बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : सोशल वर्कर विवेक विश्वास की फैमली, राजीवनगर, आशियाना-दीघा रोड, पटना 

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : सोशल वर्कर विवेक विश्वास की फैमली, राजीवनगर, आशियाना-दीघा रोड, पटना 
स्पेशल गेस्ट के साथ बोलो ज़िन्दगी की टीम पहुँची विवेक विश्वास के घर

शनिवार, 23 नवंबर की शाम ‘बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक’ के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह ‘सोनू’, प्रीतम कुमार एवं तबस्सुम अली) पहुंची पटना के आशियाना-दीघा रोड, राजीवनगर इलाके में सोशल वर्कर विवेक विश्वास के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में ट्राई  संस्था में कार्यरत बिहार-झाड़खंड की हेल्थ डायरेक्टर अमरूता सोनी भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को सपोर्ट किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों विवेक विश्वास की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

 

 

 

 

 

                          विवेक विश्वास की फैमिली

फैमली परिचय– विवेक विश्वास राजीव नगर, दीघा-आशियाना रोड इलाके में रहते हैं जो एफएमसीजी में सेल्स ऑफिसर हैं. जॉब के दरम्यान ही राह में जो भी लावारिश व्यक्ति बीमार या घायल अवस्था में दिख जाये तो वे निस्वार्थ भाव से उसकी मदद करते हैं. चोट लगे पशु-पक्षियों की भी सेवा करते हैं. और इस काम के लिए विभिन्न संस्थाओं द्वारा विवेक सम्मानित भी हो चुके हैं. फैमिली में पापा श्री धर्मेंद्र कुमार हैं, भइया-भाभी हैं. भइया विकास कुमार रिटेल सेक्टर में हैं, अभी टाटा में स्टोर मैनेजर हैं. जॉब के अलावे इनके भइया विकास कुमार ब्लड डोनेशन के लिए पर्सनली काम करते हैं. खुद भी डोनेट करते हैं और उनके अंडर काम करनेवाले 150 लड़के हैं, जब भी जरूरत पड़े वे ब्लड डोनेशन को तैयार रहते हैं.  भाभी हॉउस वाईफ हैं. भइया की एक बेटी हुई है जो अभी 2 महीने की है. विवेक की हाल ही में सुमन कुमारी से शादी हुई है. इनकी बहनों का घर भी आस-पास के इलाके में ही है. बड़ी बहनों का नाम है रूचि रंजन और मनीषा.

बोलो ज़िन्दगी के साथ बातचीत करते हुए विवेक विश्वास

 

सेवा की भावना कब से जगी – विवेक हमेशा ट्रेन से सफर करते रहे हैं, नानी घर गया में है तो पटना – गया बहुत आना-जाना हुआ. उनका अपना पुस्तैनी घर हुआ लखीसराय में तो ट्रेन से ही आते-जाते थें. बचपन से ही जब किसी को देखते थें कि वो भूखा है, लावारिस सा गिरा पड़ा है, सिसक रहा है, उसको कोई देखनेवाला नहीं है तो वहीँ से भावना जगी कि अगर बड़ा हुए तो इनके लिए कुछ करेंगे. जब आठवीं कक्षा में थें तो एक पोस्टर पर स्लोगन देखें विवेकानद जी का कि “मैं उस प्रभु की सेवा करता हूँ जिसे ज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं.” वो पंक्तियाँ बहुत गहरे से विवेक के जेहन में समा गयीं. जैसे-जैसे बड़े होते गएँ अच्छे लोगों का भी साथ मिलता गया और लोगों की सेवा बदस्तूर जारी रही.

 

सोशल वर्क की शुरुआत कैसे हुई – शिवपुरी में पहले विवेक जी का ब्वॉयस हॉस्टल चलता था, तब रोजाना 50-60 रोटियां बच जाने पर फेंकनी पड़ जाती थी. एक तो दिमाग में था कि बाहर कुछ लोग भूखे हैं और दूसरी ये कि इधर रोटियां नाली में डाली जा रही हैं. तो उन बची हुई रोटियों के इस्तेमाल के लिए विवेक ने एक आइडिया निकाला. तब  दो-ढ़ाई किलो आलू का भुजिया बनवाते थें और सबका चार-चार का बंडल बनाकर बाहर ले जाकर भूखों को बाँट देते थें. यह लगातार दो-तीन साल चला. लेकिन बॉयस हॉस्टल बंद होने के बाद ये काम बीच में बंद हो गया. उस दरम्यान रोटी का बंडल बनाकर जब बांटते थें तब देखते कि कोई बीमार है, चोट से कराह रहा है तो वैसे लोगों को पीएमसीएच में ले जाकर इलाज करा देते थें. तो निःसहायों की सेवा की आदत उसी समय से लगनी शुरू हो गयी. और तब से लेकर आजतक वो सिलसिला जारी है. विवेक ऐसे असहाय-लावारिस लोगों का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगें और लोगों से अपील करने लगें कि आप भी अपने आस-पास के ऐसे लोगों की मदद करें. अब इन्हें सामने से कॉल भी आते हैं कि कोई यहाँ बीमार है, कोई इंसान लावारिस हालत में पड़ा हुआ है, उसे देखनेवाला कोई नहीं है तो फिर विवेक वहां पहुँचते हैं, सरकारी एम्बुलेंस जो फ्री है को बुलाते हैं, सरकारी डॉक्टर जो फ्री में इलाज करने के लिए तैयार हैं, ऐसे लोगों के लिए सरकारी हॉस्पिटल पीएमसीएच में लावारिश वार्ड है जहाँ सारी दवाएं मुफ्त में मुहैया हो जाती हैं. लेकिन बहुत से लोग जो इनकी मदद करना चाहते हैं उनको जानकारी का आभाव रहता है तो उनको कैसे जागरूक किया जाये, उसके लिए ही ये ऐसे लोगों का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया के माध्यम से अवेयरनेस फैलाते हैं. विवेक की रिक्वेस्ट पर अच्छे समाजसेवक लोग अब खुद से आगे आने लगे हैं. अभी तक इन कामों के लिए चाहे वो कोई आम व्यक्ति हो या प्रशासनिक अधिकारी कभी किसी ने मना नहीं किया. रिस्पॉन्स अच्छा मिलता है. इससे एक फायदा ये भी होता है कि ऐसे कुछ विक्षिप्त लोग जो लावारिस हालत में अपने घर-परिवार से दूर हो गए हैं, सोशल मीडिया के माध्यम से जब उनके घरवालों को उनका पता चलता है तो वे उन्हें लेने भी आते हैं.

