्हा जी के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में बिहार दूरदर्शन की एंकर एवं कवियत्री प्रेरणा प्रताप भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारी स्पेशल गेस्ट के हाथों विभा जी की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

 

 

 

 

विभा सिन्हा की फैमिली

फैमली परिचय- विभा जी 1973 से आकाशवाणी से जुड़ीं फिर दूरदर्शन से भी जुड़ी रहीं. आज भी वे आकाशवाणी के सुगम संगीत की पैनल आर्टिस्ट हैं. आर्ट एण्ड कल्चर डिपार्टमेंट के द्वारा विभा जी 1992 में बिहार सरकार में शामिल हुईं और फ़िलहाल सहायक सचिव, बिहार संगीत नाटक अकादमी में कार्यरत हैं. विभा जी का ससुराल छपरा में है और मायका है वैशाली में. इनकी माता श्रीमती उमा सिन्हा तीन बहनों की परवरिश में माता और पिता दोनों की भूमिका में थी.
इनके पति राजनीति कुमार सिन्हा और देवर अजीत कुमार सिन्हा साथ में मिलकर खुद का बिजनेस करते हैं. परिवार में हसबैंड तीन भाई हैं. तीन जेठानी-देवरानी हैं. विभा जी की एक ही संतान है बेटी के रूप में ऋतू, जो निफ्ट से फैशन डिजायनिंग करके अभी मुंबई में सेटल्ड हैं और अपना खुद का काम कर रही हैं. देवर अजीत कुमार सिन्हा के तीन बच्चे हैं जिनमे दो बेटियां दिल्ली में हैं और एक बेटा आस्ट्रेलिया में है.

 

जेपी से जुड़ाव –  विभा जी के फादर सोशलिस्ट थें और वे जेपी के बहुत क्लोज फ्रेंड थें. जब 1960 में उनका देहांत हुआ तो उसके बाद जेपी विभा जी और उनके परिवार को यहाँ पटना ले आएं. उसके बाद से उनकी ही संस्था महिला चरखा समिति में ये पलीं-बढ़ीं, फिर विभा जी की शिक्षा से लेकर शादी तक जेपी की गार्जियनशिप में ही हुई. श्रीमती विभा सिन्हा निरंतर 1962 से 1979 जेपी के सानिध्य में रहीं, लोकनायक की सभाओं में क्रांति गीत गाया करती थीं. 1974 के अक्टूबर में लोकनायक के आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुईं और हजारीबाग जेल में उनका प्रवास भी हुआ.

 

विभा जी की उपलब्धियां –  उपलब्धियों में प्रमुख है, सोहर से समदाउन तक, मैथिली वृतचित्र एवं पंचबजना, बाद्य यंत्रो पर वृतचित्रों की परिकल्पना. सन 2003 में ‘लोक की दृष्टि में जयप्रकाश’ पुस्तक का सम्पादन भी किया जो बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित हुई.  सन 2012 में आधी आबादी वीमेन अचीवर्स अवार्ड से सम्मानित हुईं. 2005 में ‘बिहार गौरव गान’ गीत में मुख्य स्वर दिया जिसके बाद माननीय मुख्यमंत्री ने भी इस गीत को बिहार का सिग्नेचर टयून घोषित किया.

 

बिहार गौरव गान के बारे में क्या बताया विभा जी ने ? – “2005 में जब नयी सरकार बनी तब बिहार में राष्ट्रीय युवा उत्सव का आयोजन हुआ जहाँ देशभर के यूथ इसमें पार्टिशिपेट किएँ, उस कार्यक्रम के लिए डॉ शांति जैन बिहार गौरव गान के नाम से एक गीत लिखा था – “दिशा दिशा में लोकरंग का तार-तार है, महका-महका सोंधी माटी का बिहार है…” इसमें सीताराम सिंह का संगीत निर्देशन था और मुख्य स्वर मेरा है. . 2005 से इसकी प्रस्तुति शुरू हुई और अबतक लगभग सौ से ज्यादा प्रदर्शन इसका हो चुका है. मैं खुद भी टीम लीडर बनकर मॉरीशस गयी थी और बिहार की संस्कृति की पूरी जो झलक है वो इस बिहार गौरव गान में है जिसे हम 20 मिनट में दिखाते हैं.”