बेजुबां जानवरों के भी मसीहा – जब विवेक जी को पता चलता है या कोई कॉल कर के बताता है कि यहाँ एक गाय या कुत्ता बीमार पड़ा है, लहूलुहान है, दर्द से कराह रहा है तो विवेक वहां भी जानवरों की सेवा करने पहुँच जाते हैं. विवेक अबतक 15-20 जानवरों को हॉस्पिटल में एडमिट करा चुके हैं. ऐसे में उनके मित्र जो वेटनरी डॉक्टर हैं बंटी जी उनका बहुत सहयोग मिलता है. उन्हें कभी भी बुलाएँ वे हाजिर हो जाते हैं, रात के 10-11 बजे भी अगर कॉल चला जाये तो वे आ जाते हैं और निशुल्क सेवा देते हैं.

फैमिली की रोकटोक – फैमिली की रोकटोक चलती रहती है, इसलिए उनसे छुप-छुपाकर ये काम करना पड़ता है. भइया को विवेक के काम से नफरत नहीं है बल्कि उन्हें हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं वे किसी लफड़े में ना फंस जाएँ. अच्छा करने के चक्कर में कहीं अपनी जिंदगी जोखिम में न डाल दें. कई लावारिस इंसान, जानवरों के शरीर से इतनी बदबू आती है, मख्खियां भिनभिनाती हैं, जहाँ लोग नाक बंद करके निकल लेते हैं, कोई उनके पास नहीं जाना चाहता. ऐसे में जब विवेक उनकी देखभाल करते हैं   तो उनके परिवार को भी ये भय लगा रहता है कि कहीं वे  भी किसी महामारी के चपेट में ना आ जाएँ. बड़ी बहनों ने बताया कि “वैसे विवेक काम तो बहुत अच्छा कर रहा है लेकिन बचपन से ही मानव सेवा का इसको इतना क्रेज है कि अगर इसे कोई घर का काम करने सौंपा जाये तो वे बीच रास्ते में असहाय लोगों को देखकर जिस काम से जा रहा है उसे भूलकर लोगों की सहायता में लग जाता है. इसलिए कभी-कभी उसे घर का ज़रूरी काम सौंपते हुए सबको हिचक भी होती है.” विवेक के घरवाले इस बात पर भी नाराज रहते हैं कि रोजाना टिफिन ले जाने के बावजूद ये खुद ना खाकर किसी ना किसी को खिला देते हैं और जब रात में घर आते हैं तो पता चलता है कि ज्यादा देर भूखे रहने की वजह से एसिडिटी की प्रॉब्लम हो गयी. इस बाबत विवेक कहते हैं कि “मेरे पास खाना है और हम किसी भूखे को देखकर नज़र फेरकर चले जाएँ यह दिल इजाजत नहीं देता. और यही वजह है कि मेरी पत्नी भी मेरे से नाराज़ होती है कि लोगों की सेवा करते हुए खुद को बीमार क्यों कर लेते हैं. और यह काम हम अपना जॉब छोड़कर नहीं करतें बल्कि मेरा मार्केटिंग का काम है, दिनभर रोड पर ही आना-जाना लगा रहता है तो राह चलते अगर हम लावारिस लोगों के कुछ काम आ भी गएँ तो उससे मुझे क्या हानि होगी ?”

स्पेशल गेस्ट की टिप्पणी – इस कार्यक्रम में बतौर स्पेशल गेस्ट के रूप में उपस्थित ट्राई की हेल्थ डायरेक्टर अमरूता सोनी ने बोलो ज़िंदगी टीम के साथ विवेक जी की कहानी से रूबरू होने पर विवेक जी की तारीफ करते हुए कहा कि “एक लावारिस का दर्द क्या होता है वह मैंने बहुत करीब से देखा है इसलिए मैं समझ सकती हूँ कि ऐसे रह चलते लावारिसों की सेवा तो दूर लोग जल्दी उनके आस-पास भी नहीं फटकते हैं. ऐसे में विवेक जी निस्वार्थ भाव से इनकी मदद को तैयार रहते हैं तो यह बहुत बड़ी बात है. इंसान ही नहीं बीमार और लाचार जानवरों के दर्द को देखकर भी विवेक जी का दिल धड़कता है तो इससे ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कितने नेकदिल इंसान होंगे. मैं यही कहना चाहूंगी कि यह काम आप आगे भी जारी रखिये चाहे कितनी ही परेशानियाँ क्यों न आएं, क्यूंकि एक तो दूसरे लोग भी जागरूक होंगे और ऐसे असहायों की सेवा से ईश्वर की भी दुआ मिलती है.”

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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