 

परदेस में बिहार की संस्कृति परोसी – संगीत के क्षेत्र में जो काम किया है उसपर 15 दिन के लिए एक वर्कशॉप हुआ था ‘शगुन और निर्गुण’ के नाम से जो तुलसीदास जी से शुरू होकर कबीर तक खत्म होता है. उसके लिए 2017 में कैलिफोर्निया में 15 दिनों का वर्कशॉप किया. उसमे एक कीर्तन था जो विभा जी ने वहां गाया था- “जिस देश में, जिस वेश में, प्रदेश में रहो, श्री कृष्ण को भजो सदा श्री राम को भजो…” इस भजन को वहां की मण्डली ने भी सीखा और गाया. 2018 में ओमान में विभा जी का जाना हुआ जहाँ एक देवनागरी विंग खुला. देवनगरी विंग में हिंदी दिवस मनाया गाया तो उसमे विभा जी को आमंत्रित करके सम्मानित किया गया. उसी कार्यक्रम में विभा जी ने भी भजन और फोक के रूप में अपनी प्रस्तुति दी. मॉरीशस में जो रामायण पाठ होता है उसमे भी भाग लिया.

 

 

‘बोलो ज़िन्दगी’ के साथ अपने अनुभव साझा करतीं विभा सिन्हा

विभा जी की नायाब परिकल्पना – बोलो ज़िन्दगी के साथ बातचीत में विभा जी बताती हैं, “मेरे मन में ये परिकल्पना आयी कि बिहार या कहीं भी राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों में देख लें लड़के के जन्म में काफी उत्साह रहता है वहीँ लड़कियों के जन्म में लोग उदास हो जाते हैं कि बेटी आयी है. लेकिन जब बेटी ही नहीं होगी तो बेटा कैसे होगा, वंश कैसे चलेगा ? तो इस परिकल्पना पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की सोची. मेरी परिभाषा ये थी कि जैसे तुलसी की पूजा हम करते हैं और तुलसी का रूप भी तो स्त्री ही है, गंगा मैया की पूजा करते हैं तो गंगा के गीत गाते हैं…तो ये सारी परिकल्पनाओं से मैंने इसको गढ़कर बेटी पर आधारित फिल्म का निर्माण किया. इसमें बेटी के जन्म से लेकर उसकी विदाई तक के सारे संस्कार हैं. फिर दूसरी फिल्म हमने बनाई जब बिहार के सौ साल पूरे हो रहे थें तो हमने उसकी परिकल्पना की. बिहार के लोक वाद्यों पर आजतक किसी ने काम नहीं किया था. बहुत सारे लोक वाद्य ऐसे हैं जिनसे हमारे आज के युवा अपरिचित हैं. तो उनको परिचित कराने के उद्देश्य से हमने इसमें लगभग 55 लोक वाद्यों का समावेश किया. उसका नाम ‘पंचबजना’ हमने इसलिए दिया क्यूंकि मटकोर जो पहले होता था उसमे पांच वाद्यों का समूह जो गीत गाता था आगे-आगे चलता था. और भी कई वाद्य समूह थें जिनको लेकर हमने काम किया. फिर भिखारी ठाकुर के साथ संगत करते हुए नाटकों में जो लोग शहनाई बजाते थें उनको हमने ढूंढा और सीधे उनकी लाइव रिकॉर्डिंग की फिर उनको हमने अपने वृत्तचित्र में समाहित किया. यह काम अकदामी ने किया पर परिकल्पना और शोध मेरा था.”

आखिर में अपने ससुराल की तारीफ करते हुए विभा जी ने कहा कि “जब मैं आयी थी शादी करके तो बहुत पढ़ी भी नहीं थी, बस इंटर करके ससुराल आयी थी. लेकिन आगे का एजुकेशन, म्यूजिक की डिग्री सबकुछ ससुराल में ही हुआ और अगर फॅमिली का सपोर्ट नहीं होता तो मैं शयद यहाँ तक नहीं पहुँच पाती.” फिर बोलो ज़िन्दगी की फरमाइश पर विभा जी ने निर्गुण और लोकगीत गाकर सुनाएँ.

 

शुभकामना सन्देश : स्पेशल गेस्ट प्रेरणा प्रताप ने कहा कि “यहाँ आकर और विभा सिन्हा जी जैसी पर्स्नालिटी से मिलकर मैं भी गौरान्वित महसूस कर रहीं हूँ. यहाँ आने के बाद हमें साहित्यिक-सांगीतिक माहौल भी देखने को मिला. इनके परिवार से मिलकर बहुत ख़ुशी हुईं. जेपी के बारे में हमने सिर्फ किताबों में पढ़ा है तो विभा जी जब उनसे जुड़े संस्मरण साझा कर रहीं थीं ऐसा महसूस हुआ कि जेपी के दिनों का परिदृश्य जैसे उठकर हमारे सामने आ गाया हो. विभा जी ने गीत-संगीत के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है और अभी भी वो कुछ हटकर करने में लगी हुईं हैं. उनके प्रयास के लिए हमारी तरफ से उन्हें बहुत बहुत शुभकामनायें.” फिर जाते-जाते बोलो जिंदगी के रिक्वेस्ट पर प्रेरणा प्रताप ने अपनी एक खूबसूरत कविता भी सुनाई.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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